बजरंग दल के पहले ग्लोबल लीडर नरेंद्र मोदी ने दल का गुणगान क्यों नहीं किया? वे बजरंग दल के काम क्यों नहीं गिना सके? बजरंग दल के विरोधी उसे बुरा-बुरा कहते हैं, तो मोदी और भागवत उसे अच्छा-अच्छा क्यों नहीं कह सके?
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने बजरंग दल को संघ परिवार के भीतर मुख्य दल के रूप में स्थापित कर दिया है. अभी तक यह संगठन संघ परिवार का कभी घोषित तो कभी अघोषित हिस्सा माना जाता था, इसकी छवि ऐसी बताई जाती थी कि इसके दम पर सड़क पर राज करने वाला संघ परिवार भी दूरी बनाकर रखता रहा है. इस बार भी संघ परिवार ने कमोबेश यही दूरी बना कर रखी. बजरंग दल के साथ छल हो गया. नरेंद्र मोदी ने यह नहीं कहा कि बैन नहीं होने देंगे. बस, बजरंग बली का नारा लगा कर चले गए.
कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन करने की बात की. यह साहसिक राजनीतिक दांव था जो सफल रहा. भले कांग्रेस इस चुनाव में इस वजह से ही हार जाए लेकिन राजनीतिक लड़ाई बहुत लंबी होती है. चुनाव ही सब कुछ नहीं होता है.
कांग्रेस ने बजरंग दल और पीएफआई पर बैन बात कर संघ परिवार के अंतर्विरोधों को उजागर कर दिया है. पहले तो इसे गुप्त समर्थकों को बाहर आने का मौका दिया और दूसरा यह भी दिखा दिया कि इसके बाद भी कोई खुलकर बजरंग दल का समर्थन नहीं कर पाया. यह कांग्रेस की बड़ी रणनीतिक जीत है. उम्मीद है बजरंग दल को यह दिख पाएगा.
बजरंग दल को भी समझना चाहिए कि उसके सहारे सड़क पर गोरक्षा से लेकर वेरायटी-वेरायटी के जिहाद और तमाम शोभायात्राओं से जुड़े मुद्दे ज़िंदा रहते हैं मगर सम्मान से लेकर पद तक का लाभ भाजपा को मिलता है. मेहनत बजरंग दल की और मलाई भाजपा को.
बजरंग दल ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अंग्रेज़ी बोलने वाले पत्रकार तक उसके पक्ष में सामने आएंगे. गोदी मीडिया के संभ्रांत एंकरों और अंग्रेज़ी के पत्रकारों को इस बात से झूठी नाराज़गी है कि किसी ने भीतर से कांग्रेस का नुकसान कर दिया लेकिन बजरंग दल को यह देखना चाहिए कि कांग्रेस ने बैन करने की बात कर उसकी मेहनत पर मुफ्त मलाई खाने वालों को अब जाकर कुछ काम दिया है. वे बजरंग दल का समर्थन कर रहे हैं.
लेकिन इसमें एक बड़ा ‘लेकिन’ है. बजरंग दल को अभी भी पूरी तरह वैधता नहीं मिली है. इस संगठन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आवारा या उत्पाती समझा जाता रहा है. कोई गर्व से नहीं कहता कि वह भाजपा में बजरंग दल से आया है. मैं नहीं जानता कि इस वक्त भाजपा के कितने बड़े पदाधिकारी और विधायक से लेकर सांसद तक बजरंग दल की पृष्ठभूमि से हैं. बल्कि बजरंग दल को ही इसका अध्ययन करना चाहिए ताकि पता चले कि हिंदुत्व की शाखाओं में उसका राजनीतिक महत्व क्या है.
बजरंग दल यह काम आसानी से कर सकता है कि हिंदुत्व संगठन परिवार को बता सकता है कि उसके यहां से कितने नेता भाजपा में हैं. फिर भी वे बजरंग दल पर बैन के खिलाफ आगे नहीं आए. इस नज़र से देखें, तो यह बजरंग दल के साथ अन्याय है. मैं कर्नाटक चुनाव में बजरंग दल से जुड़े मुद्दे को इसी नज़र से देखता हूं. जिस तरह से राहुल गांधी ने सूट-बूट की सरकार का नारा देकर नरेंद्र मोदी का महंगा सूट एक झटके में उतरवा दिया था, उसी तरह से बजरंग दल पर बैन की बात कर राहुल ने नरेंद्र मोदी को सामने ला दिया कि वे आगे आएं और बजरंग दल का समर्थन करें.
मगर यहां भी सूट उतारने वाली बेईमानी हो गई. जिस तरह से सूट को नीलाम कर मोदी ने एक महत्वाकांक्षी शौक से छुटकारा पा लिया है उसी तरह से बजरंग बली का नारा लगाकर बजरंग दल के साथ अन्याय कर दिया. साफ-साफ बजरंग दल की खूबियों के बारे में नहीं कहा. बैन का विरोध नहीं किया.
मैंने उनके भाषण विस्तार से नहीं सुने हैं मगर जो छपा है और जितना मैंने देखा है, उससे यही लगा कि उन्होंने बजरंग बली की पूजा पर रोक का मुद्दा बना दिया. जो कि मुद्दा ही नहीं था. ऐसा कर मोदी ने बजरंग दल को ही अपमानित किया है. अगर वे इसे ज़रूरी संगठन मानते हैं, मानते हैं कि बजरंग दल ने हिंदुत्व की राजनीति को हुड़दंग बल नहीं बल्कि आदर्श बल प्रदान किया है तो उसका बचाव उसके काम के आधार पर करना चाहिए था. इसकी जगह वे बजरंग बली का मुद्दा बनाने लगे.
सभी को पता है कि बजरंग बली की पूजा पर कोई रोक नहीं लगा सकता है. कोई चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता है. पवन पुत्र को कौन बांध सकता है या रोक सकता है. लेकिन प्रधानमंत्री ने एक गंभीर मुद्दे को ड्रामा में बदल दिया. पत्रकारों में साहस नहीं है कि प्रधानमंत्री की इस बेईमानी को उजागर करते और पूछते कि बजरंग दल की दस खूबियां क्यों नहीं बता रहे हैं. साफ-साफ क्यों नहीं बोल रहे हैं कि बजरंग दल को बैन नहीं होने देंगे.
प्रधानमंत्री ने एक तरह से फिर से बजरंग दल को उस मोड़ पर अकेला छोड़ दिया, जहां उसके आलोचक उसे अवैध और आवारा संगठन के रूप में चिह्नित करते रहते हैं. क्या आरएसएस प्रमुख ने बजरंग दल को बैन करने पर कोई प्रमुख बयान दिया है? यह एक बड़ा मौका था बजरंग दल के अच्छे कामों को उनके मुख से सुनने का, मगर बोलने वालों ने बेईमानी कर दी तो इसमें कांग्रेस की क्या गलती है.
फिर भी कर्नाटक चुनाव के इस मुद्दे के बहाने बजरंग दल को पहली बार ग्लोबल और नेशनल नेता मिला है. उस नेता का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. वे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जो बजरंग दल के लिए आगे आए हैं. पूरी तरह से भले नहीं आए हैं मगर दो कदम आगे तो आए ही हैं.
अभी तक जब भी बजरंग दल के बारे में पढ़ा करता था, कहीं ये साफ़-साफ़ लिखा नहीं मिलता था कि आप किसके हैं? आप कहां से है? कोई संघ परिवार लिखता था, कोई आरएसएस लिखता था तो कोई भाजपा का बताता था? उसके नेता कभी भाजपा में दिखते रहे हैं तो कभी आरएसएस के बताए जाते रहे हैं.
क्या कभी भाजपा ने कहा है कि बजरंग दल हमारा है? क्या भाजपा अपनी अगली राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रस्ताव पास करेगी कि बजरंग दल हमारा संगठन है. एक राष्ट्रीय संगठन है. इसका सारा काम उच्च आदर्शों से प्रेरित है?
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने कहा है कि बजरंग दल और पीएफआई को बैन करेंगे मगर चर्चा केवल बजरंग दल की हुई. वो भी बजरंग दल की नहीं, बजरंग बली की हुई. बजरंग बली केवल बजरंग दल के नहीं हैं. पीएफआई पर बैन करने पर किसी ने धार्मिक नारा नहीं दिया, दिया होता तो क्या होता?
मगर बजरंग दल पर बैन की बात को लेकर प्रधानमंत्री चुनावी परंपराओं को तोड़कर बजरंग बली की जय बोलने लगे. प्रधानमंत्री को बजरंग दल के गुणों के बारे में बताना चाहिए था, मगर लगता है कि वे खुद ही संतुष्ट नहीं हैं कि यह दल सर्वगुणसंपन्न दल है. एक लाइन में, बजरंग दल के विरोधी उसे बुरा-बुरा तो कहते ही हैं, मोदी और भागवत उसे अच्छा-अच्छा क्यों नहीं कह सके?
बजरंग दल इस पर विचार करे कि उनके संगठन का काम क्या इतना खराब है कि उसके काम को गिनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बचाव नहीं कर सकते? बजरंग बली की जगह मोदी कहते कि हम सब हैं बजरंग दली, तब माना जाता कि कांग्रेस का दांव गलत था. कांग्रेस ने दिखा दिया कि मोदी चाहे जितना धार्मिक मुद्दा बना लें, बजरंग दल का राजनीतिक समर्थन नहीं कर सकते हैं.
2016 में मोदी ने कहा था कि पड़ताल की जाए, तो इनमें से 80 प्रतिशत लोग ऐसे निकलेंगे, जो गोरक्षा की दुकान खोलकर बैठ गए हैं. ऐसे लोगों पर मुझे बहुत गुस्सा आता है. राज्य सरकारों से उन्होंने ऐसे लोगों का डोजियर तैयार कर उनके खिलाफ कार्रवाई की अपील की. उस वक्त हिंदू महासभा नाराज़ हो गई थी.
गोरक्षा से जुड़े मामले में बजरंग दल वालों के भी नाम आ जाते हैं. मुझे नहीं पता कि बजरंग दल को प्रधानमंत्री का यह बयान कैसा लगा होगा. क्या कर्नाटक में प्रधानमंत्री नहीं कह सकते थे कि बजरंग दल को बैन करेंगे तो गोरक्षा का काम कौन करेगा, जबलपुर में कांग्रेस के दफ्तर में घुसकर तोड़-फोड़ कौन करेगा? हो सकता है कि मोदी अभी भी मानते हों कि गोरक्षा के काम में लगे 80 प्रतिशत लोग गोरक्षा की दुकान चलाते हैं.
देखा जाए तो बजरंग बली का नाम लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि बचा ली. मेरा सवाल है कि आखिर नरेंद्र मोदी बजरंग दल की तारीफ क्यों नहीं कर सके? बजरंग दल के काम क्यों नहीं गिना सके? बजरंग दल के साथ कांग्रेस ने अन्याय नहीं किया, भाजपा ने किया है. अगर बजरंग दल बजरंग बली के अनुयायी है तब तो और खुलकर मोदी को बचाव करना चाहिए था. मोदी ने नहीं किया. अगर राहुल खुलकर इस मुद्दे को उठाते हैं तो मोदी मजबूर होंगे कि वे अगला चुनाव बजरंग दल के टिकट पर लड़ें. बजरंग दल को सम्मान देने का इससे ऐतिहासिक मौक़ा दूसरा क्या होगा?
(मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित)