महाराष्ट्र: रत्नागिरी में तेल रिफाइनरी का विरोध जारी, लोगों ने पुलिस पर मारपीट का आरोप लगाया

महाराष्ट्र के रत्नागिरी के बारसु-सोलगांव में रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड के निर्माण का विरोध कर रहे ग्रामीणों ने महाराष्ट्र सरकार और स्थानीय प्रशासन पर दमन का आरोप लगाया है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि प्राचील शैल चित्रों की वजह से यह क्षेत्र यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है. उनके अनुसार, परियोजना के विरोध में अब तक 100 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.

रत्नागिरी जिले के बारसु-सोलगांव में स्थानीय लोगों ने रिफाइनरी के विरोध में एक मार्च निकाला था. (फोटो साभार: ट्विटर/@aviuv)

महाराष्ट्र के रत्नागिरी के बारसु-सोलगांव में रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड के निर्माण का विरोध कर रहे ग्रामीणों ने महाराष्ट्र सरकार और स्थानीय प्रशासन पर दमन का आरोप लगाया है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि प्राचील शैल चित्रों की वजह से यह क्षेत्र यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है. उनके अनुसार, परियोजना के विरोध में अब तक 100 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.

रत्नागिरी जिले के बारसु-सोलगांव में स्थानीय लोगों ने रिफाइनरी के विरोध में एक मार्च निकाला था. (फोटो साभार: ट्विटर/@aviuv)

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में राजापुर ब्लॉक के बारसु-सोलगांव में एक तेल रिफाइनरी के निर्माण का स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है.

बीते 23 अप्रैल को जब अधिकारियों ने इस रिफाइनरी को स्थापित करने के लिए प्रारंभिक मिट्टी परीक्षण शुरू किया था, विरोध में खड़े लोगों पर कानून प्रवर्तक एजेंसी की कार्रवाई को स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं द्वारा ‘अप्रत्याशित’ और क्रूर दमन बताया जा रहा है.

इस दौरान पुलिस पर विरोध प्रदर्शन में शामिल महिलाओं से मारपीट करने और महिलाओं तथा बच्चों को गर्मी से बचाने के लिए लगाए गए टेंट भी उखाड़ फेंकने के आरोप हैं.

रत्नागिरी रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (आरआरपीसीएल) को दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी माना जाता है. इसके 50 प्रतिशत हितधारक इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड हैं, और बाकी 50 फीसदी हिस्सेदारी सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको (Aramco) के पास है.


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इसकी स्थापना की प्रक्रिया का सामूहिक रूप से कोंकण और महाराष्ट्र के पर्यावरणविदों के साथ-साथ स्थानीय लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है, जो ‘बारसु-सोलगांव पंचक्रोशी विद्रोही संगठन’ के बैनर तले एकत्र हुए हैं.

परियोजना स्थल पर लगभग 2,000-2,500 पुलिसकर्मियों की तैनाती को इस विरोध से निपटने और उस पर अंकुश लगाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार को सर्वे करने से पहले संबंधित ग्राम पंचायतों से अनुमति लेनी चाहिए थी. वे आगे कहते हैं कि उन्हें इस कवायद की जानकारी तक नहीं दी गई थी.

सर्वे से एक दिन पहले रत्नागिरी पुलिस ने 22 अप्रैल 2023 को वरिष्ठ पर्यावरणविद मंगेश चव्हाण और सत्यजीत चव्हाण को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दावा किया कि सर्वे के दौरान किसी भी तरह की गड़बड़ी से बचने के लिए केवल निषेधात्मक उपाय के तौर पर गिरफ्तारी की गई थी और उन्हें तीन दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.

बारसु-सोलगांव में लोग का विरोध प्रदर्शन. (फोटो साभार: ट्विटर/@aviuv)

यहां तक कि जब प्रशासन ने स्थानीय लोगों को सूचित किया कि मंगेश और सत्यजीत को 25 अप्रैल को रिहा कर दिया जाएगा, तब भी उन्हें 26 अप्रैल तक रिहा नहीं किया गया.

हालांकि, तब तक पुलिस ने उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 143, 147, 149, 314, 109, 186 और महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम- 1951 की धारा 37(1)(3) और सीमा अधिनियम- 1963 की धारा 135 के तहत मामला दर्ज कर लिया था.

22 अप्रैल के आसपास स्थानीय नेताओं समेत नौ प्रदर्शनकारियों को राजापुर तालुका द्वारा निर्वासन का नोटिस दे दिया गया, जिनमें से सात पर जिला कलेक्टर और एक पर अतिरिक्त जिला कलेक्टर द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे. इन नोटिसों के संबंध में आठ लोग पहले ही पेश हो चुके हैं.

महाराष्ट्र सरकार ने 24 अप्रैल से 31 मई तक राजापुर तालुका में सार्वजनिक सभाओं पर भी रोक लगा दी, हालांकि इसे हाल ही में वापस ले लिया गया था.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने विरोध प्रदर्शन में सक्रिय भूमिका निभा रहीं महिलाओं से भी मारपीट की और पुलिस ने प्रदर्शनकारियों, मुख्य तौर पर महिलाओं और बच्चों, को गर्मी से बचाने के लिए लगाए गए टेंट भी उखाड़ दिए.

प्रदर्शनकारियों के मुताबिक, 25 अप्रैल की दोपहर तक करीब 110 गिरफ्तारियां की जा चुकी थीं.

गौरतलब है कि सर्वे के लिए क्षेत्र में ड्रिलिंग कराने का महाराष्ट्र सरकार का फैसला इस तथ्य के बाद भी आया है कि नाजुक भू-कलाकृतियां (Landscape) पुरात्विक रूप से महत्वपूर्ण हैं, जिनमें शैल चित्र शामिल हैं और वह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची का हिस्सा है.

यह क्षेत्र अपने काजू और आम के बागों, चावल उगाने वाले विशाल खेतों और ग्रामीणों के लिए जल स्रोत के रूप में इसके महत्व के लिए भी जाना जाता है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि हालांकि अधिकारियों ने 25 अप्रैल को घोषणा की थी कि काम बंद कर दिया गया है, लेकिन 26 अप्रैल को भी ड्रिलिंग जारी रही.

सरकार पर आरोप है कि गांव में बाहरी लोगों और पत्रकारों के प्रवेश को रोकने के लिए सड़कों को अवरुद्ध कर दिया गया था.

40 वर्षीय एक महिला ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया, ‘जलवायु परिवर्तन के समय में भारत सरकार को पर्यावरण को संरक्षित करने के प्रयास करना चाहिए, लेकिन यहां वे लाभ के लिए इसे क्षति पहुंचा रहे हैं और इसकी अनदेखी कर रहे हैं कि स्थानीय लोगों का क्या कहना है. जो कोई भी उन्हें कानूनी तरीकों से चुनौती देने की हिम्मत करता है, उसकी जुबान बंद कर दी जाती है.’

विरोधस्वरूप लिखे एक संयुक्त पत्र में विभिन्न सिविल सोसायटी संगठनों ने मांग की है कि क्षेत्र में जारी दमन और मिट्टी परीक्षण को तुरंत रोका जाए और पर्यावरणविदों के खिलाफ दायर मामलों को जल्द से जल्द वापस लिया जाए.

उन्होंने यह भी कहा है कि जब तक मिट्टी परीक्षण और स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं का दमन बंद नहीं होगा, तब तक सरकारी अधिकारियों के साथ कोई चर्चा नहीं हो सकती है.

सिविल सोसायटी संगठनों, पर्यावरणविदों और मीडिया द्वारा निरंतर आलोचना के बाद भी सर्वे बंद नहीं हुआ है. जैसा कि सर्वेक्षण अभी भी जारी है, प्रदर्शनकारी भी रुके नहीं हैं और खुद को लामबंद करना जारी रखा है. बीच में नजरबंदी के नोटिस जारी होने के बाद जरूर विरोध प्रदर्शन में एक उतार देखा गया था, लेकिन उसके बाद यह धीरे-धीरे फिर खड़ा हो गया.

(लेखक दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में समाजशास्त्र के छात्र हैं, इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)