कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद का विशेष सत्र बुलाने और उन मुद्दों पर बहस की अनुमति देने की चुनौती दी, जिन पर विपक्ष चर्चा करना चाहता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि जीवंत लोकतंत्र के बिना एक बड़ी इमारत (संसद) का कोई अर्थ नहीं है.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद का विशेष सत्र बुलाने और उन मुद्दों पर बहस की अनुमति देने की चुनौती दी, जिससे विपक्ष नाराज है, यदि वह (प्रधानमंत्री) वास्तव में एक फलते-फूलते लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं.
द टेलीग्राफ के मुताबिक, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा, ‘एक विशेष सत्र बुलाएं और विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर बहस की अनुमति दें.’
उन्होंने कहा, ‘संसद केवल एक भव्य इमारत नहीं है, यह पहले संसद है. यह बहस और जवाबदेही के बारे में है. आइए देखें कि उनकी (मोदी की) असली मंशा क्या है.’
उन्होंने उल्लेख किया कि पिछले तीन सालों में संसद में चीनी घुसपैठ पर कोई बहस नहीं होने दी गई. शर्मा ने कहा, ‘1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ युद्ध के बीच एकमात्र सांसद अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर संसद का विशेष सत्र बुलाया था.’
उन्होंने कहा, ‘चीनी सैनिक हमारे क्षेत्र के अंदर बैठे हैं और प्रधानमंत्री जवाबदेह नहीं हैं? बहस की अनुमति क्यों नहीं दी गई? जीवंत लोकतंत्र के बिना एक अच्छी (संसद) इमारत का कोई मतलब नहीं है.’
विपक्षी दलों ने मोदी पर संसद के अंदर और बाहर चर्चा और असहमति का गला घोंटने का आरोप लगाते हुए, साथ ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अपमान का हवाला देते हुए नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार किया था.
उल्लेखनीय है कि बीते संसद सत्र में उल्लिखित कारोबारी गौतम अडानी और मोदी के साथ उनके संबंधों के सभी महत्वपूर्ण संदर्भों को हटा दिया गया है, साथ ही सरकार ने चीनी घुसपैठ पर संसद में चर्चा करने के हर प्रयास को विफल किया है.
गौरतलब है कि 8 फरवरी को स्पीकर ओम बिड़ला के कहने पर अडानी समूह से प्रधानमंत्री के रिश्ते वाले राहुल गांधी के भाषण के अंशों को संसदीय रिकॉर्ड से हटा दिया गया था. कुल 18 अंशों को रिकॉर्ड से हटाया गया था.
यहां तक कि अडानी समूह के खिलाफ शेयर बाजार में हेराफेरी और लेखा धोखाधड़ी के आरोपों पर भी चर्चा नहीं होने दी गई. राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे को उठाने के लिए राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का इस्तेमाल किया.
उधर, मोदी सरकार के नौ साल की विफलताओं को उजागर करने के अभियान के तहत मुंबई में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.चिदंबरम ने कहा, ‘राष्ट्रीय सुरक्षा आज सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन सरकार ने तीन साल से चीन पर बहस की अनुमति नहीं दी है.’
चिदंबरम ने कहा, ‘भारतीय गश्ती दल की पहुंच कम कर दी गई है. ऐसा लगता है कि विभिन्न स्तरों पर कई दौर की बातचीत में चीन एक इंच भी नहीं झुका है. चीन-पाकिस्तान धुरी मजबूत हो गई है लेकिन वास्तविक स्थिति को लेकर संसद अंधेरे में है.’
चिदंबरम ने भारतीय लोकतंत्र के सामने मौजूद खतरों के बारे में भी बताया.
उन्होंने कहा, ‘इस बात की चिंता बढ़ रही है कि क्या देश संविधान के अनुसार शासित हो रहा है. कोई भी यह नहीं मानता है कि एनडीए सरकार के तहत भारत स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के ऊंचे संवैधानिक लक्ष्यों तक पहुंच रहा है.’
चिदंबरम ने कहा, ‘सामाजिक संघर्ष, सांप्रदायिक संघर्ष, असहिष्णुता, घृणा, भय और लोगों के बीच गहरा विभाजन हर दिन हमारे जीवन को खराब करते हैं. डराने-धमकाने और झूठे मुकदमे लगाकर नागरिकों की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर रूप से अंकुश लगाया गया है. बुलडोजर न्याय ने प्राकृतिक न्याय का स्थान ले लिया है.’
उन्होंने कहा, ‘मोदी सरकार ने राज्यों की विधायी और कार्यकारी शक्तियों में कटौती की है. गैर-भाजपा शासित राज्यों के राज्यपाल वायसराय की तरह काम कर रहे हैं.’
उन्होंने जोड़ा, ‘संसदीय नियमों और परंपराओं का उल्लंघन किया जाता है. संसद में बहस दुर्लभ होती जा रही है और यहां तक कि महत्वपूर्ण विधेयकों पर मत विभाजन की मांग को भी दरकिनार कर दिया गया है.’
चिदंबरम ने आगे कहा, ‘कानूनों को बिना चर्चा के और संसदीय स्थायी समितियों द्वारा जांच के दरकिनार कर दिया गया. केंद्र सरकार की एजेंसियां झूठे मुकदमे, जांच की धमकी और गिरफ्तारी की धमकी देकर राज्य सरकारों को अस्थिर करने में लगी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट सहित अदालतों के फैसलों के लिए बहुत कम सम्मान है. संस्थाएं जो लोकतंत्र के स्वतंत्र स्तंभ हैं, उन्हें केंद्र सरकार के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कमजोर या अधीन कर दिया गया है.’
चिदंबरम ने कहा, ‘यहां सिर्फ लोकतंत्र का आभास बचा है, लोकतंत्र के पेड़ को खोखला कर दिया गया है. इन ज्यादतियों का उद्देश्य राज्यों और 140 करोड़ लोगों को एक सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी केंद्र सरकार के अधीन लाना है.’
उन्होंने कहा, ‘आगे का खतरा केंद्रीयवाद है जैसा कि हमने कुछ देशों में देखा है. मैं लोगों को आगाह करता हूं कि अगर वह दिन आया तो यह संघवाद का अंत होगा.’