हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी समूह पर स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगने के बाद सेबी मामले की जांच कर रहा है. सेबी ने जांच के लिए छह महीने का समय मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच के लिए सेबी लंबा समय नहीं ले सकता है. हम उसे तीन महीने का समय देंगे.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच पूरी करने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा मांगी गई छह महीने की मोहलत नहीं दे सकता है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सेबी द्वारा अपनी जांच पूरी करने के लिए छह महीने का समय देने की अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.
समाचार वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा, ‘हम अब 6 महीने का समय नहीं दे सकते. काम में थोड़ी तत्परता बरतने की जरूरत है. एक साथ एक टीम रखो. हम अगस्त के मध्य में मामले को सूचीबद्ध कर सकते हैं और तब तक रिपोर्ट तैयार करें. न्यूनतम समय के रूप में 6 महीने नहीं दिए जा सकते हैं. सेबी अनिश्चितकाल की अवधि नहीं ले सकता है और हम उसे तीन महीने का समय देंगे.’
इसके बाद पीठ ने कहा कि वह सोमवार (15 मई) को समय विस्तार के लिए सेबी के आवेदन पर अपना आदेश सुनाएगा.
पीठ ने यह भी कहा कि उसे न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट प्राप्त हुई है, जिसकी अध्यक्षता शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस अभय मनोहर सप्रे ने की थी.
समिति में पूर्व बैंकर केवी कामत तथा ओपी भट्ट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, प्रतिभूति वकील सोमशेखर सुंदरसन और हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जेपी देवधर भी शामिल हैं.
पीठ ने कहा, ‘जस्टिस सप्रे की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट रजिस्ट्री में प्राप्त हो गई है और हम सप्ताहांत में रिपोर्ट देख सकते हैं. इसे सोमवार को सूचीबद्ध करें. हम समय मांगने के आपके आवेदन पर सोमवार को आदेश सुनाएंगे.’
सेबी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए.
बीते 2 मार्च को पारित एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दी थी. दो मई तक जांच पूरी करनी थी.
यह जांच जस्टिस सप्रे की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति के शीर्ष अदालत द्वारा आदेशित जांच के अतिरिक्त थी.
अदालत ने सेबी और विशेषज्ञ समिति दोनों को दो महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करने को कहा था. 29 अप्रैल को सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी जांच पूरी करने के लिए छह महीने का समय मांगा था.
रिपोर्ट के अनुसार, सेबी ने यह भी कहा था कि उसने विशेषज्ञ समिति को उसके द्वारा किए गए परीक्षण और जांच के संबंध में स्थिति, उठाए गए कदमों और अंतरिम निष्कर्षों से अवगत कराया है.
अपने आवेदन में बाजार नियामक सेबी ने प्रस्तुत किया था कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उद्धृत 12 संदिग्ध लेनदेन को कम से कम 15 महीने की कठोर जांच की आवश्यकता होगी क्योंकि वे लेनदेन जटिल हैं और कई उप-लेनदेन भी शामिल हैं.
इसके अलावा जांच के लिए कई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बैंकों से बैंक स्टेटमेंट प्राप्त करने की भी आवश्यकता होगी और बैंक स्टेटमेंट 10 साल से अधिक समय पहले किए गए लेनदेन के लिए भी होंगे, इसमें समय लगेगा और यह चुनौतीपूर्ण होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट से संबंधित चार याचिकाओं पर विचार किया है, जिसमें शेयर की कीमतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर अडानी समूह पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है.
इस रिपोर्ट के कारण अडानी समूह की विभिन्न कंपनियों के शेयर मूल्य में गिरावट आई थी और समूह को कथित तौर पर 100 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ था.
शीर्ष अदालत के समक्ष अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च के संस्थापक नाथन एंडरसन और भारत में उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच करने और एफआईआर दर्ज करने के लिए सेबी और केंद्रीय गृह मंत्रालय को निर्देश देने की मांग की गई है.
इस संबंध में दूसरी याचिका अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग की गई थी.
कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर की याचिका में अडानी समूह की कंपनियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग के अलावा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा कथित रूप से बढ़ी हुईं कीमतों पर कंपनी के शेयरों में निवेश करने के फैसले पर सवाल उठाया गया है.
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बीते अप्रैल महीने में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सेबी कम से कम तीन ऑफशोर इकाइयों के साथ अडानी समूह के लेनदेन में नियमों के संभावित उल्लंघन की जांच कर रहा है. मामले से वाकिफ लोगों ने समाचार एजेंसी को बताया कि इन इकाइयों के तार समूह के संस्थापक गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी से जुड़े हैं.
इससे पहले अडानी समूह ने घोषणा की थी कि ‘अडानी समूह और विनोद अडानी को एक ही व्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए’.
उल्लेखनीय है कि जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.