अफ्रीकी चीतों की मौत पर कोर्ट के चिंतित होने के बीच सरकार ने कहा, देश में कोई चीता विशेषज्ञ नहीं

सुप्रीम कोर्ट में लगभग दो महीने में अफ्रीका से लाए गए तीन चीतों की मौत पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार उन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकती है. इस दौरान सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारत में कोई चीता विशेषज्ञ नहीं हैं, क्योंकि 1947-48 में चीता देश से विलुप्त हो गए थे.

मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िला स्थिति कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया चीता. (फाइल फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट में लगभग दो महीने में अफ्रीका से लाए गए तीन चीतों की मौत पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार उन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकती है. इस दौरान सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारत में कोई चीता विशेषज्ञ नहीं हैं, क्योंकि 1947-48 में चीता देश से विलुप्त हो गए थे.

मध्य प्रदेश के श्योपुर ज़िला स्थिति कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया चीता. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बृ​हस्पतिवार (18 मई) को दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (केएनपी) में लाए गए तीन चीतों की दो महीने से भी कम समय में मौत पर गंभीर चिंता व्यक्त की.

शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से उन्हें राजस्थान स्थानांतरित करने पर विचार करने को कहा है.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल ने मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए केंद्र सरकार से कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कूनो नेशनल पार्क इतनी बड़ी संख्या में चीतों के लिए पर्याप्त नहीं है और सरकार उन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकती है.

बीते 27 मार्च को (नामीबिया से लाई गई) साशा नाम की एक मादा चीता की किडनी की बीमारी और बीते 23 अप्रैल को (दक्षिण अफ्रीका से लाए गए) उदय नामक चीते की कार्डियो-पल्मोनरी फेल्योर के कारण मौत हो गई थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, पीठ ने कहा, ‘दो महीने से भी कम समय में तीन (चीतों की) मौत गंभीर चिंता का विषय है. मीडिया में विशेषज्ञों की राय और लेख हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि कूनो इतने सारे चीतों के लिए पर्याप्त नहीं है. एक जगह पर चीतों की सघनता बहुत अधिक होती है. आप राजस्थान में उपयुक्त स्थान की तलाश क्यों नहीं करते? केवल इसलिए कि राजस्थान में विपक्षी पार्टी का शासन है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस पर विचार नहीं करेंगे.’

केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने शीर्ष अदालत को बताया कि टास्क फोर्स उन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने सहित सभी संभावित पहलुओं की जांच कर रही है.

पीठ ने कहा कि रिपोर्टों से ऐसा लगता है कि सहवास को लेकर दो नर चीतों के बीच लड़ाई के दौरान घायल होने के बाद एक चीते की मौत हो गई और एक की किडनी संबंधी बीमारी से मौत हो गई.

पीठ ने कहा, ‘हमें पता चला कि किडनी से संबंधित बीमारी के कारण मरने वाली मादा चीता भारत लाए जाने से पहले ही समस्या से पीड़ित थी. सवाल यह है कि अगर वह बीमार थी तो उसे भारत लाने की मंजूरी कैसे दी गई.’

भाटी ने कहा कि सभी मौतों का पोस्टमॉर्टम किया गया है और टास्क फोर्स मामले की जांच कर रही है.

यह कहते हुए कि वह सरकार पर कोई आक्षेप नहीं लगा रही है बल्कि मौतों पर चिंता व्यक्त कर रही है, पीठ ने कहा, ‘आप विदेश से चीते ला रहे हैं, यह अच्छी बात है, लेकिन उन्हें संरक्षित करने की जरूरत है. उन्हें उपयुक्त आवास दिए जाने की आवश्यकता है, आप कूनो से अधिक उपयुक्त आवास की तलाश क्यों नहीं करते?’

भाटी ने कहा कि एक मादा चीते ने चार शावकों को जन्म दिया है, जिससे पता चलता है कि वे कूनो में अच्छी तरह से अभ्यस्त हो रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि चीतों की मौत कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन वे पूरी तरह से जांच कर रहे हैं और यदि अदालत चाहे तो सरकार मौतों का विवरण देते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करना चाहेगी.

रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा कि वह सरकार की मंशा पर संदेह नहीं कर रही है, लेकिन समाचार पत्रों में चीता विशेषज्ञों के लेख और रिपोर्ट हैं और इसलिए केंद्र को उनके लिए कम से कम एक या अधिक आवास स्थलों पर विचार करना चाहिए.

सरकार को चीता विशेषज्ञों से राय लेने पर विचार करने की बात कहते हुए पीठ ने कहा, ‘चीतों को इस अदालत के आदेश के बाद लाया गया था. ऐसा प्रतीत होता है कि कूनो उनके लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए उन्हें मध्य प्रदेश या राजस्थान के अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने पर विचार करें, जहां भी उपयुक्त हो.’

शीर्ष अदालत की हरित पीठ का नेतृत्व कर रहे जस्टिस गवई ने भाटी से कहा, ‘इस मुद्दे में पार्टी-राजनीति को मत लाइए. सभी उपलब्ध आवासों पर विचार कीजिए, जो भी उनके लिए उपयुक्त है. मुझे खुशी होगी अगर चीतों को महाराष्ट्र लाया जाए.’

भाटी ने कहा कि मुकुंदरा राष्ट्रीय उद्यान तैयार है और कार्यबल उनमें से कुछ को मध्य प्रदेश के अन्य राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करने पर भी विचार कर रहा है.

उन्होंने कहा, ‘भारत में कोई चीता विशेषज्ञ नहीं हैं, क्योंकि 1947-48 में चीता देश से विलुप्त हो गए थे. तब से हमारे अधिकारी दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया गए हैं और चीता प्रबंधन पर विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है.’

भाटी ने कहा कि अगर अदालत चीता विशेषज्ञों के विचारों को सुनने पर विचार कर रही है, तो उसे उन सभी को सुनना चाहिए, न कि एक या दो, जो विशेष प्रकार की राय रखते हैं.

इसके बाद पीठ ने शीर्ष अदालत द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को चीता पर राष्ट्रीय कार्यबल को अपना सुझाव 15 दिनों में देने को कहा, ताकि उस पर विचार किया जा सके. इसके बाद इसने मामले को गर्मी की छुट्टी के बाद आगे की सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया.

रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत का निर्देश केंद्र द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें अदालत से निर्देश मांगा गया था कि 28 जनवरी, 2020 के एक आदेश के माध्यम से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के लिए इस अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के मार्गदर्शन और सलाह को जारी रखना अब आवश्यक और अनिवार्य नहीं है.

शीर्ष अदालत ने तब कहा था कि तीन सदस्यीय समिति में शामिल वन्यजीव संरक्षण के पूर्व निदेशक एमके रंजीत सिंह, मुख्य वन संरक्षक, उत्तराखंड में वन्यजीव प्रशासन धनंजय मोहन और पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के डीआईजी (वन्यजीव) भारत में अफ्रीकी चीतों को लाने में बाघ संरक्षण प्राधिकरण का मार्गदर्शन करेंगे.

कूनो में पहले चीते की मौत के एक दिन बाद 28 मार्च को शीर्ष अदालत ने चीता टास्क फोर्स के विशेषज्ञों से उनकी योग्यता और अनुभव की जानकारी मांगी थी.

केंद्र ने अपने आवेदन में अदालत से कहा था कि भारत में चीता लाए जाने की शुरुआती कार्य योजना के अनुसार कम से कम अगले पांच वर्षों के लिए अफ्रीकी देशों से सालाना 8-14 चीतों को लाने की आवश्यकता है. चीता संरक्षण के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर भारत सरकार द्वारा नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के साथ हस्ताक्षर किए गए हैं.

बीते 9 मई को द वायर ने रिपोर्ट किया था कि कूनो नेशनल पार्क में भारत लाए गए तीसरे अफ्रीकी मादा चीते ‘दक्षा’ की मौत हो गई. ऐसा माना जाता है कि उनके बाड़े में सहवास (Mating) के दौरान एक नर चीते द्वारा पहुंचाई गई चोट के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी.

शीर्ष अदालत की चिंता, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के उस कदम उस पृष्ठभूमि के खिलाफ है, जिसमें कहा गया है कि मानसून आने से पहले कूनो में पांच और चीतों को जंगल में छोड़ दिया जाएगा.

शीर्ष अदालत ने यह चिंता ऐसे समय व्य​क्त की है, जब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि मानसून आने से पहले कूनो में पांच और चीतों को छोड़ा जाएगा. इनमें तीन मादा और दो नर चीते हैं.

मालूम हो कि सितंबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर पहली खेप में दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से 8 चीतों को कूनो लाया गया था. इसके बाद 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते कूनो लाए गए थे. इसी दौरान पहली खेप में नामीबिया से आई ‘ज्वाला’ ने चार शावकों को जन्म दिया था.