अडानी को क्लीनचिट देने के लिए जांच समिति की रिपोर्ट तोड़-मरोड़कर पेश की जा रही: कांग्रेस

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद अडानी समूह पर लगे आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि रिपोर्ट में अडानी समूह को क्लीनचिट दे दी गई है. इस पर कांग्रेस का कहना है कि  वास्तव में समिति के निष्कर्षों ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच के लिए उनकी मांग को और मजबूती दी है.

गौतम अडानी. (इलस्ट्रेशनः द वायर)

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद अडानी समूह पर लगे आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि रिपोर्ट में अडानी समूह को क्लीनचिट दे दी गई है. इस पर कांग्रेस का कहना है कि  वास्तव में समिति के निष्कर्षों ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच के लिए उनकी मांग को और मजबूती दी है.

गौतम अडानी. (इलस्ट्रेशनः द वायर)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि हिंडनबर्ग-अडानी मामले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के निष्कर्षों को तोड़-मरोड़कर अडानी समूह को क्लीनचिट दिए जाने के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास ‘पूरी तरह से बकवास’ है.

कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए एक बयान में कहा कि वास्तव में समिति के निष्कर्षों ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच के लिए उनकी मांग को और मजबूती दी है.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस यह लगातार कहती आ रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, उसका दायरा बेहद सीमित है और वह ‘मोदानी’ (मोदी+अडानी)  घोटाले के सारे पहलुओं को सामने लाने में असमर्थ (और शायद अनिच्छुक भी) होगी.’

पांच बिंदुओं में अपनी बात रखते हुए रमेश ने कहा, ‘मोदी सरकार के दावों के विपरीत, समिति ने कहा है कि सेबी की ओर से मिले आंकड़ों और स्पष्टीकरणों को ध्यान में रखते हुए अभी निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है, जिससे लाभ प्राप्त करने वाले को बचने में सुविधा मिलती है.’

उन्होंने कहा, ‘चूंकि उसके पास जो जानकारी है, उसके आधार पर कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है, इसलिए समिति का कहना है कि सेबी द्वारा कोई नियामक विफलता नहीं हुई है.’

कांग्रेस नेता ने पृष्ठ संख्या 106 और 144 के दो अंशों को ट्विटर पर शेयर किया है, जो उनके कथनानुसार जेपीसी के गठन को मजबूती देते हैं.

उन्होंने लिखा, ‘सेबी खुद को ही विश्वास दिलाने में असमर्थ है कि एफपीआई (Foreign Portfolio Investment) फंड में योगदान देने वाले अडानी से जुड़े नहीं हैं’, जो हमें कम से कम 20,000 करोड़ रुपये के बहुत ही बड़े फंड के सवाल पर वापस लाता है.’

वे आगे कहते हैं, ‘जब शेयरों की कीमतें 1031 रुपये से 3859 रुपये पहुंच गई थी, तब एलआईसी 4.8 करोड़ शेयरों की खरीद के साथ अडानी सिक्योरिटीज का सबसे बड़ा खरीदार था. इससे सवाल उठता है कि एलआईसी किसके हित में काम कर रही थी.’

रमेश आगे कहते हैं, ‘हम कमेटी के सदस्यों की प्रतिष्ठा को देखते हुए इसकी रिपोर्ट पर और कुछ नहीं कहना चाहते हैं, सिवाय इसके कि इसके निष्कर्ष का पहले से ही अनुमान था. साथ ही, अडानी समूह को क्लीनचिट देने के लिए तमाम तरह की सीमाओं से बंधी इस समिति की रिपोर्ट को तोड़-मरोड़ कर पेश करना पूरी तरह से बकवास है.’

सेबी ने अपना काम किया, नियमों के उल्लंघन, शेयरों की कीमतों में हेराफेरी का कोई सबूत नहीं: समिति

सेवानिवृत्त जज जस्टिस एएम सप्रे की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने प्रथमदृष्टया बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की ओर से शेयरों की कीमत में हेरफेर और प्रतिभूति नियमों के उल्लंघन के आरोपों पर अडानी समूह की जांच से संबंधित मामले में कोई चूक नहीं पाई है.

अडानी पर हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट जारी होने के बाद शीर्ष अदालत ने मार्च माह में समिति नियुक्त की थी.

समाचार वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत के समक्ष समिति द्वारा प्रस्तुत अंतरिम रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सेबी अपने संदेह को एक ठोस मामले में परिवर्तित करने में सक्षम नहीं है, जहां किसी भी कथित उल्लंघन के लिए मुकदमा चलाया जा सके.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस स्तर पर, अनुभवजन्य डेटा से समर्थित सेबी द्वारा प्रदान किए गए स्पष्टीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रथमदृष्टया, समिति के लिए यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं होगा कि कीमतों में हेरफेर के आरोप के इर्द-गिर्द नियामक विफलता रही है.’

बार एंड बेंच के मुताबिक, समिति की रिपोर्ट में निम्न बातें कही गई हैं:

  • अडानी समूह के प्रवर्तकों से संदिग्ध संबंध रखने वाली 13 विदेशी कंपनियों ने लाभार्थी स्वामियों का विवरण दिया है.
  • अडानी एनर्जी की मूल्य वृद्धि में हेरफेर का कोई स्पष्ट पैटर्न नहीं है.
  • सेबी को विश्लेषण के लिए अडानी के सभी शेयरों के डेटा के साथ चार्ट तैयार करने चाहिए.
  • संबंधित पक्ष लेनदेन या प्रतिभूति विनियमों के उल्लंघन पर अभी तक कोई मामला नहीं बना है.
  • सेबी पिछले कुछ समय से आरोपों की जांच कर रहा है. सेबी की ओर से कोई विनियामक विफलता नहीं है.
  • हालांकि अब तक कोई सबूत नहीं है, लेकिन हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने सेबी के संदेह को मजबूत किया है.

समिति ने दर्ज किया कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट से अडानी समूह के शेयरों की कीमत में भारी गिरावट आई, जो तब से बाजार में सुधार के दौर से गुजर रही है. हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता है कि कानून का उल्लंघन किया गया था.

बता दें कि बीते जनवरी माह में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.

अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं.  इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.

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