बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट के जजों के लिए रिटायरमेंट के बाद कोई राजनीतिक पद स्वीकारने के लिए दो साल का ‘कूलिंग पीरियड’ तय करने की मांग की है. उनका कहना है कि ऐसा न होने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बारे में प्रतिकूल धारणा बन रही है.
नई दिल्ली: वकीलों के एक निकाय ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए दो साल के ‘विराम काल’ (कूलिंग ऑफ पीरियड) की घोषणा करने की मांग की, इससे पहले कि वे सेवानिवृत्ति के बाद की राजनीतिक नियुक्तियों जैसे राज्यपाल के पदों को स्वीकार कर सकें.
इसने कहा कि उनके रिटायरमेंट के फ़ौरन बाद राजनीतिक कार्यालयों का हिस्सा बनने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बारे में जनता की धारणा प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने संस्थापक अध्यक्ष और अधिवक्ता अहमद मेहदी आब्दी के माध्यम से दायर याचिका में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एस. अब्दुल नज़ीर की इस साल 12 फरवरी को आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्ति को मामला दर्ज करने का कारण बताया.
याचिका में पूर्व न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद राजनीतिक पद स्वीकार करने के कई उदाहरणों का उल्लेख किया गया है और कहा गया है, ‘इस न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा बिना किसी कूलिंग ऑफ अवधि के सेवानिवृत्ति के बाद राजनीतिक नियुक्तियों की स्वीकृति न्यायपालिका के स्वतंत्रता के बारे में सार्वजनिक धारणा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है.’
निकाय ने अपनी दलील में कहा, ‘हाल के दिनों में मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त होने के बाद) पी. सदाशिवम को केरल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था, जस्टिस रंजन गोगोई (पूर्व सीजेआई) को राज्यसभा के लिए नामित किया गया था और जस्टिस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था.’
इसने आगे कहा कि यह एक संवैधानिक जरूरत है कि रिटायरमेंट के बाद सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए किसी भी अन्य राजनीतिक नियुक्ति को स्वीकार करने के लिए दो साल का विराम काल होनी चाहिए.
याचिका में नियुक्ति के समय एक शर्त लगाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की भी मांग की गई है कि सेवानिवृत्ति के बाद उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए राजनीतिक पद ग्रहण करने से पहले दो साल की कूलिंग ऑफ अवधि हो.
इसने शीर्ष अदालत से यह भी आग्रह किया कि वह सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से इस याचिका के लंबित रहने के दौरान राजनीतिक नियुक्तियों को स्वीकार न करने का अनुरोध करे.
याचिका में कहा गया है, ‘एक स्वतंत्र न्यायपालिका कानून के शासन को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है, जिसे सरकार के लोकतांत्रिक रूप के लिए एक शर्त के रूप में माना जाता है. इसीलिए इस माननीय न्यायालय द्वारा न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संविधान के मूल ढांचे के हिस्से के रूप में घोषित किया गया है.’
इसमें आगे कहा, ‘इसलिए बिना किसी कूलिंग ऑफ पीरियड के इस माननीय न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद राजनीतिक नियुक्तियों की स्वीकृति न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बारे में जनता की धारणा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है.’
याचिका में आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले की रिपोर्ट का हवाला दिया गया और कहा गया कि पूर्व सीजेआई आरएम लोढा के नेतृत्व में शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त पैनल ने बीसीसीआई में कई सुधारों की सिफारिश की थी और उनमें से एक यह था कि एक निश्चित अवधि की सेवा के बाद एक बोर्ड अधिकारी के लिए तीन साल की कूलिंग ऑफ पीरियड होना चाहिए.
याचिका में जस्टिस नजीर की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति और पूर्व सीजेआई गोगोई के राज्यसभा के लिए नामांकन का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इस तरह के पदों को स्वीकार करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बारे में जनता की धारणा कमजोर हो सकती है.
इसने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को राजनीतिक कार्यालयों में नियुक्त किया गया है.
इसमें कहा गया है, ‘1952 में जस्टिस फ़ज़ल अली को इस माननीय न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद ओडिशा के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था. 1958 में मुख्य न्यायाधीश एमसी चागला ने प्रधानमंत्री नेहरू के निमंत्रण पर अमेरिका में भारत के राजदूत बनने के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय से इस्तीफा दे दिया था. अप्रैल 1967 में मुख्य न्यायाधीश सुब्बा राव ने राष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ने के लिए इस माननीय न्यायालय से इस्तीफा दे दिया था.’