दिल्ली सरकार को राष्ट्रीय राजधानी में अधिकारियों के पोस्टिंग, तबादलों का अधिकार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने वाले मोदी सरकार के अध्यादेश के तहत पूर्व में काम से हटाए गए विशेष सचिव (सतर्कता) को फिर से पद संभालने को कहा गया है. इसी अधिकारी ने दिल्ली आबकारी नीति मामले की रिपोर्ट तैयार की थी.
नई दिल्ली: भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश- जो प्रभावी तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में तबादलों, पोस्टिंग और सतर्कता मामलों का नियंत्रण एक नवगठित प्राधिकरण को देता है- के तहत पहला आदेश आम आदमी पार्टी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाला है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सोमवार का आदेश विशेष सचिव (सतर्कता) वाईवीवीजे राजशेखर को फिर से अपने पद पर काम शुरू करने और अपने कमरे को खोलने (डी-सील) की अनुमति देता है. गोपनीय खंड के रूप में नामित कमरे को भी डी-सील करने का आदेश दिया गया है. आदेश के बाद, राजशेखर ने सहायक निदेशकों को सभी रिकॉर्ड और फाइलों की एक सूची तैयार करने के निर्देश दिए.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो दिनों के भीतर ही आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने उनसे सभी कर्तव्यों और सतर्कता विभाग में चल रही जांचों की जिम्मेदारी को छीन लिया था.
प्रतिक्रियास्वरूप अधिकारी ने प्रमुख सचिव, उपराज्यपाल और गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि उन्हें ‘गंभीर खतरे और संवेदनशील मामलों से संबंधित रिकॉर्ड्स से छेड़छाड़ की आशंका है.’ संवेदनशील मामलों में आबकारी मामले समेत अन्य मामलों का जिक्र किया था.
बता दें कि सतर्कता विभाग, और विशेष तौर पर राजशेखर ने दिल्ली आबकारी नीति मामले में रिपोर्ट तैयार की है. वह मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण में लगे आरोपों; एक अलग खुफिया इकाई की स्थापना से संबंधित एफबीयू मामला; राजनीतिक विज्ञापनों पर खर्च संबंधी आरोपों; और मोहल्ला क्लीनिकों के लिए किराए की जगह लेते वक्त आप कार्यकर्ताओं को पहुंचाए लाभ संबंधी आरोपों की भी जांच कर रहे थे.
राजशेखर और सेवा मंत्री सौरभ भारद्वाज, दोनों ने पिछले 10 दिनों में एक-दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं. जहां मंत्री ने आरोप लगाया कि राजशेखर के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार और जबरन वसूली की कई शिकायतें हैं, वहीं राजशेखर ने भारद्वाज पर डराने-धमकाने का आरोप लगाया है.
राजशेखर उन आठ अधिकारियों में भी शामिल हैं, जिन्होंने आम आदमी पार्टी के नेताओं द्वारा कथित उत्पीड़न किए जाने की शिकायत उपराज्यपाल से की है.
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि चूंकि उपराज्यपाल कार्यालय ने सेवा सचिव आशीष मोरे के तबादले के उनके फैसले को मंजूरी नहीं दी है, इसलिए किसी अन्य अधिकारी का ट्रांसफर किए जाने को कहने का कोई औचित्य नहीं है और उनके पास राजशेखर को ‘ड्यूटी से हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.’
उनके काम पर लौटने की अनुमति दिए जाने के बाद केजरीवाल के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण पर खर्च से संबंधित फाइल जल्द ही मुख्य सचिव और उपराज्यपाल को सौंपे जाने की उम्मीद है.
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 11 मई को माना था कि निर्वाचित दिल्ली सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर सभी प्रशासनिक सेवाओं पर अधिकार है. पीठ ने कहा था कि इन तीन क्षेत्रों के अलावा उपराज्यपाल दिल्ली विधानसभा द्वारा लिए गए निर्णयों से बंधे हैं.
लेकिन, केंद्र सरकार ने 19 मई को जारी एक अध्यादेश के माध्यम से राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना की है, जो ट्रांसफर पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों से संबंधित विषयों के संबंध में दिल्ली के उपराज्यपाल को सिफारिशें करेगा.
अध्यादेश ने उपराज्यपाल (एलजी) की स्थिति को भी मजबूत कर दिया है. एलजी को अंतिम प्राधिकारी बनाया गया है, जो नौकरशाहों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित मामलों को तय करने में अपने ‘एकमात्र विवेक’ से कार्य कर सकता है.