कर्नाटक में 1989 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से जीतने वाले वीरशैव-लिंगायत समुदाय के विधायकों की संख्या 45 थी. इस बार यह संख्या 34 रही. आम तौर पर भाजपा की तरफ़ झुकाव रखने वाले इस समुदाय के कांग्रेस में रुचि दिखाने का कारण उसके नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने से निपटने में भाजपा की उदासीनता को माना जा रहा है.
बेंगलुरु: वीरशैव-लिंगायत विधायकों के जीतने के लिहाज से कांग्रेस के लिए कर्नाटक के चुनाव परिणाम 1989 के बाद से सबसे अच्छे रहे हैं. तब पार्टी की अभूतपूर्व जीत में 45 वीरशैव-लिंगायत समुदाय के विधायक थे, इस बार कांग्रेस के टिकट पर 34 वीरशैव-लिंगायत विधायक जीते हैं.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव से कुछ हफ्ते पहले जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी के भाजपा छोड़ने से वीरशैव-लिंगायत के बीच भ्रम की स्थिति – विशेष तौर पर कित्तूर कर्नाटक क्षेत्र में – पैदा कर दी थी, जिसे समुदाय के भाजपा से कांग्रेस की ओर रुख करने का अहम कारण माना जा रहा है.
यहां तक कि जब कांग्रेस ने 2013 में सरकार बनाने के लिए भाजपा-केजेपी (कर्नाटक जनता पार्टी) के विभाजन का लाभ लिया था, तब भी उसके पास 26 वीरशैव-लिंगायत विधायक थे. 2018 में, इसके लिंगायत आंदोलन को समर्थन देने के बाद भी पार्टी के टिकट पर चुने गए वीरशैव-लिंगायत विधायकों की संख्या घटकर 16 रह गई थी.
अखबार के मुताबिक, भाजपा द्वारा बीएस येदियुरप्पा से 2021 में मुख्यमंत्री पद छोड़ने की बात कहने की घटना अभी भी लोगों के जहन में ताजा थी. वहीं, लिंगायत नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने से निपटने में भाजपा की उदासीनता ने समुदाय और धार्मिक संस्थानों को उससे दूर कर दिया. इसको लेकर गुस्सा पूरे क्षेत्र में समुदाय के सदस्यों के बीच फैल गया था.
अखबार ने लिखा है कि विशेष रूप से सावदी के पार्टी छोड़कर जाने से भाजपा, लिंगायतों के गनिगा उप-संप्रदाय के फैलाव के कारण, बड़े भौगोलिक क्षेत्र में प्रभावित हुई.
आरक्षण के मुद्दे पर पंचमसाली का गुस्सा बहुत ज्यादा था, क्योंकि एक साल से अधिक लंबे आंदोलन के बाद भी समुदाय को कोई खास लाभ नहीं मिला, जबकि बनजिगा उप-संप्रदाय में अपने नेता शेट्टार के अपमान की टीस थी.
पंचमशाली, जो संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा उप-संप्रदाय है, ने पिछले चुनावों में मजबूती से भाजपा का समर्थन किया था. संयोग से, तीनों समुदाय कित्तूर कर्नाटक क्षेत्र के बेलगावी, बागलकोट, विजयपुरा, हावेरी और धारवाड़ जिलों में बड़ी संख्या में हैं.
अखबार का कहना है कि दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सदर उप-संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो कि राजनीतिक रूप से मजबूत उप-जातियों में से एक है, इसके बावजूद भी भाजपा मध्य कर्नाटक क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने में विफल रही, जहां सदर आबादी अधिक है.
वहीं, भाजपा जिसके पास 2018 में 38 वीरशैव-लिंगायत विधायक थे, वह अब घटकर 18 रह गए हैं.
द हिंदू के अनुसार, दक्षिण कर्नाटक में जहां वोक्कालिगा बहुल क्षेत्र के कई निर्वाचन क्षेत्रों में लिंगायत अच्छी संख्या में हैं, उनके कांग्रेस में रुचि दिखाने से जेडी(एस) पर असर पड़ा है.