दिल्ली के इस अस्पताल के सफाई कर्मचारी एक साल से प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं

नई दिल्ली स्थित कलावती सरन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के लगभग 400 सफाईकर्मियों को 31 मई, 2022 को बिना किसी पूर्व सूचना के नौकरी से निकाल दिया गया था. सभी को वापस काम पर रखने के अदालती आदेश के बावजूद उन्हें बहाल नहीं किया गया. वे 1 जून, 2022 से लगातार अस्पताल के सामने ही प्रदर्शन कर रहे हैं.

अस्पताल के बाहर धरने पर बैठे सफाई कर्मचारी. (सभी फोटो: वर्तिका मणि और सिद्धार्थ सिंह)

नई दिल्ली स्थित कलावती सरन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के लगभग 400 सफाईकर्मियों को 31 मई, 2022 को बिना किसी पूर्व सूचना के नौकरी से निकाल दिया गया था. सभी को वापस काम पर रखने के अदालती आदेश के बावजूद उन्हें बहाल नहीं किया गया. वे 1 जून, 2022 से लगातार अस्पताल के सामने ही प्रदर्शन कर रहे हैं.

अस्पताल के बाहर धरने पर बैठे सफाई कर्मचारी. (सभी फोटो: वर्तिका मणि और सिद्धार्थ सिंह)

नई दिल्ली: बीते 17 मई 2023 को नई दिल्ली के कलावती सरन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के सफाई कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन का लगातार 351वां दिन था.

31 मई 2022 को बिना किसी पूर्व सूचना के लगभग 400 कर्मचारियों को अस्पताल द्वारा नौकरी से निकाल दिया गया था. जिसके बाद 1 जून 2022 से ये कर्मचारी हर दिन अस्पताल परिसर के सामने इकट्ठा होकर नौकरी पर बहाल किए जाने की मांग कर रहे हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश है कि ठेकेदार बदले जाने पर भी कर्मचारियों की नौकरी नहीं जानी चाहिए, लेकिन इस मामले में मजदूर संगठनों का आरोप है कि जब ठेकेदार बदला गया तो केवल 150 लोगों को नौकरी पर रखा, लेकिन उन्हें अपनी नौकरी वापस पाने के लिए 30,000 रुपये का भुगतान करना पड़ा. भुगतान नहीं करने वाले 250 कर्मचारियों को उनकी नौकरी से वंचित कर दिया गया है.

अब तक क्या हुआ

दिसंबर 2017 में कलावती सरन ठेका कर्मचारी संघ का गठन करने के बाद कर्मचारियों ने केंद्रीय ट्रेड यूनियन ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल फॉर ट्रेड यूनियन्स (एआईसीसीटीयू) के बैनर तले अपने लिए कुछ जीत दर्ज की.

मुख्य मुद्दा कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन का भुगतान न करना था. संघ बनाने से पहले कर्मचारियों को ओवरटाइम के साथ निर्धारित न्यूनतम वेतन का केवल एक तिहाई भुगतान किया जा रहा था. मुकदमों की एक शृंखला के बाद कर्मचारियों ने 2019 में अपने वेतन को बढ़ाकर न्यूनतम वेतन किए जाने के लिए अभियान चलाया था.

नतीजतन, क्षेत्रीय श्रम आयुक्त (मध्य) ने 29 दिसंबर 2021 को बकाया वेतन जारी करने का आदेश दिया. उस समय बकाया वेतन की राशि 1.61 करोड़ रुपये थी और इस राशि का अभी भी भुगतान किया जाना बाकी है.

31 मई 2022 को लगभग 400 कर्मचारियों को बिना सूचना के बर्खास्त कर दिया गया. यह कोविड-19 लहर और लॉकडाउन के दौरान उनके निरंतर कठिन परिस्थितियों में कार्य करने के बावजूद था.

एक पूर्व सफाईकर्मी सौराज कहते हैं, ‘(कोविड के दौरान) जब हममें से कुछ बीमार पड़ गए तो अस्पताल के वार्ड में भी हम पर ध्यान नहीं दिया गया. हमें बस घर जाने के लिए कह दिया गया था.’

कर्मचारियों ने बताया कि इस दौरान दो लोगों की मौत हो गई थी. सौराज बताते हैं, ‘हम हाथ से सीरिंज और बायो-मेडिकल कचरे को उठा रहे थे.’

अस्पताल के बाहर कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन की एक तस्वीर.

जितेंद्र कुमार ने कहा, ‘हमने बिना कोई ब्रेक लिए काम करना जारी रखा. हम अस्पताल के सामने सड़कों पर भी सोते थे, क्योंकि किसी भी समय हमारी जरूरत होती थी और हम सोशल डिस्टेंसिंग भी बनाए रखना चाहते थे. अंत में हमें इसके लिए कुछ नहीं मिला.’

31 मई 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले के बावजूद कि सफाई कर्मचारियों को उनकी नौकरी पर रहने दिया जाए, अस्पताल प्रशासन ने उन्हें बहाल नहीं किया है.

कलावती सरन ठेका कर्मचारी संघ के संयोजक सेवक राम कहते हैं, ‘प्रशासन ने हमसे बात करने से इनकार कर दिया है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्होंने कहा कि उन्होंने सभी नियमों का पालन किया है. इसके अतिरिक्त वे एक नया ठेकेदार ले आए और सभी कर्मचारियों को बदल दिया. अब वे कहते हैं कि यह ठेकेदार की समस्या है, लेकिन वास्तव में सारी शक्तियां निदेशक के पास हैं.’

कर्मचारियों को शुरू में ठेकेदार सुलभ इंटरनेशनल के माध्यम से काम पर रखा गया था. नए ठेकेदार का नाम गोरख सिक्योरिटी है.

सुलभ इंटरनेशनल द्वारा काम पर रखे गए सेवक राम ने कहा, ‘उन्होंने हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं ली. वे बस चले गए. हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने कुछ नहीं किया है.’

कर्मचारियों का मानना है कि प्रशासन ने उन्हें यूनियन बनाने और उच्च वेतन के लिए लड़ने के चलते काम से निकाला है, और यूनियन भंग करने के लिए ठेकेदार में बदलाव करने का कारण इस्तेमाल किया जा रहा है.

1 जून 2022 से कर्मचारी अस्पताल के सामने धरना दे रहे हैं. अधिकांश कर्मचारियों का दावा है कि उन्हें पुलिस द्वारा कम से कम तीन से चार बार हिरासत में लिया गया है. पिछले साल 20 जून को पुलिस ने 80 कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया था. उसके बाद केवल 10-15 कर्मचारियों को अस्पताल परिसर के बाहर जमा होने की अनुमति है.

बता दें कि 1 जून से 30 नवंबर 2022 तक के कर्मचारियों के बकाया वेतन को वापस पाने के लिए अदालत में मुकदमे लड़े जा रहे हैं. मामले में अगली सुनवाई 5 जून को पटियाला हाउस कोर्ट में होनी है.

गौरतलब है कि राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय और केंद्र व राज्य सरकारों के कई नियम न्यूनतम वेतन को मौलिक अधिकार मानते हैं. इस संबंध में कानून भी बनाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में आदेश जारी कर चुका है.

इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावजूद कई नियोक्ता न्यूनतम वेतन का भुगतान करने से बचते रहे हैं.

न्यूनतम वेतन संबंधी कई प्रावधानों के बावजूद और कर्मचारियों के बहाली के लिए हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भी अस्पताल के कर्मचारी अपना न्यूनतम वेतन अर्जित करने और यूनियन बनाने की कोशिश का खामियाजा भुगत रहे हैं.

कर्मचारियों के जीवन पर प्रभाव

जब यह पूछा गया कि वे लगभग एक साल से अपना गुजारा कैसे कर रहे हैं, तो कर्मचारियों ने जवाब दिया कि वे मुख्य तौर पर अस्पताल के सामने चलने वाले लंगर में मिलने वाले मुफ्त भोजन पर निर्भर हैं. कभी-कभी वे गुरुद्वारे से थैलियों में भरकर दाल ले जाते हैं.

अस्पताल के बाहर कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन के संबंध में लगी एक तख्ती.

कर्मचारियों ने बताया कि वर्ष भर से काम से वंचित होने से उनके परिवारों में कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं. मकान मालिकों को किराया नहीं दे पा रहे हैं और बच्चों को स्कूल में नहीं पढ़ा पा रहे हैं.

सुरिंदर कुमार कहते हैं, ‘अगर ऐसा ही चलता रहा तो मेरे बच्चे बड़े होकर चोर बनेंगे.’

उनके भतीजे जितेंद्र ने सहमति व्यक्त की और कर्मचारियों की मांगों को दोहराया, ‘अस्पताल को अदालती आदेश सुनना होगा और हमें वापस काम पर रखना होगा. हम घर पर सभी तरह की परेशानियां झेल हैं और हमारा भविष्य अनिश्चित है.’

2017 से श्रमिकों को संगठित कर रहे एआईसीसीटीयू के सूर्य प्रकाश ने कहा, ‘पूरी कवायद यूनियन को तोड़ने की है. इन कर्मचारियों ने अपनी नौकरी वापस पाने के लिए रिश्वत देने से इनकार कर दिया है. नौकरी करने के दौरान भी इन कर्मचारियों को ईएसआई और पीएफ जैसे किसी भी संभावित सामाजिक सुरक्षा उपायों से वंचित रखा गया था. वो भी उस अस्पताल द्वारा जो केंद्र सरकार के अस्पतालों में से एक है, ऐसा अस्पताल जो बच्चों का सबसे अच्छा अस्पताल होने का दावा करता है.’

(वर्तिका मणि मानवाधिकार मामलों की वकील और सिद्धार्थ सिंह लेखक हैं, इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)