छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कहा- डर का माहौल न बनाएं

शीर्ष अदालत छत्तीसगढ़ में ईडी द्वारा शुरू की गई कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका को सुन रही है. छत्तीसगढ़ सरकार ने भी याचिका में पक्षकार बनने की मांग करते हुए दावा किया है कि आबकारी विभाग के 52 अधिकारियों ने जांच के दौरान ईडी द्वारा 'मानसिक और शारीरिक यातना' की शिकायत की है.

(फोटो: द वायर)

शीर्ष अदालत छत्तीसगढ़ में ईडी द्वारा शुरू की गई कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका को सुन रही है. छत्तीसगढ़ सरकार ने भी याचिका में पक्षकार बनने की मांग करते हुए दावा किया है कि आबकारी विभाग के 52 अधिकारियों ने जांच के दौरान ईडी द्वारा ‘मानसिक और शारीरिक यातना’ की शिकायत की है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कहा कि ‘भय का माहौल’ न बनाएं. यह शब्द शीर्ष अदालत ने तब कहे, जब छत्तीसगढ़ सरकार ने आरोप लगाया कि जांच एजेंसी ‘हद से बाहर’ हो गई है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में फंसाने की कोशिश कर रही है, जो राज्य में कथित तौर पर 2,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाने से संबंधित है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राज्य सरकार ने जस्टिस एसके कौल और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ के समक्ष आरोप लगाया कि राज्य के आबकारी विभाग के कई अधिकारियों ने शिकायत की है कि ईडी उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तारी की धमकी दे रहा है और ‘मुख्यमंत्री को फंसाने की कोशिश कर रहा है.’

सरकार ने दावा किया कि अधिकारियों ने विभाग में काम करने से इनकार कर दिया है.

छत्तीसगढ़ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया, ‘ईडी हद से बाहर है. वे आबकारी अधिकारियों को धमका रहे हैं.’

उन्होंने पीठ को बताया, ‘यह चौंकाने वाली स्थिति है. अब चुनाव आ रहे हैं और इसलिए यह हो रहा है.’

ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने आरोपों का खंडन किया और कहा कि एजेंसी राज्य में एक घोटाले की जांच कर रही है.

पीठ ने कहा, ‘जब आप इस तरह का व्यवहार करते हैं तो कोई वास्तविक कारण भी संदिग्ध हो जाता है. डर का माहौल न बनाएं.’

उल्लेखनीय है कि पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने वाला छत्तीसगढ़ पहला राज्य बना था, जिसने आरोप लगाया था कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का धमकाने, उत्पीड़न करने और गैर-भाजपाई सरकारों के सामान्य कामकाज को बाधित करने के लिए गलत इस्तेमाल किया जा रहा है.

भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वकील सुमीर सोढ़ी के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 131- जो किसी राज्य को केंद्र या किसी अन्य राज्य के साथ विवाद के मामलों में सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार देता है- के तहत कानून को चुनौती देते हुए मूल मुकदमा दायर किया है.

शीर्ष अदालत मंगलवार को छत्तीसगढ़ के दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें से एक को ईडी ने मामले के संबंध में गिरफ्तार किया है. उन्होंने एजेंसी द्वारा शुरू की गई कार्रवाई को चुनौती दी है.

राज्य ने याचिका में पक्षकार बनाने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया है, जिसमें दावा किया गया है कि आबकारी विभाग के 52 अधिकारियों ने जांच के दौरान ईडी अधिकारियों द्वारा ‘मानसिक और शारीरिक यातना’ का आरोप लगाते हुए लिखित शिकायत की है.

आवेदन में राज्य सरकार ने दावा किया है, ‘कई अधिकारियों ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि न केवल उन्हें धमकी दी गई थी, बल्कि उनके परिवार के सदस्यों को भी शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया था और खाली पन्नों या पहले से टाइप किए गए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए धमकाया गया था.’

पीठ ने ईडी से राज्य द्वारा दायर आवेदन पर जवाब देने को कहा.

राज्य ने अपने आवेदन में दावा किया है कि लिखित में शिकायत करने वाले अधिकारियों को अब कठोर कार्रवाई की धमकी दी जा रही है और राज्य पुलिस के समक्ष दिए गए बयानों को वापस लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है,’जो स्वयं अपराध की जांच (कानून व्यवस्था) में हस्तक्षेप है जो विशेष तौर पर राज्य की विषयवस्तु है.

आवेदन में आगे कहा गया है, ‘प्रवर्तन निदेशालय की ये कार्रवाइयां राज्य सरकार को गिराने के सुनियोजित और लक्षित प्रयास का हिस्सा हैं. इसलिए, आवेदक/छत्तीसगढ़ सरकार के पास इस अदालत में आने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.’

आवेदन में कहा गया है कि व्यवसायियों, राज्य के अधिकारियों सहित राज्य के विभिन्न नागरिकों द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय को कई शिकायतें मिली हैं, जिनमें ईडी द्वारा अपनी ताकत के ‘ज़बरदस्त’ दुरुपयोग के विभिन्न कृत्यों पर प्रकाश डाला गया है.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने छत्तीसगढ़ सरकार के आरोपों का खंडन किया और कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले की ईडी की जांच 2022 में दिल्ली की एक अदालत में दायर आयकर विभाग के आरोप-पत्र से शुरू हुई.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईडी ने 6 मई को अदालत को बताया था कि कथित शराब घोटाले में एक सिंडिकेट की संलिप्तता थी, जिसमें राज्य सरकार के उच्च स्तर के अधिकारी, निजी व्यक्ति और राज्य सरकार के राजनीतिक अधिकारी शामिल थे. ईडी के अनुसार, उन्होंने 2019-22 के दौरान 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का काला धन उत्पन्न किया.

ईडी के अनुसार, डिस्टिलर्स से रिश्वत ली गई थी ताकि उन्हें कार्टेल बनाने और बाजार में एक निश्चित हिस्सेदारी रखने की अनुमति मिल सके.