मुज़फ़्फ़रनगर दंगा: सामूहिक बलात्कार के दो आरोपियों को कोर्ट ने दोषी माना

उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में सितंबर 2013 में हुए दंगों के दौरान तीन लोगों पर एक महिला से सामूहिक बलात्कार का आरोप लगा था. इनमें से एक की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी. अब अन्य दो आरोपियों को दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने बीस-बीस साल की क़ैद और जुर्माने की सज़ा सुनाई है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Joe Gratz/Flickr CC0 1.0)

उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में सितंबर 2013 में हुए दंगों के दौरान तीन लोगों पर एक महिला से सामूहिक बलात्कार का आरोप लगा था. इनमें से एक की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी. अब अन्य दो आरोपियों को दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने बीस-बीस साल की क़ैद और जुर्माने की सज़ा सुनाई है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Joe Gratz/Flickr CC0 1.0)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान एक मुस्लिम महिला से सामूहिक बलात्कार के मामले में मुजफ्फरनगर की एक निचली अदालत ने दो आरोपियों को दोषी ठहराया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले की शिकायतकर्ता अकेली ऐसी महिला हैं, जो दंगों के दौरान हुए बलात्कार के आरोपों को लेकर अदालत में मुकदमा लड़ती रहीं.

नवभारत टाइम्स के अनुसार, अदालत ने सामूहिक बलात्कार के दो आरोपियों को दोषी करार देते हुए 20-20 साल कैद और 15-15 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है.

मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने तीन आरोपियों- कुलदीप सिंह, महेशवीर और सिकंदर मलिक के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी. साल 2020 में इनमें से एक- कुलदीप सिंह की मौत हो गई थी. इन पर सितंबर 2013 में दंगों के दौरान फुगाना क्षेत्र के एक गांव में 26 वर्षीय महिला के सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया गया था.

आरोप आईपीसी की धारा 376 (2)(जी) के तहत लगाए गए थे, जो सामूहिक बलात्कार, 376-डी (मेडिकल देखभाल देने वाले द्वारा बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के लिए सजा से संबंधित है.

लाइव लॉ मुताबिक, आईपीसी की धारा 376 (2)(जी) के तहत दी गई यह पहली सजा हो सकती है. यह धारा 2013 के आपराधिक कानूनों में संशोधन के बाद से सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार को एक विशिष्ट हिंसा के रूप में अलग करती है.

इससे पहले शिकायतकर्ता महिला ने मामले की सुनवाई जल्द खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

अभियोजन पक्ष की अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने बताया, ‘सुप्रीम कोर्ट निचली अदालत को आदेश दिया था कि इस मामले को लंबे समय तक टाला ना जाएा और वह इस मामले को प्राथमिकता से ले. इसके बाद इस मामले की प्रतिदिन सुनवाई हुई थी.’

ग्रोवर ने जोड़ा कि उन्होंने शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा था कि अभियुक्त निचली अदालत में सुनवाई की प्रक्रिया में विलंब कराने की कोशिश कर रहे हैं.

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