विश्व की 30 सरकारें ट्रोल्स के ज़रिये विरोध की आवाज़ दबा रही हैं: मानवाधिकार संगठन

मानवाधिकार संस्था फ्रीडम हाउस ने अपने अध्ययन में आॅनलाइन आज़ादी के मामले में भारत को आंशिक स्वतंत्रता वाले देश में शामिल किया है.

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(फोटोः रॉयटर्स)

मानवाधिकार संस्था फ्रीडम हाउस ने अपने अध्ययन में आॅनलाइन आज़ादी के मामले में भारत को आंशिक स्वतंत्रता वाले देश में शामिल किया है.

Protesters from the Anonymous India group of hackers wear Guy Fawkes masks as they protest against laws they say gives the government control over censorship of internet usage in Mumbai, June 9, 2012. Anonymous India is associated with the internationa hacker group Anonymous whose previous targets have included high profile targets. REUTERS/Vivek Prakash (INDIA - Tags: SOCIETY SCIENCE TECHNOLOGY POLITICS CIVIL UNREST) - RTR33C09
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

वॉशिंगटन: एक मानवाधिकार संगठन ने मंगलवार को कहा कि रूस और चीन के साथ-साथ कई अन्य सरकारें भी सोशल मीडिया को अपने हित के लिए इस्तेमाल करने के काम में शामिल हो गईं हैं. वे असंतोष और विरोध के स्वरों को ऑनलाइन दबा रही हैं, जो कि लोकतंत्र के लिए गंभीर ख़तरा है.

मानवाधिकार समूह फ्रीडम हाउस ने कहा कि 65 देशों में इंटरनेट आज़ादी पर एक अध्ययन किया गया था और इसमें पाया गया कि 30 सरकारें ऑनलाइन सूचना को विकृत करने के लिए किसी न किसी तरह से सूचना से छेड़छाड़ करती हैं.

पिछले साल ऐसी सरकारों की संख्या 23 थी.

मानवाधिकार समूह की ‘फ्रीडम ऑन नेट 2017’ रिपोर्ट के मुताबिक, इन प्रयासों में पेड टिप्पणी करने वाले, ट्रोल्स, बोट्स (वेब रोबोट या इंटरनेट बोट, यह एक सॉफ्टवेयर होता है जो इंटरनेट पर आॅटोमैटिक कार्य संपादित करता है), फ़र्ज़ी न्यूज़ वेबसाइट, प्रचार एजेंसियां शामिल हैं.

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हर रंग से रंगे गए देशों में आॅनलाइन पाबंदी नहीं है. पीले रंग वाले देशों में इंटरनेट आज़ादी आंशिक तौर पर है. नीले रंग के देशों में आॅनलाइन आज़ादी नहीं है वहीं स्लेटी रंग के देशों में इंटरनेट ही उपलब्ध नहीं है. (फोटो साभार: फ्रीडम हाउस)

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल में कम से कम 18 देशों के चुनाव में ऑनलाइन तोड़-मरोड़ और गलत बयानी के तरीकों ने अहम किरदार अदा किया है. इन देशों में अमेरिका भी शामिल है.

फ्रीडम हाउस के अध्यक्ष माइकल अब्रामोवित्ज़ ने कहा कि सरकार का प्रचार करने के लिए पैसा देकर टिप्पणी करने वालों और राजनीति बोट्स का इस्तेमाल करने में चीन और रूस सबसे आगे थे लेकिन अब यह विश्व स्तर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि तेजी से फैलती ये तकनीकें लोकतंत्र और सिविल एक्टिविज़्म के लिए संभावित ख़तरा है.

फ्रीडम ऑन नेट परियोजना की निदेशक संजा कैली ने बताया कि इस तरह के तोड़-मरोड़ करने के तरीके को पकड़ना अक्सर मुश्किल होता है. इसके अलावा सेंसरशिप और वेबसाइट ब्लॉक करने की तुलना में इसका मुकाबला करना भी कठिन है.

आॅनलाइन आज़ादी के मामले में भारत आंशिक स्वतंत्रता वाले देशों में शुमार

फ्रीडम हाउस  ने कहा कि वर्ष 2017 लगातार सातवां साल है जब इंटरनेट आज़ादी में कुल मिलाकर कमी देखी गई है. संगठन ने अपने सर्वे में आॅनलाइन आज़ादी के मामले में भारत को आंशिक स्वतंत्रता वाले देशों की सूची में डाला है.

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अध्ययन में भारत को आॅनलाइन आज़ादी के मामले में आंशिक स्वतंत्रता वाला देश बताया गया है. (फोटो साभार: फ्रीडम हाउस)

सर्वे के अनुसार, 2011 में आॅनलाइन आज़ादी के मामले में भारत का स्कोर 36 था जो 2012 में बढ़कर 39 हो गया. 2013 में यह 47 था और 2014 में घटकर यह 42 हो गया.

साल 2015 में यह स्कोर घटकर 40 हो गया. 2016 में यह 41 हुआ और 2017 में भी आॅनलाइन आज़ादी के मामले में भारत का स्कोर 41 है.

फ्रीडम हाउस ने जून 2016 से मई 2017 के बीच किए गए अपने अध्ययन में पाया कि भारत में इंटरनेट उपलब्धता और गति में सुधार हुआ है. अध्ययन के अनुसार, इस अवधि के दौरान स्थानीय प्राधिकारियों के आदेश पर 37 अलग-अलग अस्थायी टेली सेवाओं को बंद रखा गया था.

इसी अवधि के दौरान कश्मीर घाटी में फेसबुक, ट्विटर और वॉट्स ऐप समेत 22 सोशल मीडिया साइटों को एक महीने के लिए अधिकारियों ने प्रतिबंधित कर दिया था.

इसके अलावा धार्मिक और राजनीतिक टिप्पणियां करने के लिए 20 से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया.

अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अगस्त 2017 भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में निजता को मूल अधिकार माना.

पाबंदी लगाने के मामले में जम्मू कश्मीर देश सबसे बुरी तरह से प्रभावित राज्य रहा है. यहां कई महीनों तक मोबाइल और फिक्स्ड लाइन कनेक्शन प्रतिबंधित रहे हैं.

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इंटरनेट आज़ादी के मामले में भारत का साल दर साल स्कोर. (फोटो साभार: फ्रीडम हाउस)

फ्रीडम हाउस के अनुसार, जुलाई 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान बीएसएनएल को छोड़कर सभी मोबाइल सेवा प्रदाताओं ने अपनी फोन सेवाएं राज्य भर में बंद कर दी थीं.

कुछ दिनों बाद फोन सेवा तो शुरू कर दी गई थी लेकिन जम्मू क्षेत्र में 17 दिनों बाद मोबाइल सेवाएं वापस शुरू की गईं. वहीं कश्मीर घाटी में 134 दिनों तक पोस्टपेड उपभोक्ताओं के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवा उपलब्ध नहीं थी. वहीं प्रीपेड उपभोक्ताओं के लिए इंटरनेट सेवाएं तकरीबन छह महीने बाद यानी अगले साल जनवरी में शुरू की गईं.

कश्मीर घाटी में स्थानीय उपचुनाव के दौरान उपजी अशांति के बाद कुछ दिनों के लिए मोबाइल और फिक्स्ड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थी.

अध्ययन में बताया गया कि भारत के दूसरे राज्यों में भी इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगाई गई थी. इन राज्यों में महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान शामिल हैं.

हरियाणा और राजस्थान में तकरीबन सात घटनाएं ऐसी हुईं जब इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगाई गई. हरियाणा में जाट आंदोलन के हिंसक होने पर पाबंदी लगाई गई थी. वहीं राजस्थान के भीलवाड़ा में चार अवसरों पर इंटरनेट पाबंदी लगाई गई.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)