हिंडनबर्ग केस: सेबी के पूर्व में अडानी समूह की जांच से इनकार के बाद सरकार जांच की बात पर क़ायम

वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 19 जुलाई 2021 को लोकसभा को बताया था कि सेबी अडानी समूह की कंपनियों की जांच कर रहा है. अब सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उनके द्वारा अडानी समूह पर लगे किसी भी गंभीर आरोप की जांच नहीं की गई थी. इन विरोधाभासी बयानों के बाद विपक्ष के हमलावर होने पर वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वह लोकसभा में दिए अपने बयान पर क़ायम है.

(फोटो: पीटीआई)

वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 19 जुलाई 2021 को लोकसभा को बताया था कि सेबी अडानी समूह की कंपनियों की जांच कर रहा है. अब सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उनके द्वारा अडानी समूह पर लगे किसी भी गंभीर आरोप की जांच नहीं की गई थी. इन विरोधाभासी बयानों के बाद विपक्ष के हमलावर होने पर वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वह लोकसभा में दिए अपने बयान पर क़ायम है.

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नई दिल्ली: वित्त मंत्रालय ने सोमवार (15 मई) को कहा कि वह लोकसभा में अपने 2021 के जवाब पर कायम है कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अडानी समूह की जांच कर रहा था.

रिपोर्ट के अनुसार, वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जुलाई 2021 में लोकसभा को बताया था कि पूंजी बाजार नियामक अडानी समूह की जांच कर रहा है.

हालांकि, दूसरी ओर सेबी ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने 2016 के बाद से अडानी समूह की किसी भी कंपनी की जांच नहीं की है और उसका पिछला बयान ‘तथ्यात्मक रूप से निराधार’ था.

विपक्षी नेताओं ने कहा है कि यह मामले को दबाने की कोशिश है और दावा किया कि 2021 में सरकार ने लोकसभा को बताया था कि सेबी अडानी समूह की जांच कर रहा है.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक ट्वीट में कहा, ‘वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 19 जुलाई 2021 को लोकसभा को बताया था कि सेबी अडानी समूह की जांच कर रहा है. अब सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वे अडानी पर लगे किसी भी गंभीर आरोप की जांच नहीं कर रहे थे. जो बेहद खराब स्थिति है- या तो संसद को गुमराह किया जा रहा है, या गहरी नींद में सोया जा रहा है क्योंकि ऑफशोर शेल कंपनियों का इस्तेमाल करके कथित मनी लॉन्ड्रिंग और राउंड-ट्रिपिंग द्वारा लाखों निवेशकों को ठगा गया है. या इससे भी बदतर, क्या ऊपर से कोई रोकने वाला हाथ है?’

रमेश द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए लोकसभा रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह सवाल तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा संसद में पूछे गए प्रश्नों में एक था कि ‘क्या एफपीआई और/या अडानी की कंपनियां संदिग्ध लेन-देन को लेकर सेबी, आईटी, ईडी, डीआरआई, एमसीए द्वारा जांच के अधीन हैं…’

इस पर मंत्री ने पुष्टि की थी कि ‘सेबी नियमों के अनुपालन के संबंध में सेबी कुछ अडानी समूह की कंपनियों की जांच कर रहा है. इसके अलावा, राजस्व खुफिया निदेशालय अडानी समूह की कंपनियों से संबंधित कुछ संस्थाओं की जांच कर रहा है.’

बहरहाल, वित्त मंत्रालय ने रमेश के ही ट्वीट का जवाब केवल एक बयान में देते हुए कहा है, ‘सरकार 19 जुलाई 2021 को प्रश्न संख्या-72 पर लोकसभा में दिए अपने जवाब पर कायम है, जो सभी संबंधित एजेंसियों से प्राप्त इनपुट पर आधारित था.’

इसी तरह शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इस बारे में कहा, ‘सेबी ने 2016 के बाद से अडानी कंपनियों की किसी भी जांच से इनकार किया, अदालत में अपने ही बयान से इनकार किया? क्या कनिष्ठ मंत्री ने 19 जुलाई 2021 को अपने जवाब में जांच को लेकर देश से झूठ बोला था? यह कुछ छिपाया जा रहा है, लेकिन किसके इशारे पर?’

लाइव लॉ के मुताबिक, सेबी का दावा 15 मई को दायर एक हलफनामे में सामने आया, जिसमें उसने अडानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए और समय मांगा है.

बता दें कि अमेरिकी निवेश अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट में अडानी समूह की कंपनियों द्वारा स्टॉक हेरफेर और धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था, जिसने काफी हंगामा खड़ा कर दिया था.

लाइव लॉ के मुताबिक हलफनामे में कहा गया है, ‘यह आरोप कि सेबी बोर्ड 2016 से अडानी की जांच कर रहा है, तथ्यात्मक रूप से निराधार है.’

सेबी ने अपने जवाब में कहा कि अडानी समूह की कोई भी सूचीबद्ध कंपनी उन 51 कंपनियों का हिस्सा नहीं थी, जिन पर वह विचार कर रहा था.

कहा जा रहा है कि सेबी अन्य मामलों के साथ-साथ यह भी जांच कर रहा है कि क्या अडानी समूह की ओर से कुछ प्रमुख खुलासों की कमी ने ‘संबंधित पार्टी लेनदेन’ नियमों का उल्लंघन किया है, जिसके लिए वह जांच पूरी करने के लिए छह महीने का और समय मांग रहा है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला ने पिछले हफ्ते संकेत दिए थे कि वह पूरी कवायद खत्म करने के लिए तीन महीने से ज्यादा की अनुमति नहीं दे सकते. सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2 मार्च को दी गई दो महीने की मूल अवधि 2 मई को समाप्त हो गई थी.

2 अप्रैल और 26 अप्रैल को सेबी के अध्यक्ष ने इस मामले पर विशेषज्ञ समिति को जानकारी दी थी.

शीर्ष अदालत ने सेबी और उसके द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति दोनों से दो महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करने को कहा था. विशेषज्ञ समिति ने 10 मई को एक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी.

गौरतलब है कि पिछली सुनवाई (12 मई) में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा था कि चूंकि सेबी ने स्वीकार किया है कि उसने अडानी समूह के लेन-देन पर ‘2017’ से नजर रखी है, इसलिए समय के लिए उसका अनुरोध स्वीकार्य नहीं है, जिसके जवाब में सेबी ने हलफनामा दायर किया था.

द हिंदू के मुताबिक, सेबी के हलफनामे में कहा गया कि ‘याचिकाकर्ताओं द्वारा उल्लिखित जांच 51 भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा ग्लोबल डिपॉजिटरी रसीद (जीडीआर) जारी करने से संबंधित थी.’

सेबी ने आगे कहा, ‘अडानी समूह की कोई भी सूचीबद्ध कंपनी उपरोक्त 51 कंपनियों का हिस्सा नहीं थी. (51 कंपनियों की) जांच पूरी होने के बाद उचित कार्रवाई की गई थी.’