सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों की निजीकरण की केंद्र की सूची में शामिल कंपनियों में से कम से कम चार में वेदांता इच्छुक है. अडानी समूह की भी इनमें से कुछ में दिलचस्पी है. हालांकि समूह ने अतिरिक्त क़र्ज़ न लेने और ऋण चुकाने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है. वहीं वेदांता की कंपनियां इस साल अपने शेयरों की कीमतों में गिरावट से जूझ रही हैं.
नई दिल्ली: अडानी समूह और वेदांता के आर्थिक रूप से कमजोर दिखने के साथ सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों (पीएसयू) के निजीकरण की केंद्र की महत्वाकांक्षाओं पर विराम लग गया है.
समाचार वेबसाइट ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है मूल रूप से बिक्री के लिए पहचानी गई तीन दर्जन कंपनियों में से, सरकार के पास 17 (10 गैर-सूचीबद्ध और 7 सूचीबद्ध) कंपनियों की सूची बची हुई है. मुख्य रूप से कानूनी और दिवालियापन के मुद्दों के कारण हैं, इनकी ब्रिकी की जानी है.
सरकार की निजीकरण सूची में शामिल कंपनियों में से कम से कम चार में वेदांता एक इच्छुक पार्टी है. इनमें भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेट लिमिटेड, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर), एनएमडीसी स्टील और शिपिंग कॉरपोरेशन शामिल हैं.
इनमें से दो कंपनियों – कॉनकोर और एनएमडीसी स्टील – में अडानी समूह की भी दिलचस्पी है. हालांकि समूह ने अतिरिक्त कर्ज नहीं लेने और ऋण चुकाने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है.
बीते जनवरी महीने में अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगाया था. इस रिपोर्ट के आने के एक महीने से भी कम समय में समूह ने अपने स्टॉक का 60 प्रतिशत मूल्य खो दिया था. रिपोर्ट ने कंपनी से 100 बिलियन डॉलर से अधिक का बाजार मूल्य घटा दिया था.
अडानी समूह के शेयरों में गिरावट, इसके ऑफशोर सौदों की जांच में वृद्धि, कई वैश्विक सूचकांकों से निष्कासन और एक संयुक्त संसदीय समिति की जांच के लिए विपक्ष की मांग के बाद निवेशकों का विश्वास बनाने की कोशिश में अडानी समूह ऋण का भुगतान करके सुधारात्मक प्रकिया की ओर चला गया.
कंपनी नए निवेश पर धीमी गति से चल रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह भारत के प्रमुख माल रेल ऑपरेटर ‘कॉनकोर’ के निजीकरण में भाग लेने की योजना पर पहले से ही पुनर्विचार कर रहा है. ब्लूमबर्ग ने बताया कि अडानी ने कॉनकोर जैसे व्यवसायों का अधिग्रहण करने की अपनी महत्वाकांक्षा को छोड़ दिया है.
फरवरी के एक विश्लेषक कॉल में अडानी पोर्ट्स के मुख्य कार्यकारी करण अडानी ने कहा था कि कंपनी का ‘वरीयता का पहला क्रम’ अधिग्रहण पर पुनर्विचार करने से पहले अपने कर्ज को कम करना है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बीच वेदांता 2024 में लगभग 2 बिलियन डॉलर के बॉन्ड को निपटाने के लिए संघर्ष कर रही है. ब्लूमबर्ग की एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि वेदांता समूह की कंपनियों ने इस साल अब तक अपने शेयर की कीमतों में गिरावट देखी है. रिपोर्ट के अनुसार, वे कर्ज लेने के लिए गिरवी के रूप में अधिक इक्विटी का उपयोग कर रहे हैं.
वेदांता ने अधिक पूंजी जुटाने के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय जस्ता कारोबार को हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को 2.98 अरब डॉलर में बेचने पर भी विचार किया, लेकिन मूल्यांकन की चिंताओं को लेकर सरकार ने इस फैसले का विरोध किया. हिंदुस्तान जिंक वेदांता की सहायक कंपनी है.
विश्लेषकों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2024 में सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों के विनिवेश (निजीकरण) के माध्यम से धन जुटाने के लिए एक रूढ़िवादी लक्ष्य भी निर्धारित किया है.
ब्लूमबर्ग ने आंकड़ों के विश्लेषण का हवाला देते हुए बताया कि 2014 के बाद से केंद्र सरकार की कुल विनिवेश आय 4.7 ट्रिलियन रुपये या 2023 के लिए अपने प्रस्तावित खर्च बजट का लगभग 10वां हिस्सा है. और मौजूदा बाजार मूल्यांकन पर भारत केवल सात सूचीबद्ध कंपनियों को बेचने से लगभग 13 बिलियन डॉलर प्राप्त करेगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने अभी तक कॉनकोर के निजीकरण के लिए निविदाएं आमंत्रित नहीं की है, जबकि एनएमडीसी स्टील के लिए वित्तीय बोलियां आमंत्रित की जानी बाकी हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का निजीकरण जिसे भारत का अब तक का सबसे बड़ा करार कहा गया था, इसकी प्रक्रिया मई 2022 में रुक गई, केवल वेदांता ही मैदान में रह गया. अन्य दो फर्म जो सौदे से बाहर हो गए, वे यूएस वेंचर फंड अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट इंक और आई स्क्वॉयर कैपिटल एडवाइजर्स थे.
केवल टाटा समूह का केंद्र के साथ एयर इंडिया का सौदा करना भारत में निजीकरण का एक सफल उदाहरण था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार पूनम गुप्ता के अनुसार, अधिक बिक्री करने के लिए केंद्र सरकार को बोली लगाने वालों के सामने आने वाली कानूनी बाधाओं को दूर करना चाहिए, अपनी तकनीकी विशेषज्ञता में सुधार करना चाहिए और राज्यों से अपनी संपत्ति के निजीकरण में सक्रिय रुख अपनाने का आग्रह करना चाहिए.
उन्होंने ब्लूमबर्ग को बताया, ‘सैद्धांतिक रूप से अधिक निजी स्वामित्व की आवश्यकता की दृढ़ स्वीकृति है. फिर भी निजीकरण का निष्पादन अक्सर एक जटिल कार्य होता है.’
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