महाकाल लोक में गिरी मूर्तियों को लेकर कांग्रेस का भ्रष्टाचार का आरोप भाजपा को कितना भारी पड़ेगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में करोड़ों की लागत से बने 'महाकाल लोक कॉरिडोर' के लोकार्पण के समय इसकी तुलना सैकड़ों साल पुराने दक्षिण भारतीय मंदिरों से की थी. विडंबना यह है कि इसी परिसर में लगी मूर्तियां लोकार्पण के महज़ सात महीने बाद आंधी में गिर गईं.

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महाकाल लोक में गिरी हुई मूर्तियों को हटाती क्रेन. (फोटो साभार: ट्विटर)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में करोड़ों की लागत से बने ‘महाकाल लोक कॉरिडोर’ के लोकार्पण के समय इसकी तुलना सैकड़ों साल पुराने दक्षिण भारतीय मंदिरों से की थी. विडंबना यह है कि इसी परिसर में लगी मूर्तियां लोकार्पण के महज़ सात महीने बाद आंधी में गिर गईं.

महाकाल लोक में गिरी हुई मूर्तियों को हटाती क्रेन. (फोटो साभार: ट्विटर)

‘महाकाल लोक की ये भव्यता समय की सीमाओं से परे आने वाली कई पीढ़ियों को अलौकिक दिव्यता के दर्शन कराएगी. भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को ऊर्जा देगी… महाकाल की नगरी उज्जैन के बारे में हमारे यहां कहा गया है कि प्रलयो न बाधते, तत्र महाकाल पुरी अर्थात महाकाल की नगरी प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है.’

यह शब्द भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर परिसर में सैकड़ों करोड़ की लागत से बने ‘महाकाल लोक’ के लोकार्पण के समय 11 अक्टूबर 2022 को कहे थे.

लेकिन, प्रलय के प्रहार से मुक्त महाकाल नगरी बीते 28 मई को कथित भ्रष्टाचार के प्रहार से तब कराह उठी जब ‘आने वाली कई पीढ़ियों को अलौकिक दिव्यता के दर्शन’ कराने वाले ‘महाकाल लोक’ ने पहली बार आंधी-बारिश का सामना किया. तेज आंधी में चंद पलों के भीतर ही महाकाल लोक में लगाई गईं सप्तऋषियों की सात में से छह विशाल प्रतिमाएं धराशायी हो गईं. गनीमत रही कि हादसे के वक्त मौके पर मौजूद श्रद्धालुओं में से कोई हताहत नहीं हुआ.

घटना के बाद सामने आया कि लगाई गई प्रतिमाएं पत्थर या धातु की न होकर फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक (एफआरपी) से बनी थीं और अंदर से खोखली थीं, मजबूती देने के लिए लोहे/स्टील का इस्तेमाल नहीं किया गया था. शासन-प्रशासन ने इसके पीछे तर्क दिया कि पत्थर की प्रतिमाओं में 10 साल का समय लगता और बजट भी कई गुना बढ़ जाता.

हालांकि, प्रतिमा निर्माण के वर्क ऑर्डर में भी एफआरपी की ही प्रतिमाएं लगाए जाने का उल्लेख है लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या एफआरपी की प्रतिमाएं बनाए जाने में भी मानकों का पालन हुआ?

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि यह घटना राज्य की भाजपा सरकार का सुनियोजित भ्रष्टाचार है. मूर्ति निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल हुआ है और एफआरपी की मूर्तियों को मजबूती देने के लिए अपनाए जाने वाले जरूरी तरीकों की अनदेखी की गई है.

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. साल के अंत में होने वाले चुनावों से पहले विपक्षी दल कांग्रेस राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर लगातार हमलावर बना हुआ है. कर्नाटक चुनाव में मिले सकारात्मक परिणामों के बाद कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में भी भाजपा सरकार को उन्हीं मुद्दों पर घेरने की नीति पर काम किया, जिन्होंने उसे कर्नाटक में सफलता दिलाई थी. उनमें से एक मुद्दा है, भ्रष्टाचार.

महाकाल लोक की घटना से पहले तक कर्नाटक में भाजपा सरकार की 40 फीसदी कमीशनखोरी की तर्ज पर ही कांग्रेस मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर 50 फीसदी कमीशनखोरी के आरोप लगाती आई थी. घटना के बाद उसका दावा है कि मध्य प्रदेश में 50 नहीं, 80 फीसदी कमीशनखोरी है.

घटना के तुरंत बाद ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया था. समिति ने महाकाल लोक का दौरा करने के बाद कहा, ‘जिस स्तर का घटिया निर्माण हुआ है उसे देखकर तो यही लग रहा है कि इन निर्माण कार्यों में 50 प्रतिशत नहीं, बल्कि 80 प्रतिशत कमीशनखोरी की गई है. अन्यथा क्या कारण है कि 11 अक्टूबर 2022 को जिस महाकाल लोक का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया था, वह मात्र 7 महीनों में ही अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है.’

कांग्रेस की जांच समिति में मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता केके मिश्रा भी शामिल थे. द वायर  से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘हम लोगों ने पूरे निर्माण कार्य को देखा है. बहुत ही घटिया किस्म का निर्माण है. यहां तक कि टाइल्स तक उखड़ रही हैं और लगभग सारी मूर्तियों में दरार पड़ चुकी हैं. कुछ मूर्तियां तो मानो क्षत-विक्षत हो गई हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कर्नाटक में 40 प्रतिशत भ्रष्टाचार को लेकर सरकार गई है. हम लोग गलतफहमी में थे कि मध्य प्रदेश में 50 फीसदी भ्रष्टाचार हुआ है, क्योंकि महाकाल लोक को देखने पर कहेंगे कि 80 फीसदी भ्रष्टाचार हुआ है.’

वहीं, समिति के एक और सदस्य कांग्रेस विधायक एवं पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का कहना है, ‘पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने महाकाल लोक की कल्पना को साकार करने के लिए 350 करोड़ रुपये की योजना न केवल स्वीकार की थी बल्कि बजट आवंटन का भी प्रावधान कर दिया था. यदि उनकी सरकार नहीं जाती तो इतनी ही धनराशि में उच्च गुणवत्ता वाला बेहतर निर्माण हो जाता, किंतु शिवराज सरकार ने 800 करोड़ रुपयों का खर्च कर गुणवत्ताहीन निर्माण करवाकर भारी भ्रष्टाचार किया है.’

इस बीच, मध्य प्रदेश के लोकायुक्त ने मूर्तियों को हुए नुकसान का स्वत: संज्ञान लिया है और जांच का आदेश दिया है.

महाकाल लोक में अनियमितताओं के संबंध में प्रदेश के लोकायुक्त के समक्ष पहले से ही दो शिकायतें दर्ज हैं, जिनसे कांग्रेस के भ्रष्टाचार के आरोपों को बल मिलता है.

दो शिकायतों में से एक शिकायत तो स्वयं उज्जैन की तराना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक महेश परमार ने की थी. 18 मई 2022 को की गई शिकायत में परमार ने महाकाल लोक में हुए कामों और भुगतान में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. उन्होंने उज्जैन स्मार्ट सिटी के कार्यकारी निदेशक पर पद का दुरुपयोग करते हुए ठेकेदार एमपी बाबरिया को आर्थिक लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया था. आरोप में उल्लेख था कि ठेकेदार ने निर्माण कार्य में तय सामग्री के स्थान पर हल्की सामग्री का इस्तेमाल किया.

यहां गौर करने वाली बात है कि गुजरात की कंपनी एमपी बाबरिया ही वह कंपनी है जिसे महाकाल लोक में प्रतिमा स्थापित करने का ठेका मिला था.

द वायर से बात करते हुए परमार ने कहा, ‘जब निर्माण कार्य चल रहा था, मैंने तभी इसकी गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे. विधानसभा में भी प्रश्न उठाया था. लोकायुक्त को शिकायत की थी. लोकायुक्त ने उज्जैन के कलेक्टर, स्मार्ट सिटी सीईओ, नगर निगम आयुक्त समेत 15 अधिकारियों को नोटिस भी जारी किया था, लेकिन मामले में अब तक कोई नतीजा नहीं निकला. अगर इसकी जांच तब ही कर ली जाती तो यह दिन नहीं देखना पड़ता.’

वहीं, दूसरी शिकायत उज्जैन के ही लक्ष्मण सिंह ठाकुर नामक व्यक्ति ने की थी. उन्होंने शिकायत में उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड पर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने और ठेकेदार को आर्थिक फायदा पहुंचाने के आरोप लगाए थे.

शिकायत में उन्होंने लिखा था, उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड को महाकाल लोक निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए अधिकतम राशि केंद्र सरकार से प्राप्त हुई है, जिसका फायदा स्मार्ट सिटी के पदेन अध्यक्ष, कार्यपालक निदेशक, कंसल्टेंट और इंजीनियर्स ने उठाया. ये अफसर जानते हैं कि स्थानीय स्तर पर जवाबदेही निश्चित नहीं होगी. इसी आधार पर केंद्र सरकार को प्रस्तुत किए गए निर्माण संबंधी दस्तावेज में हेरफेर किया गया.

बहरहाल, लोकायुक्त ने भले ही पुरानी दो शिकायतों पर कोई कड़े कदम न उठाए हों लेकिन महाकाल लोक में घटी हालिया घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए उसने जांच शुरू कर दी है. 3 जून को लोकायुक्त के 5 सदस्यीय एक दल ने महाकाल लोक जाकर सप्तऋषियों की मूर्तियों के खाली पड़े स्थापना स्थल एवं अन्य मूर्तियों की जांच की और उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड से मूर्तियों की खरीदी संबंधी सभी दस्तावेज मंगाए हैं.

हालांकि, कांग्रेस ने इस जांच में भरोसा न दिखाते हुए मध्य प्रदेश के लोकायुक्त एनके गुप्ता से जांच से दूर रहने की मांग की है. विपक्षी दल का आरोप है कि लोकायुक्त सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने राजधानी में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, ‘लोकायुक्त की कुर्सी पर बैठकर एनके गुप्ता अन्याय कर रहे हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान संवैधानिक संस्थाओं को स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दे रहे हैं. एक साल पहले ही हमारे विधायक महेश परमार ने महाकाल लोक में हो रहे घोटाले की शिकायत की थी. गुप्ता इतने लंबे अरसे तक इस भ्रष्टाचार को दबाए क्यों बैठे रहे. जो लोकायुक्त न्याय नहीं करें, भ्रष्टाचार को दबाने का काम करें, अब वही महाकाल लोक में भ्रष्टाचार की जांच कर रहे हैं. वे क्या जांच करेंगे, क्या उम्मीद रखें ऐसे व्यक्ति से?’

नेता प्रतिपक्ष की मांग है कि महाकाल लोक के घोटाले की जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में हो. साथ ही, उन्होंने लोकायुक्त कार्यालय को बंद किए जाने की भी सिफारिश की है.

उन्होंने कहा, ‘मैं मुख्यमंत्री से कहना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश का लोकायुक्त कार्यालय बंद कर दिया जाए. महाकाल लोक घोटाले की जांच केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आयोग द्वारा कराई जाए, तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है. लोकायुक्त से मध्यप्रदेश की जनता का विश्वास उठ चुका है. उनसे हम कोई उम्मीद नहीं कर सकते.’

वहीं, कमलनाथ द्वारा गठित जांच समिति के सदस्यों का कहना है कि वे जल्द ही अपनी रिपोर्ट कमलनाथ को सौंप देंगे. उसके अध्ययन के बाद दोषियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी और हाईकोर्ट में भी उच्च स्तरीय जांच के लिए जनहित याचिका दायर की जाएगी.

राजनीतिक तूल पकड़ चुके इस मामले में परमार ने महाकाल लोक का लोकार्पण करने वाले प्रधानमंत्री मोदी को भी पत्र लिखा है.

इसमें उन्होंने कहा है, ‘आपके द्वारा लोकार्पण किए जाने के महज 7 माह बाद ही महाकाल लोक में सप्तऋषियों की मूर्तियां छोटी-सी ही आंधी में ध्वस्त/खंडित हो गईं. मूर्तियां एफआरपी की थीं, जबकि धातु-पाषाण की लगनी थीं. मूर्तियों का पेडस्टल भी ठीक से फिक्स नहीं किया था. स्थापित मूर्तियों में प्रत्येक की कीमत 4.5 लाख रुपये होने का आकलन है, लेकिन उनकी खरीद 30-35 लाख में हुई है.’

उन्होंने आगे अपने द्वारा की गई शिकायतों और विधानसभा में उठाए गए प्रश्न का हवाला देने के साथ ही लिखा है, ‘आपसे लोकार्पण कराने की जल्दी में और श्रेय लेने की होड़ में मध्य प्रदेश सरकार एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ही इस घटना के जिम्मेदार हैं. देश के प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखकर जम समुदाय की धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात किया गया है. करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ है.’

उन्होंने प्रधानमंत्री से मामले की जांच कराकर दोषियों को सजा देने का अनुरोध किया है.

तेज हवा के कारण उज्जैन के महाकाल लोक कॉरिडोर में क्षतिग्रस्त मूर्तियां. (फोटो साभार: फेसबुक)

राज्यसभा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी कहा है कि महाकाल लोक में पत्थर की जगह फाइबर की मूर्तियां लगाकर घोटाला किया गया है.

इस पर मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता राजपाल सिंह सिसोदिया द वायर  से बातचीत में कहते हैं, ‘’कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के समय ही विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनने का काम हुआ था. इन मूर्तियों का जिस मटेरियल से बनाए जाने का काम तय हुआ था, उस समय सरकार कांग्रेस की ही थी. इन मूर्तियों का भुगतान पास हुआ, उस समय भी सरकार कांग्रेस की थी. यही तथ्य है. अब ऐसे में कांग्रेस का हम पर आरोप लगाना दोमुंही बात है.’

वह आगे कहते हैं, ‘भ्रष्टाचार तब होता जब बताया जाता कि मूर्तियां पत्थर की हैं और लगा दी जातीं फाइबर की. डीपीआर में फाइबर की मूर्तियां हैं, लगी फाइबर की मूर्तियां हैं, भुगतान फाइबर की मूर्तियों का हुआ है तो कहां भ्रष्टाचार होगा. सरकार उनकी थी, आरोप हम पर लगा रहे हैं.’

कुछ ऐसी ही बात राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने भी कही थी. एक संवाददाता सम्मेलन करके भ्रष्टाचार के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कांग्रेस से ठोस सबूत पेश करने या सार्वजनिक माफी मांगने की बात कही थी.

उन्होंने कहा, ‘शिवराज सरकार ने 2017 में महाकाल लोक के निर्माण के लिए 100 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था, जिसमें भूमि अधिग्रहण के लिए 200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. इसके बाद कमलनाथ सरकार के दौरान मूर्ति स्थापना समेत महाकाल लोक निर्माण का कार्यादेश जारी किया गया. मूर्ति लगाने की राशि कमलनाथ सरकार में जारी हुई. कांग्रेस महाकाल लोक को लेकर गंदी राजनीति कर रही है. कांग्रेस का महाकाल लोक में भ्रष्टाचार का आरोप निराधार है. कांग्रेस सरकार के दौरान दो बार भुगतान हुआ तो कांग्रेस बताए कि क्या उसने भ्रष्टाचार किया था?’

एनडीटीवी से बात करते हुए भूपेंद्र सिंह ने कहा, ‘कांग्रेस की जांच समिति के अध्यक्ष सज्जन सिंह वर्मा जब प्रभारी मंत्री थे, तभी इसका सारा प्रजेंटेशन हुआ था. प्रोसिडिंग्स है, उनमें उनके हस्ताक्षर हैं और इन्होंने जो हम लोगों ने टेंडर तैयार किया था और जो स्वीकृति हम लोगों ने की थी, इन लोगों ने उसकी उस समय प्रशंसा की थी और उसको अच्छा माना था. ये तो उन्हीं की अध्यक्षता में उन्होंने बैठक की थी, तो आज क्या हो गया.’

यह बात सही है कि महाकाल रुद्रसागर एकीकृत विकास क्षेत्र (मृदा) के पहले चरण के काम के लिए टेंडर भाजपा की सरकार के समय 4 सितंबर 2018 को जारी हुआ था. दिसंबर में भाजपा की सरकार गिर गई और कांग्रेस सत्ता में आ गई. स्वीकृति और समझौते का काम कांग्रेस सरकार में हुआ. मूर्तियों संबंधी भुगतान तीन चरण में हुए. निर्माण संबंधी दो भुगतान कांग्रेस सरकार में हुए, जबकि स्थापना संबंधी भुगतान कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद आई भाजपा सरकार में हुआ.

मीडिया में मूर्तियों की कीमत को लेकर कांग्रेस नेताओं के अलग-अलग बयान हैं, हालांकि एनडीटीवी की रिपोर्ट बताती है कि वर्क ऑर्डर में 7 करोड़ 75 लाख रुपये की लागत की करीब 100 मूर्तियों की बात थी.

गौर करने वाली बात है कि महाकाल लोक के अनावरण के समय श्रेय लेने की होड़ भाजपा और कांग्रेस दोनों के बीच थी, और अब जब निर्माण में भ्रष्टाचार की बात आ रही है तो दोनों ही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं.

सिसोदिया कहते हैं, ‘कांग्रेस ने हमेशा विरोध की दृष्टि से भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का काम किया है. इससे पहले उज्जैन में सिंहस्थ (महाकुंभ) संपन्न हुआ था. तब भी निर्माण कार्यों को लेकर इसी प्रकार के आरोप लगाए थे. बाद में जब कांग्रेस सरकार में आई तो उसके ही तीन मंत्रियों (जयवर्द्धन सिंह, सज्जन सिंह वर्मा और पीसी शर्मा) की समिति ने सिंहस्थ घोटाले में हमें क्लीन चिट दी थी. अब महाकाल लोक को लेकर आरोप लगा रहे हैं.’

इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच महाकाल लोक की दुर्दशा के लिए अब तक किसी की भी जवाबदेही तय नहीं हो सकी है. प्रशासनिक अधिकारियों ने कह दिया है कि तेज आंधी के चलते ऐसी स्थिति बनी, वहीं सिसोदिया ने सारा दोष प्राकृतिक आपदा पर रख दिया है.

सिसोदिया का कहना है, ‘यह नुकसान प्राकृतिक आपदा में हुआ है. उज्जैन में दो इमारतों के निर्माण ध्वस्त हुए हैं. 50 से ज्यादा बिजली के खंभे और टावर गिरे हैं. सौ से अधिक बड़े पेड़ गिरे हैं. यह प्राकृतिक आपदा बड़ी भारी थी. एक बवंडर था, जिसमें मूर्तियां गिर गईं. सप्तऋषियों की मूर्तियां तालाब के पास थीं, आंधी तालाब की खाली जगह में और तेज होकर बवंडर में बदल जाती है. जब यह बवंडर मूर्तियों से टकराया तो वे गिर गईं.’

सवाल उठता है कि क्या मूर्ति स्थापना के समय इन तथ्यों का ध्यान नहीं रखा गया था? यदि इस बारे में नहीं सोचा गया था, तो यह परियोजना में स्पष्ट खामी उजागर करता है.

बहरहाल, महाकाल लोक उस घटना के बाद कुछ समय के लिए सील कर दिया गया था. बाद में, फिर शुरू खोल दिया गया.

इस बीच, कुछ  मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि सप्तऋषियों की मूर्तियों के अलावा भी कई मूर्तियां और निर्माण आंधी में क्षतिग्रस्त हुए हैं. बीते दिनों पत्थर का एक भारी गुंबद भी टूटकर जमीन पर गिरा था. कहा जा रहा है कि जल्द ही बरसात का मौसम आने वाला है. फिर से 28 मई जैसी स्थिति बनने की आशंका के चलते श्रद्धालुओं को भी शारीरिक क्षति पहुंचने का अंदेशा है.

इसको लेकर केके मिश्रा का कहना है, ‘हम उच्च न्यायालय में याचिका लगाने जा रहे हैं. उसमें हम अनुरोध करेंगे कि बरसात में दुर्घटना से किसी श्रद्धालु की मौत होती है तो उसमें हत्या के प्रयास के लिए मुख्यमंत्री शिवराज को आरोपी बनाया जाए.’

सिसोदिया कहते हैं, ‘बरसात में महाकाल लोक पर रोक लगाने का कोई कदम नहीं उठाया जाएगा. अभी एक चरण का काम पूरा हुआ है, चार चरण में काम होना है. फिलहाल द्वितीय चरण का काम चल रहा है. ऐसे समय में इस तरह की घटनाओं का होना कहीं न कहीं निर्माण कार्य को सुधार की ओर अग्रेषित करेगा.’

द वायर  ने इस संबंध में उज्जैन कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम और स्मार्ट सिटी के सीईओ आशीष पाठक से कई बार संपर्क किया लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

उल्लेखनीय है कि महाकाल लोक के लोकार्पण के समय प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी तुलना कोणार्क के सूर्य मंदिर, मदुरै के मीनाक्षी मंदिर, एलोरा के कैलाश मंदिर जैसे देश के अनेक प्राचीन मंदिरों के कला और शिल्प से की थी और कहा था, ‘जब पीढ़ियां इस विरासत को देखती हैं, उसके संदेशों को सुनती हैं, एक सभ्यता के रूप में ये हमारी निरंतरता और अमरता का जरिया बन जाता है… महाकाल लोक में यह परंपरा उतने ही प्रभावी ढंग से कला और शिल्प के द्वारा उकेरी गई है.’

प्रधानमंत्री द्वारा सैकड़ों वर्ष पुराने ढांचों के समकक्ष बताया गया ‘महाकाल लोक’ सात महीनों में ही ढह गया, जाहिर सी बात है कि कांग्रेस-भाजपा के आरोप-प्रत्यारोपों से परे यह एक उच्च स्तरीय जांच का विषय होना ही चाहिए.