बिलक़ीस बानो: दोषी को सुनवाई का नोटिस नहीं मिला, कोर्ट ने इसे अख़बारों में प्रकाशित करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला यह उन शिकायतों के जवाब में दिया, जिसमें कहा गया था कि मामले के एक दोषी को नोटिस नहीं दिया जा सका, क्योंकि वह अपने पते पर नहीं मिला. आरोप है कि बचाव पक्ष सुनवाई को टालने की कोशिश कर रहा है. बिलक़ीस ने दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

साल 2017 में दिल्ली में हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपने पति याकूब और बेटी के साथ बिलकीस बानो. (फाइल फोटो: शोम बसु)

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला यह उन शिकायतों के जवाब में दिया, जिसमें कहा गया था कि मामले के एक दोषी को नोटिस नहीं दिया जा सका, क्योंकि वह अपने पते पर नहीं मिला. आरोप है कि बचाव पक्ष सुनवाई को टालने की कोशिश कर रहा है. बिलक़ीस ने दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

साल 2017 में दिल्ली में हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपने पति याकूब और बेटी के साथ बिलकीस बानो. (फाइल फोटो: शोम बसु)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (9 मई) को कहा कि बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या मामले में रिहा किए गए 11 दोषियों में से कुछ का जवाब पाने के लिए एक अंग्रेजी और एक गुजराती अखबार में नोटिस प्रकाशित किए जाने चाहिए.

द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह उन शिकायतों के जवाब में था कि दोषियों को नोटिस दिए जाने के लिए उनके पते पर नहीं पाया जा सकता था.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने बिलकीस बानो और अन्य याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे उन दोषियों को सुनवाई का नोटिस देने के लिए कदम उठाएं, जिन्हें अभी तक नोटिस नहीं मिला है और दो अखबारों में एक सार्वजनिक नोटिस भी प्रकाशित करें.

अदालत ने बीते 2 मई को यह सूचित किए जाने के बाद सुनवाई स्थगित कर दी थी कि कुछ दोषियों को नोटिस नहीं दिया जा सका था.

जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ, जिसने नोटिस दिए जाने की स्थिति जानने के लिए मंगलवार को फिर से मामले की सुनवाई की, को बताया गया कि रिहा किए गए पुरुषों में से एक को नोटिस नहीं दिया जा सका, क्योंकि वह उनके पते पर नहीं मिला और उनका फोन स्विच ऑफ था.

बिलकीस की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने कहा, ‘उनके घर पर ताला लगा हुआ था और उनका फोन स्विच ऑफ था. नोटिस की एक प्रति वॉट्सऐप पर भेजी गई थी, और दूसरी उनके घर के मुख्य दरवाजे पर चिपकाई गई थी.’

उन्होंने कहा कि उस व्यक्ति के भाई और भतीजे ने यह कहते हुए नोटिस स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि वे उनके ठिकाने के बारे में कुछ नहीं जानते हैं.

द टेलीग्राफ के अनुसार, शोभा गुप्ता ने कहा कि दोषियों को नए नोटिस नहीं दिए जा सकते, क्योंकि वे अपने ज्ञात पते पर नहीं थे. इससे पहले भी गुप्ता ने कहा था कि औपचारिक नोटिस दिए गए थे, तब दोषियों के वकीलों ने यह कहते हुए प्रतिवाद किया था कि वे शहर में नहीं थे, इसलिए उन्हें नोटिस नहीं मिल सका.

इससे पहले जब बचाव पक्ष के वकीलों द्वारा मामले की सुनवाई टालने के लिए कहा गया, क्योंकि नोटिस दोषियों तक नहीं पहुंचे थे, तो जस्टिस जोसेफ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आरोप लगाया था कि बचाव पक्ष सुनवाई को जस्टिस जोसेफ के रिटायर होने तक टालने की कोशिश कर रहा है.

ऐसा लगता है कि यह सच हो गया है, क्योंकि मामला अब 10 जुलाई को सुनवाई के लिए निर्धारित है और जस्टिस जोसेफ 16 जून को रिटायर हो रहे हैं.

गुप्ता ने कहा कि पुलिस भी दोषियों का पता लगाने और नोटिस देने में सक्षम नहीं थी और उनके घर पर मौजूद रिश्तेदार नोटिस स्वीकार करने को तैयार नहीं थे.

उन्होंने कहा, ‘ये लोग क्षमा पर हैं. हमारी चिंता यह है कि ये लोग कम से कम हर पखवाड़े स्थानीय पुलिस स्टेशनों पर रिपोर्ट करें. नियम कहता है कि अगर कोई आपराधिक मामला है तो वारंट जारी किया जा सकता है. कृपया सीआरपीसी की धारा 64 और 65 देखें.’

मालूम हो कि 15 अगस्त 2022 को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.

बिलकीस बानो ने दिसंबर 2022 में गुजरात सरकार के फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जो अब विचाराधीन है.

शीर्ष अदालत द्वारा इस बारे में गुजरात सरकार से जवाब मांगे जाने पर राज्य सरकार ने कहा था कि दोषियों को केंद्र की मंज़ूरी से रिहा किया गया. गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सजा माफी का विरोध किया था.

अपने हलफनामे ने सरकार ने कहा था कि ‘उनका (दोषियों) व्यवहार अच्छा पाया गया था’ और उन्हें इस आधार पर रिहा किया गया कि वे कैद में 14 साल गुजार चुके थे. हालांकि, ‘अच्छे व्यवहार’ के चलते रिहा हुए दोषियों पर पैरोल के दौरान कई आरोप लगे थे.

एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 11 दोषियों में से कुछ के खिलाफ पैरोल पर बाहर रहने के दौरान ‘महिला का शील भंग करने के आरोप’ में एक एफआईआर दर्ज हुई और दो शिकायतें भी पुलिस को मिली थीं. इन पर गवाहों को धमकाने के भी आरोप लगे थे.

दोषियों की रिहाई के बाद सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था.

इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी.

उस समय इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने भी इसके बाद अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की थी.

गौरतलब है कि 3 मार्च 2002 को अहमदाबाद के पास एक गांव में 19 वर्षीय बिलकीस बानो के साथ 11 लोगों ने गैंगरेप किया था. उस समय वह गर्भवती थीं और तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. हिंसा में उनके परिवार के 7 सदस्य भी मारे गए थे, जिसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq