यूपी: मलियाना नरसंहार के पीड़ितों ने 40 आरोपियों को बरी किए जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी

मेरठ के मलियाना में 23 मई 1987 को दंगे भड़क गए थे, जिनमें 63 लोगों की मौत हुई थी. बीते अप्रैल महीने में मेरठ की एक अदालत ने 36 साल पुराने इस मामले में आगजनी, हत्या और दंगा करने के आरोपी 40 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: वूमट्रैपिट/विकिमीडिया कॉमन्स CC0 1.0)

मेरठ के मलियाना में 23 मई 1987 को दंगे भड़क गए थे, जिनमें 63 लोगों की मौत हुई थी. बीते अप्रैल महीने में मेरठ की एक अदालत ने 36 साल पुराने इस मामले में आगजनी, हत्या और दंगा करने के आरोपी 40 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: वूमट्रैपिट/विकिमीडिया कॉमन्स CC0 1.0)

नई दिल्ली: मलियाना नरसंहार मामले में 40 अभियुक्तों को ‘सबूतों के अभाव में’ बरी किए जाने के एक महीने बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार किया है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मामला जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और मनीष कुमार निगम की अगुवाई वाली अदालत संख्या 48 में सूचीबद्ध किया गया था. कोर्ट ने इस संबंध में निचली अदालत से रिकॉर्ड तलब किया है.

अख़बार के अनुसार, एक वकील रियासत अली खान ने बताया, ‘निचली अदालत के न्यायाधीश लखविंदर सिंह सूद द्वारा दिए फैसले को चुनौती देने वाली हमारी याचिका को उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है और हमें उम्मीद है कि जल्द ही याचिका पर सुनवाई शुरू होगी. याचिका नरसंहार के एक पीड़ित रईस अहमद की ओर से दायर की गई है. हाईकोर्ट में वकील सैयद शाहनवाज शाह केस लड़ेंगे.’

ज्ञात हो कि 14 अप्रैल 1987 को शब-ए-बारात के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा, जिसमें 12 लोग मारे गए थे. इसके परिणामस्वरूप 22 मई 1987 को हाशिमपुरा में भड़के दंगों के बाद 23 मई 1987 को मलियाना में भी दंगे भड़क गए थे. मलियाना में हुई हिंसा में 63 लोगों की मौत हुई थी, जबकि हाशिमपुरा में 42 लोगों की जान चली गई थी.

हाशिमपुरा मामले में आरोप था कि पीएसी के जवानों ने उनकी हिरासत में लिए गए 38 मुस्लिमों को गोली मारी थी. अक्टूबर 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. अदालत ने इस नरसंहार को पुलिस द्वारा निहत्थे और निरीह लोगों की ‘लक्षित हत्या’ करार दिया था.

बीते अप्रैल महीने में मलियाना के आरोपियों को जिस तरह बरी किया गया था, उसी तरह निचली अदालत ने 2015 में हाशिमपुरा के आरोपियों को बरी करते हुए कहा था कि उनका दोष संदेह से परे स्थापित नहीं हुआ. हालांकि, बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा था कि पीएसी जवानों के ख़िलाफ़ सबूत पक्के हैं और उनके ख़िलाफ़ आरोप बिना किसी शक के सही साबित हुए हैं.

अब मलियाना के पीड़ितों को इलाहाबाद हाईकोर्ट से इसी तरह के फैसले की उम्मीद है. रियासत अली कहते हैं, ‘हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और उम्मीद है कि पीड़ितों के परिवारों और सर्वाइवर्स को भी हाशिमपुरा के भाइयों की तरह इंसाफ मिलेगा.’

गौरतलब है कि अप्रैल-मई 1987 में मेरठ में भयानक सांप्रदायिक दंगे हुए थे. मेरठ में 14 अप्रैल 1987 को शब-ए-बारात के दिन शुरू हुए सांप्रदायिक दंगों में दोनों संप्रदायों के 12 लोग मारे गए थे. इन दंगों के बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया और स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया.

हालांकि, तनाव बना रहा और मेरठ में दो-तीन महीनों तक रुक-रुक कर दंगे होते रहे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इन दंगों में 174 लोगों की मौत हुई और 171 लोग घायल हुए. वास्तव में ये नुकसान कहीं अधिक था. विभिन्न गैर सरकारी रिपोर्टों के अनुसार मेरठ में अप्रैल-मई में हुए इन दंगों के दौरान 350 से अधिक लोग मारे गए और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई.

शुरुआती दौर में दंगे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच का टकराव थे, जिसमें भीड़ ने एक दूसरे को मारा, लेकिन 22 मई के बाद कथित तौर पर ये दंगे दंगे नहीं रह गए थे और यह मुसलमानों के खिलाफ पुलिस-पीएसी की नियोजित हिंसा थी.

विभिन्न रिपोर्ट्स के अनुसार, 1987 के मेरठ दंगों के दौरान 2,500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था. जिनमें से 800 को मई (21-25) 1987 के अंतिम पखवाड़े के दौरान गिरफ्तार किया गया था. जेलों में भी हिरासत में हत्या के मामले थे.

क्या हुआ था मलियाना में?

हाशिमपुरा की घटना के अगले दिन पीएसी इस सूचना के आधार पर मलियाना गांव गई थी कि वहां मेरठ के मुस्लिम समुदाय के लोग छिपे हुए थे. आरोप है कि पीएसी जवान वहां गए और पुरुष, महिलाओं और बच्चों पर अंधाधुंध गोलियां चला दी थी. इसके साथ ही कुछ पीड़ितों को उनके घर के अंदर जिंदा जला दिया गया था.

बताया जाता है कि मलियाना नरसंहार में मरने वालों की वास्तविक संख्या की जानकारी नहीं है, लेकिन आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 117 लोग मारे गए थे, 159 लोग घायल हुए थे. इसके अलावा 623 घर, 344 दुकानें और 14 फैक्टरियां लूटे गए, जलाए गए और उन्हें नष्ट कर दिया गया.

मलियाना नरसंहार के मुख्य शिकायतकर्ता याकूब ने द वायर को बताया था, ‘23 मई 1987 के दिन जो नरसंहार मलियाना में हुआ था, उसमें मुख्य भूमिका पीएसी की थी. शुरुआत पीएसी की गोलियों से ही हुई थी और दंगाइयों ने पीएसी की शरण में ही इस नरसंहार को अंजाम दिया था.’

पेशे से ड्राइवर याकूब अली इन दंगों के वक्त 25-26 साल के थे. उन्होंने ही इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई थी. इसी रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने दंगों की जांच की और कुल 84 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया. इस रिपोर्ट के अनुसार, 23 मई 1987 के दिन स्थानीय हिंदू दंगाइयों ने मलियाना कस्बे में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों की हत्या की और उनके घर जला दिए थे.

लेकिन याकूब का कहना था कि उन्होंने यह रिपोर्ट कभी लिखवाई ही नहीं थी. इस एफआईआर में कुल 93 लोगों के नाम आरोपित के तौर पर दर्ज किए गए थे.

याकूब ने कहा था, ‘ये सभी नाम पुलिस ने खुद ही दर्ज किए थे.’ हालांकि याकूब यह भी मानते हैं कि इस रिपोर्ट में अधिकतर उन्हीं लोगों के नाम हैं, जो सच में इन दंगों में शामिल थे, लेकिन एफआईआर में किसी भी पीएसी वाले के नाम को शामिल न करने को उन्होंने पुलिस की चाल बताया था.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq