शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की याचिका ने न्यायाधीशों की ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों के नाम पर रिश्वत मांगने के मामले में एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. अदालत ने कहा कि इस तरह की याचिका ने न्यायाधीशों की ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया है.
उच्चतम न्यायालय ने वकील कामिनी जायसवाल की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि सीबीआई की प्राथमिकी किसी न्यायाधीश के खिलाफ नहीं है और किसी न्यायाधीश के खिलाफ इस तरह की शिकायत दर्ज करना भी संभव नहीं है.
बहरहाल, इसने जायसवाल के खिलाफ मानहानि नोटिस जारी नहीं किया. न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की पीठ ने मामले में एक न्यायाधीश को सुनवाई से हटाने के लिए प्रयास करने पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की और कहा कि यह उचित नहीं है.
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जायसवाल ने वरिष्ठ वकील शांति भूषण और प्रशांत भूषण के माध्यम से मामले में न्यायमूर्ति खानविलकर के हटने की मांग की थी. खानविलकर ने खुद को मामले से हटाने से इंकार कर दिया था.
पीठ ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर कर संस्थान को नुकसान पहुंचाया गया है और इसकी ईमानदारी पर अनावश्यक संदेह पैदा किया गया है.
याचिका में दावा किया गया था कि मेडिकल कॉलेजों से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए गए थे. इसमें उड़ीसा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश इशरत मसरूर क़ुद्दुसी भी आरोपी हैं.
यह जांच उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस (रिटायर्ड) आईएम क़ुद्दुसी और ओडिशा के कुछ अन्य बिचौलियों, जिनमें एक नाम बिस्वनाथ अग्रवाल का है, के ख़िलाफ़ सीबीआई द्वारा किए गए एक एफआईआर से संबंधित है.
आरोप यह लगाया गया है कि अग्रवाल ने कानपुर के एक मेडिकल कॉलेज के प्रोपराइटरों से सुप्रीम कोर्ट से उनके हक में फैसला दिलवाने के नाम पर काफी पैसा लिया था. ये पैसा कथित तौर पर कुछ जजों को दिया जाना था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)