मनरेगा के तहत काम करने वाले मज़दूर डिजिटल बुनियादी ढांचे की कमी के बावजूद प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की सरकार की नीति का ख़ामियाजा भुगत रहे हैं. उपस्थिति के लिए लाया गया राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (एनएमएमएस) एप्लिकेशन और अनिवार्य आधार-आधारित भुगतान प्रणाली ने मज़दूरों की समस्याओं को और बढ़ा दिया है.
नई दिल्ली: किसी देश को डिजिटल रूप से बदलने की इच्छा के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है. हालांकि, भारत में ऐसा होता प्रतीत नहीं हो रहा है, विशेष तौर पर ग्रामीण इलाकों में, क्योंकि कई मनरेगा श्रमिकों ने अपनी मासिक मजदूरी मिलने में देरी होने की सूचना दी है.
जहां केंद्र सरकार डिजिटल अर्थव्यवस्था पर जोर दे रही है, वहीं पर्याप्त बैंकिंग बुनियादी ढांचे की कमी और उचित इंटरनेट कनेक्शन की अनुपलब्धता के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी अभी भी महत्वपूर्ण बनी हुई है.
इसी तरह, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम करने वाले मजदूर भी डिजिटल बुनियादी ढांचे की कमी के बावजूद प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की सरकार की नीति का खामियाजा भुगत रहे हैं.
यह राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (एनएमएमएस) एप्लिकेशन के कारण है, जिसे केंद्र सरकार ने मई 2021 में योजना के कार्यान्वयन में खामियों को रोकने के लिए पेश किया था. ऐप योजना के तहत काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की नियमित उपस्थिति दर्ज करता है.
हालांकि, समाचार वेबसाइट इंडियास्पेंड ने विशेषज्ञों के हवाले से कहा है कि ऐप को बंद करने की जरूरत है, क्योंकि यह कोई उद्देश्य पूरा नहीं करता है.
मनरेगा ने प्रवासी श्रमिकों को एक सुरक्षा कवच प्रदान किया है और कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण श्रमिकों के लिए इसे ‘रक्षक’ के तौर पर सराहा गया था.
एनएमएमएस ऐप का अनिवार्य इस्तेमाल
इंडियास्पेंड ने बताया है कि एनएमएमएस ऐप की शुरुआत से पहले श्रमिकों की उपस्थिति कागज पर भौतिक रूप से दर्ज की जाती थी, लेकिन एनएमएमएस के तहत श्रमिक की उपस्थिति को चिह्नित करने के लिए कार्यस्थल पर दो बार स्टाम्प और जियो-टैग की गईं तस्वीरें लिया जाना जरूरी है.
कई श्रमिकों ने इंडियास्पेंड को बताया कि क्षेत्र में उचित इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण ऐप से कई श्रमिकों की हाजिरी दर्ज नहीं हो पा रही है, जिससे वेतन भुगतान में देरी हो रही है.
झारखंड की चैनपुर पंचायत में रोजगार सेवक चंदन कुमार ने बताया, ‘हमारे क्षेत्र में बिजली और नेटवर्क दोनों की गंभीर समस्या है, जिसके कारण उपस्थिति दर्ज नहीं हो पा रही है. नई ऐप प्रणाली की शुरुआत के कारण करीब 30 लोग काम पर नहीं आ रहे हैं.’
सामाजिक कार्यकर्ता और मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने इंडिया स्पेंड को बताया, ‘इस ऐप को खत्म करने की जरूरत है. हम प्रौद्योगिकी विरोधी नहीं हैं. कोई भी इनकार नहीं कर रहा है कि भ्रष्टाचार है, लेकिन तकनीक को उपयुक्त होना चाहिए, लेकिन अब बोझ मजदूरों पर है.’
उन्होंने कहा कि काम करने के बाद भी श्रमिकों को बकाया वेतन नहीं मिलना ‘असंवैधानिक’ है.
दिलचस्प बात यह है कि पहले व्यवस्था श्रमिक को काम करने के लिए किसी भी समय आने की अनुमति देती थी.
चंदन ने इंडियास्पेंड को बताया, ‘एक बार जब वे आवंटित कार्य पूरा कर लेते थे, तो वे अन्य गैर-मनरेगा कार्यों के लिए जा सकते थे, लेकिन अब सुबह 6 बजे से 11 बजे (am) तक रहना अनिवार्य है, क्योंकि उसी समय में हाजिरी लगानी होती है.’
एक महिला मजदूर ने इंडियास्पेंड से कहा कि उसने करीब 7,000 रुपये उधार लेने के बाद एक नया फोन खरीदा, क्योंकि उसे बताया गया था कि एनएमएमएस ऐप नए फोन पर काम करेगा. हालांकि, फोन केवल 2G नेटवर्क को सपोर्ट करता था और ऐप उसमें नहीं चल सका.
इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली की एक रिपोर्ट में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के फैकल्टी सदस्य राजेंद्रन नारायणन ने कहा था, ‘चूंकि किसी मजदूर का उसकी तस्वीर से मिलान करने के लिए कोई बैक-एंड प्रमाणीकरण तंत्र नहीं है, इसलिए ऐप भ्रष्टाचार को रोकने के उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहता है, जिसके लिए कथित तौर पर इसे लाया गया था.’
इसके अलावा, दोनों समय ऐप में उपस्थिति दर्ज कराना अनिवार्य है. चंदन ने कहा, ‘यदि किसी भी सत्र के लिए उपस्थिति दर्ज नहीं की जाती है, तो उसे पूरे ही दिन की हाजिरी नहीं माना जाएगा.’
हालांकि, झारखंड में ही महुआदानर ब्लॉक के खंड विकास अधिकारी अमरंग डांग ने इंडियास्पेंड को बताया कि नेटवर्क की कोई समस्या नहीं है और एनएमएमएस के इस्तेमाल ने फर्जी उपस्थिति की समस्या कम कर दी है.
उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी श्रमिक को उपस्थिति दर्ज करने में कोई दिक्कत आती है तो वे उसका स्क्रीनशॉट लेकर प्रखंड मुख्यालय को सूचित कर सकते हैं. हालांकि, उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि नेटवर्क या तकनीकी त्रुटि के कारण उपस्थिति दर्ज नहीं होने पर श्रमिकों को मुआवजा कैसे दिया जाएगा.
आधार-आधारित भुगतान व्यवस्था
विशेषज्ञों ने मनरेगा मजदूरी के लिए अनिवार्य आधार-आधारित भुगतान प्रणाली की समस्या को भी उठाया. विकास अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने द वायर के लिए लिखा था कि यह कदम ‘आपदा का नुस्खा’ है.
उन्होंने यह कहते हुए समझाया था, ‘इसे समझने के लिए हमें मनरेगा मजदूरी भुगतान की मूल बातें याद रखने की जरूरत है. अब तक मनरेगा भुगतान प्रणाली मजदूरी भुगतान के दो तरीकों की अनुमति देती थी – ‘खाता-आधारित’ और ‘आधार-आधारित’. पहला वाला तरीका एक सामान्य बैंक ट्रांसफर था, जो मजदूर के नाम, बैंक के नाम और खाता संख्या पर आधारित था. दूसरा तरीका एबीपीएस संबंधित है, जिसमें आधार को वित्तीय पते के रूप में देखा जाता है.’
उन्होंने बताया था, ‘एबीपीएस विकल्प के काम करने के लिए न केवल मजदूर के जॉब कार्ड और बैंक खाते को आधार के साथ जोड़ा जाना चाहिए, बल्कि खाते को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) मैपर से भी जोड़ा जाना चाहिए, जिसे मैपिंग के तौर पर जाना जाता है. यदि किसी मजदूर के पास कई बैंक खाते हैं, जैसा कि अक्सर होता है, तो एबीपीएस उसके नवीनतम मैप किए गए बैंक खाते में मजदूरी भेजता है. यदि यह थोड़ा जटिल लगता है, तो सोचें कि यह एक औसत मनरेगा मजदूर को कैसा लगता होगा.’
लिब टेक इंडिया ने एक अन्य रिपोर्ट में कहा था कि यदि एनपीसीआई के साथ आधार-मैपिंग विफल हो जाती है तो भुगतान अस्वीकृत हो जाते हैं और मजदूरी आधार से जुड़े पिछले खाते में चली जाती है, जो कि कई खाता रखने वाले मजदूरों के लिए एक समस्या है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया था कि एपीबीएस की संरचना अपारदर्शी है और इसमें मजदूर के लिए यह पता लगाना असंभव हो जाता है कि किस खाते में उनका भुगतान जमा हुआ है. इसके समाधान में स्थानीय प्रशासन भी असफल रहता है, क्योंकि यह बेहद ही तकनीकी काम है या डिकोड करने में कठिनाई होती है.
मनरेगा श्रमिकों की मांग है कि सरकार ऐप-आधारित उपस्थिति प्रणाली, आधार-आधारित भुगतान प्रणाली को रद्द करे, मनरेगा बजट बढ़ाए और समय पर उनकी मजदूरी का भुगतान करे और उनकी लंबित मजदूरी को जारी करे. उन्होंने दिल्ली में लगातार 60 दिनों तक विरोध प्रदर्शन भी किया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 2 मई को केंद्र सरकार ने इस मामले पर सिविल सोसायटी संगठनों के साथ बातचीत भी की थी.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.