केंद्र सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति के कल्याण के लिए ‘प्रधानमंत्री सामाजिक समावेश मिशन’ शुरू करेगी. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि एससी और एसटी के सामने आने वाली समस्याएं समान नहीं हैं और उनके लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है.
नई दिल्ली: अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षा उपायों की निगरानी और उनका अमल सुनिश्चित करने वाले सरकारी निकाय- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री सामाजिक समावेश मिशन (पीएमएसआईएम) के ब्लूप्रिंट पर आपत्ति जताई है.
इस संबंध में इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है.
अख़बार के मुताबिक, आयोग की मुख्य आपत्ति यह है कि पीएमएसआईएम में दो प्रमुख और व्यापक रूप से भिन्न केंद्रीय पहलों- अनुसूचित जातियों के लिए विकास कार्य योजना (डीएपीएससी) और अनुसूचित जनजाति घटक (एसटीसी)- का विलय होगा.
एनसीएसटी ने सरकार को अवगत कराया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सामने आने वाली समस्याएं बहुत अलग हैं, और उनके लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है. दोनों पहलों को एक ही मद में रखना खतरनाक होगा.
नवीनतम पीएमएसआईएम योजना
केंद्र सरकार जल्द ही ‘एससी और एसटी के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री सामाजिक समावेश मिशन’ या पीएमएसआईएम योजना शुरू करेगी.
2.5 लाख करोड़ रुपये के बजट वाले इस फ्लैगशिप मिशन का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए लक्षित योजनाओं को लागू करना है. इसमें इन समुदायों और 50 फीसदी से अधिक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी वाले गांवों में रहने वाले लोगों को लाभान्वित करने वाली योजनाओं (छात्रवृत्ति और कौशल कार्यक्रमों समेत) को सीधे वित्तपोषित किया जाएगा.
हालांकि, नए मिशन में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लाभ के लिए स्थापित दो मौजूदा और बेहद अलग पहलों का भी विलय हो जाएगा. ये हैं- अनुसूचित जातियों के लिए विकास कार्य योजना (डीएपीएससी) और अनुसूचित जनजाति घटक (एसटीसी).
वर्तमान में यह दोनों योजना अलग-अलग काम कर रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, उनमें 41 केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों को बजट परिव्यय का एक निश्चित अनुपात (अनुसूचित जातियों के लिए लगभग 16.6 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए 8.6 प्रतिशत) लक्षित योजनाओं के लिए आवंटित करने की जरूरत होती थी.
दो आपत्तियां
इकोनॉमिक्स टाइम्स के मुताबिक, यह विलय पीएमएसआईएम की उन विशेषताओं में से एक है जिस पर एनसीएसटी ने आपत्ति जताई है.
अखबार के सूत्रों के मुताबिक, एनसीएसटी ने सरकार को बताया है कि ‘एससी और एसटी की समस्याएं ‘स्पष्ट रूप से भिन्न प्रकृति की हैं और अंतर की पहचान के लिए अलग-अलग रणनीतियों की आवश्यकता है और प्रचलित असमानताओं के साथ-साथ प्रशासनिक व्यवस्था और समाधान प्रदान करने के लिए भी दोनों श्रेणियों के लिए अलग एप्रोच की जरूरत है.’
एनसीएसटी ने सुझाव दिया है कि अनुसूचित जनजाति के लिए भिन्न दिशानिर्देश और रणनीति अपनाई जानी चाहिए.
पीएमएसआईएम का एक अन्य पहलू जिस पर एनसीएसटी ने आपत्ति जताई है, वह यह है कि इसमें कुछ मंत्रालयों और विभागों को अनुसूचित जनजाति कल्याण योजनाओं के लिए बजट आवंटित करने से छूट प्रदान की गई है. ये कोयला मंत्रालय, उपभोक्ता मामलों का विभाग, खान मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, एनसीएसटी ने इस छूट पर आपत्ति जताई है और इस पर सफाई मांगी है.