केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलटा, दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग का नियंत्रण वापस लिया

सुप्रीम कोर्ट ने बीते 11 मई को अपने एक आदेश में कहा था कि निर्वाचित दिल्ली सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर सभी प्रशासनिक सेवाओं (ट्रांसफर-पोस्टिंग) पर अधिकार है. केंद्र ने एक अध्यादेश के ज़रिये इस फैसले को पलट दिया है. आम आदमी पार्टी इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

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नरेंद्र मोदी, सुप्रीम कोर्ट और अरविंद केजरीवाल. (फोटो साभार: पीआईबी/विकिपीडिया/फेसबुक)

सुप्रीम कोर्ट ने बीते 11 मई को अपने एक आदेश में कहा था कि निर्वाचित दिल्ली सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर सभी प्रशासनिक सेवाओं (ट्रांसफर-पोस्टिंग) पर अधिकार है. केंद्र ने एक अध्यादेश के ज़रिये इस फैसले को पलट दिया है. आम आदमी पार्टी इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

नरेंद्र मोदी, सुप्रीम कोर्ट और अरविंद केजरीवाल. (फोटो साभार: पीआईबी/विकिपीडिया/फेसबुक)

नई दिल्ली: पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण आदेश को केंद्र सरकार ने पलट दिया है, जिसने दिल्ली सरकार को राष्ट्रीय राजधानी में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग सहित सेवा मामलों में कार्यकारी शक्ति दी थी.

केंद्र सरकार ने बीते शुक्रवार (19 मई) को जारी एक अध्यादेश के माध्यम से राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना की है, जो ट्रांसफर पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों से संबंधित विषयों के संबंध में दिल्ली के उपराज्यपाल को सिफारिशें करेगा.

अध्यादेश ने उपराज्यपाल (एलजी) की स्थिति को भी मजबूत कर दिया है. एलजी को अंतिम प्राधिकारी बनाया गया है, जो नौकरशाहों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित मामलों को तय करने में अपने ‘एकमात्र विवेक’ से कार्य कर सकता है.

केंद्र सरकार द्वारा 19 मई को जारी की गई अधिसूचना.

अध्यादेश के अनुसार, ‘राष्ट्रीय राजधानी के रूप में इसकी (दिल्ली) विशेष स्थिति को देखते हुए स्थानीय और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक हितों, जो दांव पर हैं, दोनों को संतुलित करने के लिए कानून द्वारा प्रशासन की एक योजना तैयार की जानी चाहिए, जो भारत सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) दोनों की संयुक्त और सामूहिक जिम्मेदारी के माध्यम से लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करेगा.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘ट्रांसफर पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों से संबंधित विषयों के बारे में उपराज्यपाल को सिफारिशें करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक स्थायी प्राधिकरण पेश किया जा रहा है.’

समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसके अलावा केंद्र ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट से उसके 11 मई के आदेश की समीक्षा करने की अपील की, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी की निर्वाचित सरकार को सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्ति को अधिकृत किया गया था.

केंद्र शुक्रवार को पहली बार एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने के लिए एक अध्यादेश लाया, जिसके पास दिल्ली में कार्यरत सभी ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों और दानिक्स (DANICS) अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश करने की शक्ति होगी. एनसीसीएसए की अध्यक्षता दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे, जिसमें दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव अन्य दो सदस्य होंगे.

अध्यादेश के माध्यम से केंद्र ने उपराज्यपाल को दिल्ली के प्रशासक के रूप में नामित किया है, जो दिल्ली सरकार की सेवा करने वाले सभी नौकरशाहों की पोस्टिंग और ट्रांसफर पर अंतिम निर्णय लेगा.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से जारी अध्यादेश के अनुसार, दिल्ली अधिनियम, 1991 के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) की सरकार में संशोधन करना चाहता है और संविधान पीठ के उस फैसले को प्रभावी रूप से नकारता है, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को कानून बनाने और दिल्ली सरकार में प्रतिनियुक्त नौकरशाहों पर नियंत्रण रखने की शक्ति दी गई है.

इसमें कहा गया है कि एनसीसीएसए द्वारा तय किए जाने वाले सभी मामले उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से तय किए जाएंगे. अध्यादेश में कहा गया है कि प्राधिकरण में मतभेद के मामले में अंतिम निर्णय दिल्ली के उपराज्यपाल के पास होगा.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 11 मई को माना था कि निर्वाचित दिल्ली सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर सभी प्रशासनिक सेवाओं पर अधिकार है. पीठ ने कहा था कि इन तीन क्षेत्रों के अलावा उपराज्यपाल दिल्ली विधानसभा द्वारा लिए गए निर्णयों से बंधे हैं.

भारत के मुख्य न्यायाधीश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक सर्वसम्मत निर्णय लिया था कि ‘एंट्री 41 के तहत एनसीटी दिल्ली की विधायी शक्ति आईएएस तक विस्तारित होगी और एनसीटी दिल्ली द्वारा भर्ती नहीं होने पर भी यह उन्हें नियंत्रित करेगी. हालांकि, यह उन सेवाओं तक विस्तारित नहीं होगा जो भूमि, कानून और व्यवस्था तथा पुलिस के अंतर्गत आती हैं. उपराज्यपाल (एलजी) भूमि, पुलिस और कानून व्यवस्था के अलावा सेवाओं पर एनसीटी दिल्ली के निर्णय से बंधे होंगे.’

बीबीसी की एक की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा था कि दिल्ली में सभी प्रशासनिक मामलों से सुपरविजन का अधिकार उपराज्यपाल के पास नहीं हो सकता. दिल्ली की चुनी हुई सरकार के हर अधिकार में उपराज्यपाल का दखल नहीं हो सकता.

पीठ के मुताबिक, ‘अगर किसी राज्य में कार्यकारी शक्ति केंद्र और राज्य के बीच बंटा हुआ होता है तो ये देखना चाहिए कि राज्य के कामकाज पर केंद्र हावी न हो जाए. अगर ऐसा होता है तो ये संघीय शासन प्रणाली और लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ होगा.’

अदालत ने कहा, ‘आदर्श स्थिति तो ये है कि सेवाओं से जुड़े मामले दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए, अगर मंत्रियों का नीतियों को लागू कराने वाले अधिकारियों पर कोई हक नहीं होगा तो वो काम कैसे करा पाएंगे.’

केंद्र के अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी आप

आम आदमी पार्टी (आप) ने शनिवार को केंद्र के अध्यादेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ‘सेवाओं’ पर सत्ता बहाल करने को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि दिल्ली सरकार इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देगी.

हिंदुस्तान टाइम्स की ​एक रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान दिल्ली के शिक्षा मंत्री आतिशी ने कहा कि लोकतंत्र को खत्म करने के लिए यह अध्यादेश लाया गया है. आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि दिल्ली सरकार अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

आतिशी ने कहा, ‘केंद्र सरकार लोकतंत्र और संविधान की हत्या करने के लिए कल (शुक्रवार) देर रात एक अध्यादेश लाई. सुप्रीम कोर्ट के गर्मी की छुट्टी पर जाने के बाद रात के 11 बजे उसने इसे जारी किया. यहां तक कि वे (केंद्र) भी जानते हैं कि अध्यादेश असंवैधानिक है और सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द कर देगा.’

उन्होंने कहा, ‘अध्यादेश कहता है कि भले ही जनता ने (अरविंद) केजरीवाल को चुना हों, वह नहीं, बल्कि केंद्र सरकार दिल्ली को चलाएगी. केंद्र सरकार के पास इस तरह का अध्यादेश लाने की शक्ति नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले के अनुच्छेद 160 में कहा है, दिल्ली के प्रशासन में भारत संघ की भागीदारी संवैधानिक प्रावधानों द्वारा सीमित है और आगे कोई भी विस्तार शासन की संवैधानिक योजना के विपरीत होगा… इसका मतलब यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को लिख रहा था, तो उसे संदेह था कि केंद्र सरकार अवैध रूप से दिल्ली सरकार की शक्तियों को कम करने की कोशिश कर सकती है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मार्ग को बंद कर दिया है.’

उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र और संविधान की हत्या करने वाला है मोदी सरकार का ये अध्यादेश! जो ताकत उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने चुनी हुई सरकार को दी, ये उसकी ताकत को गैर-संवैधानिक तरीके से छीनने का प्रयास है.’

संजय सिंह ने कहा, ‘मोदी जी ने साबित किया कि वो एक तानाशाह हैं, लोकतंत्र-संविधान नहीं मानते. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि केजरीवाल सरकार के पास ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार है. मोदी जी ने अध्यादेश के जरिये सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया. मोदी जी, केजरीवाल से इतना क्यों डरते हैं?’

उन्होंने कहा, ‘ये आपातकाल है. जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो केजरीवाल जी ने कहा था कि प्रधानमंत्री को एक पिता की भूमिका निभानी है. ये ऐसा पिता है, जो अपने बच्चों के लोकतंत्र-संविधान का गला घोंटने में लगा है. पीएम मोदी को संविधान में यकीन नहीं है, सिर्फ तानाशाही चलानी है.’