विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कर्नाटक की भाजपा सरकार ने 4 फ़ीसदी मुस्लिम आरक्षण को ख़त्म कर दिया था, जिसके अदालत में चुनौती दी गई. इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस संबंध में टिप्पणी की थी. शीर्ष अदालत ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जब मामला विचारधीन हो तो राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं होनी चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अगले आदेश तक कर्नाटक में 4 प्रतिशत मुस्लिम कोटा खत्म करने के सरकारी आदेश को लागू नहीं करने पर अंतरिम निर्देश की अवधि बढ़ा दी और मामले को जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विचाराधीन मामले पर की जा रही राजनीतिक बयानबाजी को गंभीरता से लेते हुए जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाज की पीठ ने कहा, ‘जब कोई अदालती आदेश है तो कुछ पवित्रता बनाए रखने की जरूरत होती है.’
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने गृह मंत्री अमित शाह द्वारा कर्नाटक चुनाव से पहले मुस्लिम आरक्षण पर दिए एक हालिया बयान के बारे में शिकायत की थी.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, ‘जब मामला अदालत के समक्ष लंबित है और कर्नाटक मुस्लिम कोटा पर अदालती आदेश है, तो इस मुद्दे पर कोई राजनीतिक बयान नहीं होना चाहिए. यह उचित नहीं है.’
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने टिप्पणी की कि सार्वजनिक पदाधिकारियों को अपने भाषणों में सावधानी बरतनी चाहिए और उन मुद्दों का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए, जो न्यायालय द्वारा विचाराधीन हैं.
जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की, ‘अगर यह वास्तव में सच है, तो इस तरह के बयान क्यों दिए जा रहे हैं? सार्वजनिक पद रखने वालों द्वारा कुछ तो (नियंत्रण) होना चाहिए.’
कर्नाटक सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें इस तरह की टिप्पणियों की जानकारी नहीं है. हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर कोई कह रहा है कि धर्म आधारित आरक्षण नहीं होना चाहिए तो इसमें गलत क्या है?
मामले में अगली सुनवाई 25 जुलाई को होगी. एसजी मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया कि अभी के लिए पहले की आरक्षण व्यवस्था लागू रहेगी.
सुनवाई समाप्त होने पर जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘इस (मुद्दे) पर सार्वजनिक बयान नहीं दिए जाने चाहिए.’
पीठ ने सेंट्रल मुस्लिम एसोसिएशन (याचिकाकर्ताओं में से एक) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रविवर्मा कुमार द्वारा मीडिया को इस तरह के भाषणों को प्रकाशित करने से रोकने के अनुरोध पर विचार करने से भी इनकार कर दिया.
ज्ञात हो कि मुस्लिम समुदाय को मिले चार प्रतिशत आरक्षण को कर्नाटक सरकार द्वारा खत्म किए जाने के फैसले का बचाव करते हुए अमित शाह ने एक मौके पर कहा था, ‘धार्मिक आधार पर कोटा संवैधानिक रूप से वैध नहीं है. कर्नाटक सरकार ने मुसलमानों को दिए गए चार प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर दिया, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तुष्टीकरण की राजनीति में विश्वास नहीं करती है. कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए मुस्लिम समुदाय को आरक्षण दिया था.’
गौरतलब है कि कर्नाटक में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले चार प्रतिशत मुस्लिम कोटा खत्म करने का कर्नाटक सरकार का फैसला 13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे में आ गया था.
शीर्ष अदालत ने सरकारी आदेश पर सवाल उठाया था और कहा था कि प्रथम दृष्टया यह ‘अत्यधिक अस्थिर आधार’ पर लिया गया ‘त्रुटिपूर्ण’ फैसला प्रतीत होता है.
टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए कर्नाटक सरकार ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया था कि वह अपने 24 मार्च के उन आदेशों को अगली सुनवाई तक रोक देगी, जिनके द्वारा उसने शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय को आरक्षण दिया था.
मालूम हो कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने बीते 27 मार्च के एक आदेश में आरक्षण के लिए ‘पिछड़े वर्ग’ की परिभाषा को पुनर्वर्गीकृत किया था, जिसमें मुसलमानों को पात्रता से बाहर रखा गया है, जबकि जैन (दिगंबर) और ईसाई आरक्षण के पात्र हैं.
भाजपा सरकार ने विवादास्पद रूप से राज्य में मुसलमानों के लिए अब तक 4 प्रतिशत आरक्षण को हटाते हुए इसे राज्य के प्रभावशाली समुदायों – लिंगायत और वोक्कालिगा – के बीच समान रूप से बांट दिया था.
वोक्कालिगा के लिए कोटा 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया था. साथ ही पंचमसालियों, वीरशैवों और लिंगायतों वाली अन्य श्रेणी के लिए भी कोटा 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया था.
मुसलमानों को ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) श्रेणी में जोड़ा गया था, जिसमें कुल 10 प्रतिशत कोटा है और इसमें ब्राह्मण, जैन, आर्यवैश्य, नागरथ और मोदलियार शामिल हैं.