हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद अडानी समूह पर लगे स्टॉक हेर-फेर और लेखा धोखाधड़ी के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि छह कंपनियों की ओर से संदिग्ध व्यापार देखा गया है. ये कंपनियां अडानी समूह के शेयरों में संदिग्ध ट्रेडिंग के लिए हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जारी होने से पहले से जांच के दायरे में हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि चार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) समेत छह कंपनियां अडानी समूह के शेयरों में संदिग्ध ट्रेडिंग के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने से पहले जांच के दायरे में हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 178 पृष्ठीय रिपोर्ट में कहा गया है कि 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने से पहले अडानी के स्क्रिप्स (नए शेयर निर्मित कर मौजूदा शेयरधारकों में बांट देना) में शॉर्ट पोजिशन का निर्माण हुआ था, और उसके बाद शेयरों में गिरावट आते ही पर्याप्त मुनाफा कमाया गया था.
‘शॉर्ट’ पोजीशन आम तौर पर उस स्टॉक की बिक्री होती है, जो एक व्यक्ति/संस्था के पास नहीं है.
शॉर्ट बिक्री करने वाले निवेशकों का मानना होता है कि शेयरों की कीमत में गिरावट आएगी. अगर कीमत गिरती है, तो वे कम कीमत पर शेयर खरीद सकते हैं और लाभ कमा सकते हैं.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अडानी साम्राज्य ‘कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा धोखा’ है, जो ‘बेशर्मी से स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी योजना में शामिल है.’
24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद अडानी समूह के शेयरों में गिरावट आई थी. समूह ने सभी आरोपों को खारिज किया था और अमेरिकी निवेश फर्म की रिपोर्ट को भारत पर हमला करार दिया था.
जैसे ही रिपोर्ट ने राजनीतिक विवाद खड़ा किया और अरबपति गौतम अडानी द्वारा संचालित साम्राज्य की जांच के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गईं, तो 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने यह जांचने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया कि क्या संबंधित पक्षों के साथ लेनदेन का खुलासा करने में कोई विफलता थी और क्या शेयरों की कीमतों में हेरफेर किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एएम सप्रे की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने मार्च 2000 और दिसंबर 2022 के बीच अडानी समूह की कंपनियों की कीमतों में तेज वृद्धि और 24 जनवरी के बाद उनमें नाटकीय मंदी के दौरान कोई नियामक विफलता नहीं पाई.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कैश सेगमेंट में अडानी के शेयरों (स्क्रिप्स) के संबंध में कुछ प्रतिकूल नहीं पाया गया, लेकिन छह कंपनियों की ओर से संदिग्ध व्यापार देखा गया है. ये चार एफपीआई, एक कॉरपोरेट निकाय और एक व्यक्ति हैं.’
रिपोर्ट में छह में से किसी के भी नाम का उल्लेख नहीं किया गया है.
विशेषज्ञ समिति ने कहा, ‘हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले इन कंपनियों द्वारा अडानी के शेयरों में शॉर्ट पोजीशन का निर्माण और 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद अपने शॉर्ट पोजीशन को बेचकर उनके द्वारा कमाए गए पर्याप्त लाभ के कारण ट्रेडिंग पैटर्न संदिग्ध नजर आता है.’
अखबार ने लिखा है कि छह कंपनियों के व्यापार के संबंध में विस्तृत जांच की जा रही है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन मामलों की जांच की जा रही है. समिति इन व्यक्तियों के विवरण और नामों की गहराई में नहीं जा रही है या प्रथमदृष्टया साक्ष्य की गुणवत्ता पर टिप्पणी नहीं कर रही है.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति यह सुनिश्चित करना चाहती है कि जांच लंबित होने तक सेबी समेत संबंधित पक्षों की स्थिति से किसी भी तरह से समझौता नहीं किया जाए.’
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से प्राप्त प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ईडी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन से ठीक पहले विशिष्ट पक्षों द्वारा संभावित रूप से उल्लंघनकारी और ठोस बिक्री के बारे में खुफिया जानकारी मिली थी और इससे भारतीय बाजारों की ठोस अस्थिरता के विश्वसनीय आरोप लग सकते हैं और सेबी को प्रतिभूति कानूनों के तहत इस तरह की गतिविधियों की जांच करना चाहिए.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन और अडानी समूह के शेयरों में मंदी से एक महीने पहले 1 मार्च 2020 और 31 दिसंबर 2022 के बीच चार हिस्सों में समूह की फ्लैगशिप कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) के कारोबार का विश्लेषण दिखाता है कि सरकार के स्वामित्व वाली एलआईसी सबसे अधिक घाटे में रही, क्योंकि इसने कंपनी के 50 लाख शेयर तब बेचे जब कीमतें 300 रुपये के आसपास थीं और 4.8 करोड़ शेयर तब खरीदे जब कीमतें 1,031 रुपये और 3,859 रुपये के बीच थीं.
अडानी के शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव और विभिन्न संस्थाओं द्वारा उनकी बिक्री और खरीद की विस्तृत जांच के बाद समिति को अडानी समूह से जुड़ी फर्मों द्वारा शेयरों की कीमतों में हेरफेर का कोई सबूत नहीं मिला.
वहीं, सेबी ने समिति को सूचित किया था कि ‘जब अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के शेयरों की कीमत में काफी वृद्धि हुई, तो कोई हेर-फेर का प्रमाण नहीं मिला.’
बता दें कि बीते जनवरी माह में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.