केवल 5 वर्षों में 50 हवाई दुर्घटनाओं में 55 सैन्यकर्मियों की जान जा चुकी है: रिपोर्ट

बीते 8 मई को राजस्थान में एक और मिग-21 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई थी. इससे पहले 4 मई जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में सेना के एक हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से एक सैनिक की मौत हो गई थी और दो पायलट घायल हो गए थे. बीते छह महीने में हेलिकॉप्टर से यह चौथी बड़ी दुर्घटना थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Indian Air Force)

बीते 8 मई को राजस्थान में एक और मिग-21 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें तीन लोगों की जान चली गई थी. इससे पहले 4 मई जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में सेना के एक हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से एक सैनिक की मौत हो गई थी और दो पायलट घायल हो गए थे. बीते छह महीने में हेलिकॉप्टर से यह चौथी बड़ी दुर्घटना थी.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Indian Air Force)

नई दिल्ली: सशस्त्र बल बीते छह महीने के दौरान स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (एएलएच) ‘ध्रुव’ की चौथी बड़ी दुर्घटना से जूझ रहे हैं. इस बीच बीते सोमवार (8 मई) को एक और मिग-21 लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसने देश के सैन्य उड्डयन क्षेत्र में अत्यधिक दुर्घटना दर से संबंधित चिंताओं को बढ़ा दिया है.

राजस्थान में सूरतगढ़ के पास सोमवार करीब 09:45 बजे दुर्घटनाग्रस्त हुए भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के मिग-21 लड़ाकू विमान का मलबा एक घर पर गिर जाने से वहां मौजूद तीन नागरिकों की मौत हो गई थी. दुर्घटना में विमान के पायलट बच गए थे.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल पांच वर्षों में 50 से अधिक विमानों और हेलीकाप्टर दुर्घटनाओं में लगभग 55 सैन्यकर्मियों ने अपनी जान गंवाई है. पुराने मिग-21 विमानों के साथ-साथ चीता/चेतक हेलीकाप्टरों ने हाल के वर्षों में एक खतरनाक दुर्घटना रिकॉर्ड दर्ज किया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, बीते गुरुवार (4 मई) को एक और दुर्घटना के बाद सेना ने अपने सभी ‘ध्रुव’ उन्नत हल्के हेलीकॉप्टरों (एएलएच) को रोक दिया है, जिससे सशस्त्र बलों में 300 ऐसे स्वदेशी दोहरे इंजन वाले हेलिकॉप्टरों के बेड़े की समस्याओं की व्यापक जांच की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है.

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में बीते चार मई को आर्मी एएलएच मार्क-III की दुर्घटना, जिसमें एक सैनिक की मौत हो गई और दो पायलट घायल हो गए, छह महीने में हेलिकॉप्टर की चौथी बड़ी दुर्घटना थी.

नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘मिग-21 और चीता/चेतक हेलीकॉप्टर, जो 1960 के दशक के डिजाइन विंटेज की सिंगल-इंजन मशीनें हैं, ने अपनी परिचालन उपयोगिता को काफी समय पहले ही समाप्त कर दिया है, लेकिन नई तकनीक वाले विमानों और हेलीकॉप्टर को शामिल किए जाने के अभाव में सशस्त्र बल क्या कर सकते हैं?’

रिपोर्ट के अनुसार, पुरानी अत्यधिक मांग वाले विमान, जिनमें आधुनिक वैमानिकी और निहित सुरक्षा सुविधाओं का अभाव है, पायलटों के साथ-साथ तकनीशियनों का अपर्याप्त प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण, खराब रखरखाव और ओवरहाल प्रथाओं तथा पुर्जों पर गुणवत्ता नियंत्रण की कमी, ये सभी कारण अस्वीकार्य उच्च दुर्घटना दर की ओर ले जाती हैं.

क्रमिक रिपोर्टों से पता चलता है कि ‘मानवीय त्रुटियां (पायलट/तकनीकी चालक दल)’ और ‘तकनीकी दोष’ लगभग 90 प्रतिशत दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं, जिनमें ‘पक्षी’ और अन्य कारण अलग हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि जवाबदेही ठीक से तय होने के बाद सुधारात्मक और कड़ी कार्रवाई के साथ नियंत्रण और संतुलन की एक और अधिक मजबूत प्रणाली की जल्द से जल्द सख्त जरूरत है.

पूर्व नौसेना एविएटर और परीक्षण पायलट कमांडर केपी संजीव कुमार (सेवानिवृत्त) ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि उम्मीद है कि चीजें आगे ठीक हो जाएंगी. भविष्य के ऑर्डर की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए, इससे पहले कि अधिक दुर्घटनाएं कीमती जीवन छीन लें.

सशस्त्र बल अपने अप्रचलित चीता और चेतक बेड़े को बदलने के लिए दो दशकों से अधिक समय से 498 नए हल्के हेलीकाप्टरों की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हो सकी है.

भारतीय वायुसेना को सोवियत मूल के मिग-21 विमान उड़ाने के लिए मजबूर किया जाता है, जो 1963 में वायुसेना द्वारा शामिल किए जाने वाले पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमान थे और नए विमानों विशेष रूप से स्वदेशी तेजस हल्के लड़ाकू विमानों के बेड़े में शामिल होने में भारी देरी के कारण बाद के वर्षों में इन्हें (मिग-21) ही अपग्रेड किया गया.

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