मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट के तहत दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता दक्षा की मंगलवार को मौत हो गई. इससे पहले मार्च और अप्रैल में भी एक-एक चीते की मौत हो चुकी है.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में कूनो नेशनल पार्क, जहां चीता प्रोजेक्ट शुरू हुआ है, में मंगलवार को भारत लाए गए तीसरे अफ्रीकी चीते की मौत हो गई.
रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों में से एक मादा- दक्षा की 9 मई को मृत्यु हो गई. माना जा रहा है कि उसकी मौत की वजह सहवास के दौरान एक नर चीते द्वारा पहुंचाई गई चोट है.
यह घटना 8 मई को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के उस बयान के ठीक बाद आई है कि जिसमें कहा गया था कि इस साल मानसून आने से पहले कूनो में पांच और चीतों को जंगल में छोड़ दिया जाएगा. शेष दस को मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य सहित वैकल्पिक स्थलों पर छोड़ा जाएगा.
कूनो में हुई यह मौत बीते 45 दिनों में हुई ऐसी तीसरी घटना है.
ज्ञात हो कि बीते साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर पहली खेप में दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को कूनो लाया गया था. इनमें से एक मादा चीता साशा की मार्च में मौत हो गई थी. इसके बाद 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते कूनो लाए गए थे. अप्रैल में इनमें से एक नर चीते उदय की मौत हो गई थी. इसी दौरान पहली खेप में नामीबिया से आई ‘ज्वाला’ ने चार शावकों को जन्म दिया था.
दक्षा की मौत के बाद मध्य प्रदेश वन विभाग द्वारा जारी प्रेस नोट में कहा गया है कि ‘दक्षा’ को निगरानी दल ने मंगलवार को सुबह सवा 10 बजे गंभीर रूप से घायल अवस्था में पाया. पशु चिकित्सकों ने उसका इलाज किया लेकिन उसी दिन दोपहर 12 बजे उसकी मौत हो गई.
विभाग ने आगे कहा है, ‘मृत चीता के शरीर पर पाए गए घाव समागम के प्रयास के दौरान नर चीते के हिंसक संपर्क के कारण प्रतीत होते हैं. संभोग के दौरान मादा चीतों के प्रति नर चीतों का ऐसा हिंसक व्यवहार सामान्य कहा जाता है. ऐसे में निगरानी दल के दखल की संभावना न के बराबर और व्यवहारिक रूप से नामुमकिन है.’
कूनो में पांच और चीते छोड़े जाएंगे
इससे पहले 8 मई को जारी एक बयान में एमओईएफसीसी ने बताया था कि जून महीने में मानसून की शुरुआत से पहले कूनो में पांच और चीतों को छोड़ा जाएगा. इनमें तीन मादा और दो नर चीते हैं. मंत्रालय ने यह भी कहा कि चीतों को केएनपी से बाहर जाने दिया जाएगा और उन्हें ‘तब तक आवश्यक रूप से वापस नहीं लाया जाएगा, जब तक कि वे उन क्षेत्रों में प्रवेश न करें, जहां उन्हें महत्वपूर्ण खतरा हो.’
बयान ने यह भी कहा गया कि एनटीसीए के निर्देश पर विशेषज्ञों की एक टीम ने ‘प्रोजेक्ट चीता’ की वर्तमान स्थिति की समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया. एड्रियन टोरडिफ, पशु चिकित्सा वन्यजीव विशेषज्ञ, प्रिटोरिया विश्वविद्यालय, दक्षिण अफ्रीका, विन्सेंट वैन डेर मर्व, प्रबंधक, चीता मेटापोपुलेशन प्रोजेक्ट, दक्षिण अफ्रीका, क़मर कुरैशी, प्रमुख वैज्ञानिक, भारतीय वन्यजीव संस्थान, और अमित मलिक, वन महानिरीक्षक, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की टीम ने 30 अप्रैल को केएनपी का दौरा किया था.