सोशल मीडिया के ज़रिये न्यायिक अधिकारियों को बदनाम नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक ज़िला जज के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर एक व्यक्ति को दस दिन की क़ैद की सज़ा दी गई थी. शीर्ष अदालत ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि मनचाहा आदेश न मिलने का अर्थ यह नहीं है कि न्यायिक अधिकारी को बदनाम करें.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक ज़िला जज के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर एक व्यक्ति को दस दिन की क़ैद की सज़ा दी गई थी. शीर्ष अदालत ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि मनचाहा आदेश न मिलने का अर्थ यह नहीं है कि न्यायिक अधिकारी को बदनाम करें.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए  कहा कि कोई सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके न्यायिक अधिकारियों को बदनाम नहीं कर सकता है.

हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को जिला न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए 10 दिन की जेल की सजा सुनाई थी, जिसको शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाश पीठ ने कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप की इच्छुक नहीं है.

अदालत कृष्ण कुमार रघुवंशी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक जिला न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए उनके खिलाफ शुरू किए गए आपराधिक अवमानना ​​मामले में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी.

जस्टिस त्रिवेदी ने मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि आपको एक अनुकूल आदेश नहीं मिलता है इसका मतलब यह नहीं है कि आप न्यायिक अधिकारी को बदनाम करेंगे. न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ कार्यपालिका से ही नहीं बल्कि बाहरी ताकतों से भी आजादी है. यह दूसरों के लिए भी एक सबक होना चाहिए. उन्हें न्यायिक अधिकारी पर कोई आरोप लगाने से पहले दो बार सोचना चाहिए था. उन्होंने न्यायिक अधिकारी को अपशब्द कहे. उनकी छवि को हुए नुकसान के बारे में सोचें.’

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट से नरमी बरतने की मांग करते हुए कहा कि कैद का आदेश देना ज्यादती थी. उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है और पहले ही आवेदक 27 मई से जेल में है.

शीर्ष अदालत की पीठ ने तब कहा, ‘हम यहां कानून पर फैसला करने के लिए हैं, दया दिखाने के लिए नहीं. खासकर ऐसे लोगों के लिए.’

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश एसपीएस बंदेला द्वारा किए गए एक संदर्भ के जवाब में अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 15 (2) के तहत रघुवंशी के खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई थी. यह संदर्भ रघुवंशी द्वारा एक मंदिर से संबंधित विवाद में अदालत के आदेशों की अवहेलना और वॉट्सऐप के माध्यम से अदालत की छवि खराब करने वाले एक पत्र को फैलने से संबंधित था.

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