बीते दिनों सज़ायाफ़्ता गैंगस्टर मुख़्तार अंसारी ने यूपी की एक स्थानीय अदालत में अर्ज़ी देकर कहा कि मीडिया को उनके नाम के साथ ‘बाहुबली’ और ‘डॉन’ जैसे शब्द न इस्तेमाल करने के निर्देश दिए जाएं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आम बोलचाल और क़ानून में यह शब्द कैसे पहुंचे?
माफिया, डाॅन, गुंडा, गुर्गा, गैंगस्टर, मवाली और लफंगा. आज की तारीख में ये कुछ ऐसे घृणास्पद शब्द हैं कि इनसे जुड़ी पहचान की बिना पर रौब गालिब कर लोगों को सताने या उनसे उगाही वगैरह करने के फेर में रहने वाले कुछ ‘महानुभावों’ को छोड़कर शायद ही किसी को इन्हें अपने नाम के साथ जोड़े जाने पर मिर्ची न लग जाती हो.
उत्तर प्रदेश में तो पिछले दिनों एक बहुचर्चित सजायाफ्ता गैंगस्टर (और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी) ने भी एक (बाराबंकी के स्पेशल सेशन जज की) अदालत में अर्जी देकर याचना की कि वह उसके प्रतिद्वंद्वियों व पुलिस को उसके नाम के साथ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करके उसकी छवि खराब करने से रोके.
ऐसे में जानना दिलचस्प भी है और जरूरी भी कि हमारी भाषा और कानून की पोथियों में ये शब्द कहां से आए, इनका कब, कैसे और किन संदर्भों में इस्तेमाल शुरू हुआ और आज ये किस रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं?
माफिया से ही बात शुरू करें, तो जानकारों के अनुसार यह इतालवी (इटैलियन) मूल का शब्द है, वहीं से अंग्रेजी में आया और दुनिया भर में प्रचलित हुआ. अठारहवीं शताब्दी में सबसे पहले जटिल, कुटिल, शातिर व निष्ठुर बर्ताव करने वाले अंतरराष्ट्रीय अपराधियों के उन संगठित गिरोहों को माफिया कहा गया, जो मूलतः सिसिली (इटली) और संयुक्त राज्य अमेरिका में सक्रिय थे.
यूं, शब्दकोश बताते हैं कि मूल रूप में यह शब्द वहां के मोर्टे अला फ्रांकिया इटैलिना अमेल्ला का नारा है, जिसका अर्थ है: इटली में आए फ्रांसीसियों को मार डालो. यह नारा उस वक्त दिया गया था, जब फ्रांस ने इटली के सिसिली प्रांत पर अधिकार कर लिया और फ्रांसीसियों के विरुद्ध स्थानीय स्तर पर, भूमिगत संगठन खड़े हो गए थे.
इन संगठनों के अपराध-क्षेत्र, आचार संहिता और सांगठनिक ढांचे तो बखूबी निर्धारित थे ही, उनमें आपसी संघर्ष भी हुआ करते थे. बाद में वही माफिया कहलाने लगे. तब इस शब्द का आशय किसी व्यक्ति नहीं, ऐसे संगठित अपराधी गिरोहों से हुआ करता था, जिनका जटिल आपराधिक नेटवर्क था और जिनके सरगनाओं या सरदारों को डाॅन कहा जाता था.
साफ है कि डाॅन शब्द भी इतालवी ही है, जो बाॅस व सुपरबाॅस का अर्थ देता है. बॉलीवुड डाॅन नाम की कई फिल्में भी बना चुका है, जिनमें 1978 में रिलीज हुई अमिताभ बच्चन द्वारा अभिनीत फिल्म बहुत लोकप्रिय हुई थी.
बहरहाल, माफिया शब्द लंबे अरसे बाद बीती शताब्दी के आठवें दशक में मारिया पुजो की विश्वप्रसिद्ध कृति ‘गाॅडफादर’ की मार्फत दुनियाभर में फैला. हाल में यह उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में अतीक अहमद की पुलिस हिरासत में भाई समेत हत्या के बाद खासा ट्रेंड में आया. कई लोगों ने इस बाबत पड़ताल शुरू की तो यह जानकर चकित हुए कि यह हिंदी तो क्या किसी अन्य भारतीय भाषा का भी नहीं यानी भारतीय ही नहीं है.
फिर भी देश के संगठित गिरोहों के सरगनाओं के लिए धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है, जो हिंसा के साथ धमकी देकर धन उगाही करने, बंदूक के दम पर लोगों को सताने, अपने सामने झुकाने, उनकी भूमि व संपत्ति आदि पर कब्जा या उनका सौदा कराने, गैंगवार या हत्याएं कराने, ड्रग्स की अवैध सप्लाई और तस्करी कराने जैसे प्रपंचों का संचालन कराते हैं. कई बार उन्हें विभिन्न विवादों के पक्षों के बीच जबरिया समझौते कराते भी देखा जाता है.
उत्तर प्रदेश और बिहार में माफिया की ही टक्कर के दो और शब्द प्रचलित है- गुंडा और गैंगस्टर. इनमें अंग्रेजी के गैंगस्टर के नाम से ही पता चल जाता है कि इसका वास्ता किसी न किसी गैंग की कमान से है, इसलिए इसके साथ कोई रहस्यमयता नहीं जुड़ी है. उसको गुंडा का समानार्थी तो माना ही जाता है, बदमाश, आततायी, डाकू, दस्यु, लुटेरे और गिरोहबाज आदि का समानार्थी भी माना जाता है.
गुंडा शब्द को पश्तो का भी बताया जाता है और अंग्रेजी का भी. यह भी कहा जाता है कि यह गुंड से बना है, जिसका अर्थ है उभार और दक्षिण भारत में इसका सकारात्मक अर्थों में शूरवीरों और नायकों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन तर्कों की कसौटी पर गुंडा का पश्तो से रिश्ता प्रमाणित नहीं हो पाता और जो लोग इसका जन्म अंग्रेजी से मानते हैं, वे इसका यूपी व बिहार से ज्यादा संबंध छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र बस्तर से बताते हैं.
कहते हैं कि 1920 में एक ब्रिटिश अखबार में यह शब्द पहली बार छपा तो उसकी स्पेलिंग थी- जी डबलओ एन डी ए एच (Goondah) और अंग्रेजी में इसकी जैसी ही अर्थध्वनि वाला एक शब्द ‘गून’ भी है. लेकिन हिंदी वाले जिस गुंडा शब्द का इस्तेमाल करते हैं, उसका गून से वास्ता नहीं.
हिंदी का गुंडा शब्द से 20वीं शताब्दी के पहले दशक में तब परिचय हुआ, जब अंग्रेज बस्तर के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी कहें या बागी, वीर गुंडाधुर धुरवा को गुंडा कहने लगे. गुंडाधुर का कुसूर था कि वे अंग्रेजों के खिलाफ बगावत में बेहद बेखौफ, बिगड़ैल व अराजक थे और अंग्रेज उन्हें कभी पकड़ नहीं पाए. इसी वजह से उन्होंने देश के लिए गुंडाधुर के फैसलाकुन संघर्ष का पुरस्कार उन्हें ‘गुंडा’ बनाकर और उनके जैसे सारे लोगों पर कार्रवाई के लिए कुख्यात ‘गुंडा एक्ट’ बनाकर दिया.
प्रसंगवश, बस्तर में आदिवासी इस वीर की प्रतिमा पर पूजाकर अपने खिलाफ अत्याचारों के प्रतिकार का बल पाते रहे हैं. जब भी उनकी जिंदगी, जंगल व अस्मत वगैरह पर हमले होते हैं, वे गुंडाधुर की बगावत से प्रेरणा लेते हैं. दूसरी ओर कई लोग चिंता जताते हैं कि गुलामी के दौर में विदेशी शासकों ने दबे-कुचलों, गरीबों-बदहालों, दलितों-आदिवासियों, जनजातियों और औरतों के लिए हिकारत के जो शब्द बोले, वे आज भी गालियां बनकर हमारी जुबान पर चढ़े हुए हैं.
जहां तक बाहुबली शब्द की बात है, उसका अर्थ स्वतः स्पष्ट है: जिसकी भुजाओं में अपार बल हो. उतना, जितना आम इंसान के हाथ में नहीं होता. लंबे वक्त तक यह एक देवता का नाम और धार्मिक महत्व वाला शब्द भी रहा है, लेकिन बाद में अपराध की दुनिया से राजनीति में आकर अपनी धाक जमाने वालों के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा और उनमें से अनेक इसे अपने प्रभुत्व का प्रतीक मानकर उस पर ‘गौरवान्वित’ भी होने लगे. आज भी होते हैं.
गुर्गा की बात करें, तो रेख्ता अथवा उर्दू के शब्दकोशों में इस शब्द के अनेक अर्थ मिलते हैं: निम्न वर्ग का, सेवक, नौकर, बर्तन धोने वाला, मशालची, हरकारा, जासूस, एजेंट, भेदिया, दुष्ट और बदमाश वगैरह-वगैरह. लखनऊ के आसपास की भाषा में यह गुंडा शब्द का समानार्थी है, जबकि अनेक क्षेत्रों में गुरु के अनुगामी, उनकी टहल करने वाले (टहलू) छोकरे और चेलों (शिष्य शागिर्द, अनुचर या दास) आदि के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
विकीपीडिया के अनुसार, यह पुरानी अंग्रेजी के हेंगेस्ट शब्द से आया है और मध्य युग के पहले से इस्तेमाल होता आ रहा है. हां, समय के साथ इसके अर्थ बदलते रहे हैं और इसका सबसे नया अर्थ है: नापाक या आपराधिक उद्यमों में लगे व्यक्ति का वफादार कर्मचारी, समर्थक अथवा सहयोगी. गुर्गे व्यक्तिगत तौर पर महत्वहीन हुआ करते हैं और उनका सारा मूल्य उनके आका के प्रति उनकी वफादारी में कोई भी बदमाशी कर गुजरने में निहित होता है.
गुर्गे कई बार अपनी बदमाशियों में असभ्यता और उजड्डता की सारी हदें फलांग जाते हैं. तब बदमाशों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक और शब्द याद आता है: मवाली, जो एक समय हिंदी फिल्मों का चहेता रहा है. लेकिन शब्द भी हिंदी का नहीं, अरबी का है- उसके वली शब्द से जन्मा है, जिसके कई अर्थ हैं: संरक्षक, पथप्रदर्शक, स्वामी व मित्र आदि. रेख्ता के शब्दकोशों में बदमाश, गुंडा, चोर उचक्का, बेघर और बेदर से लेकर बादशाह, सरदार, आका, मालिक, यार-दोस्त और संगी साथी तक अनेक अर्थ दिए गए हैं.
बताया जाता है कि सातवीं सदी में वली से मवाली शब्द तब बना, जब अरब में रहने वाले मिस्री, ईरानी व तुर्की आदि गुलाम गैर-अरबी तबकों ने किसी न किसी वली के संरक्षण में इस्लाम को अपनाया. तब इन तबकों को मवाला यानी पंथ अथवा धर्म के संरक्षक या धर्ममित्र का नाम मिला. तदुपरांत ये समुदाय सदियों तक अरबों की मुख्यधारा में मवाली कहे जाते रहे. मवाली यानी मवाला का बहुवचन.
यहां आप पूछ सकते हैं कि धर्ममित्रों के लिए प्रयुक्त मवाली शब्द बदमाशों का पर्याय क्योंकर बन गया? हुआ दरअसल ऐसा कि मवालियों द्वारा इस्लाम स्वीकार कर लेने के बाद भी उनके आचार-व्यवहार और रंग-रूप में गैर-अरबीपन बना रहा, जिसे लेकर अरब समाज उन्हें संरक्षक या धर्ममित्र के बजाय हीनभाव से देखता और दोयम दर्जे का, अवांछित, असभ्य व उजड्ड मानता रहा. फल यह हुआ कि आगे चलकर सारे असभ्यों व उजड्डों को मवाली कहा जाने लगा.
आज की तारीख में कहना कठिन है कि यह शब्द हमारे देश कैसे पहुंचा, लेकिन जैसे भी पहुंचा, असभ्यों, बदमाशों, उजड्डों, गुर्गों व गुंडों पर भरपूर चस्पां होता है. इसीलिए एक चिंतक की इस चिंता का भी सबब है कि बेचारे मवाली का क्या हाल कर डाला गया है! बेचारे की शराफत का सिला उसका बदमाशों में शुमार कर दिया जा रहा है. यूं, कुछ शब्दकोशों में मवाली का अर्थ दक्षिण भारत की एक जाति भी बताया गया है.
अंत में गुंडे शब्द के जोड़ीदार का ‘लफंगे’ पर एक नजर. कुछ लोगों के अनुसार, यह शब्द तुर्की से तो कुछ के अनुसार फारसी से हिंदी में आया. आज यह एक स्ट्रीट स्लैंग है, किसी फुटानी जैसा, जिसका अर्थ है: असभ्य व्यवहार करने वाला और अकारण लोगों से लड़ने या मारपीट पर उतर आने वाला शख्स. शब्दकोशों में इसे नीच, पाजी, दुश्चरित्र, व्यभिचारी, बदमाश, लुच्चा, लंपट, लोफर और शोहदा आदि का पर्यायवाची भी बताया गया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)