केंद्र सरकार राजद्रोह क़ानून को और अधिक कठोर बनाने की योजना बना रही है: कांग्रेस

विधि आयोग ने विवादास्पद राजद्रोह क़ानून को कुछ बदलावों के साथ बरक़रार रखने का प्रस्ताव दिया है. इसके तहत सज़ा की अवधि को तीन साल से बढ़ाकर सात साल करने का भी सुझाव दिया गया है. मई 2022 में शीर्ष अदालत ने इस क़ानून पर तब तक रोक लगा दी थी, जब तक सरकार इसकी समीक्षा न कर ले.

अभिषेक सिंघवी. (फोटो साभार: फेसबुक)

विधि आयोग ने विवादास्पद राजद्रोह क़ानून को कुछ बदलावों के साथ बरक़रार रखने का प्रस्ताव दिया है. इसके तहत सज़ा की अवधि को तीन साल से बढ़ाकर सात साल करने का भी सुझाव दिया गया है. मई 2022 में शीर्ष अदालत ने इस क़ानून पर तब तक रोक लगा दी थी, जब तक सरकार इसकी समीक्षा न कर ले.

अभिषेक सिंघवी. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: भारत के विधि आयोग द्वारा प्रमुख संशोधनों के साथ राजद्रोह कानून को बनाए रखने के प्रस्ताव के साथ कांग्रेस ने शुक्रवार को केंद्र पर आरोप लगाया कि वह औपनिवेशिक युग के कानून को और अधिक ‘सख्त’ बनाने की योजना बना रही है.

पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले केंद्र सरकार एक संदेश दे रही है कि इसका इस्तेमाल विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया जाएगा.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा, ‘भाजपा अपने साधनों और एजेंसियों के माध्यम से राजद्रोह कानून का इस्तेमाल विरोध को दबाने, वश में करने और असहमति को शांत करने में स्पष्ट रूप से कर रही है या​ ऐसा करने का इरादा रख रही रही है. इस सरकार ने राजनीतिक असंतोष के खिलाफ स्पष्ट रूप से इस कानून के अपने चयनात्मक और पक्षपातपूर्ण दुरुपयोग को जारी रखने के अपने स्पष्ट इरादे की घोषणा की है.’

यह बताते हुए कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल एक साल पहले राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी, सिंघवी ने कहा कि यह ‘काफी आश्चर्यजनक’ है कि कैसे विधि आयोग ने न केवल आईपीसी की धारा 124ए राजद्रोह को बनाए रखने की सिफारिश की है बल्कि इसे कठोर और अधिक क्रूर बना दिया है.

गैर-जमानती प्रावधानों के साथ इस कानून के तहत ऐसा कोई भाषण या अभिव्यक्ति, जो भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना ​​या असंतोष को बढ़ाने का प्रयास करता है तो य​ह एक दंडनीय अपराध है, जिसमें अधिकतम सजा आजीवन कारावास तक हो सकती है.

अभिषेक सिंघवी ने कहा, ‘यह एक भयानक, दुखद और विश्वासघाती घटनाक्रम है. औपनिवेशिक युग के कानून का दुरुपयोग करके भाजपा कठोर और घातक बनने की योजना बना रही है.’

उन्होंने कहा कि विधि आयोग का प्रस्ताव मौजूदा कानून को ‘कहीं अधिक कठोर और आक्रामक बनाता है. इसके तहत न्यूनतम सजा को तीन से बढ़ाकर सात साल कर दिया गया है.

सिंघवी ने कहा कि प्रस्ताव में इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कोई अतिरिक्त सुरक्षा, चेतावनी या कोई सीमा प्रदान नहीं की गई है. उन्होंने दावा किया, ‘इसने इस सरकार की औपनिवेशिक मानसिकता के बारे में स्पष्ट संकेत दिया है.’

उन्होंने कहा, ‘एक औपनिवेशिक मानसिकता इस संकेत के साथ राष्ट्र को भेजी गई है कि हम इस कठोर प्रावधान को आपके लिए खतरे के रूप में, आप पर खतरे के रूप में, भाषण, विचार और कार्रवाई की स्वतंत्रता के खिलाफ खतरे के रूप में बनाए रखने का इरादा रखते हैं, जो कि लोकतंत्र के सार हैं.’

मालूम हो कि कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले भारत के 22वें विधि आयोग ने विवादास्पद राजद्रोह कानून को निरस्त करने के खिलाफ तर्क दिया है. यह कहा गया है कि इसे कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा जाना चाहिए.

समाचार वेबसाइट बार और बेंच के अनुसार, विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘धारा 124ए (राजद्रोह) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में बनाए रखने की आवश्यकता है. हालांकि सुझाए गए कुछ संशोधन इसमें केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के अनुपात निर्णय को शामिल करके पेश किया जा सकता है, ताकि प्रावधान के उपयोग के बारे में अधिक स्पष्टता लाई जा सके.’

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, विधि आयोग ने सिफारिश की है कि कानून के तहत सजा की अवधि बढ़ाई जानी चाहिए. फिलहाल निर्धारित सजा तीन साल तक की कैद या जुर्माना है. रिपोर्ट में अब कहा गया है कि इसे बढ़ाकर आजीवन कारावास या सात साल तक की कैद या जुर्माना किया जाना चाहिए.

मालूम हो कि शीर्ष न्यायालय ने 11 मई 2022 को जारी अपने ऐतिहासिक आदेश में इस विवादास्पद कानून पर उस तक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक कि केंद्र औपनिवेशिक काल के इस कानून की समीक्षा करने के अपने वादे को पूरा नहीं करता है.

सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने कहा था कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी एफ़आईआर को दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत जबरदस्ती क़दम उठाने से तब तक परहेज़ करेंगी, जब तक कि यह पुनर्विचार के अधीन है. यह उचित होगा कि इसकी समीक्षा होने तक क़ानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए.

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