भारतीय शिक्षाविदों, सिविल सोसायटी सदस्यों ने नवशरण सिंह पर ईडी की कार्रवाई की निंदा की

कनाडा के कार्लटन विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने वालीं डॉ. नवशरण सिंह रोहतक विश्वविद्यालय, नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक्स रिसर्च और इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च काउंसिल में काम कर चुकी हैं. बीते माह प्रवर्तन निदेशालय ने उनसे लंबी पूछताछ की थी.

डॉ. नवशरण सिंह. (फोटो साभार: यूट्यूब वीडियोग्रैब)

प्रख्यात शोधकर्ता, लेखक और कार्यकर्ता डॉ. नवशरण सिंह को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत ईडी ने तलब किया था. बीते 10 मई को लंबी पूछताछ की गई थी. उनकी किसान आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी रही थी.

डॉ. नवशरण सिंह. (फोटो साभार: यूट्यूब वीडियोग्रैब)

नई दिल्ली: 350 से अधिक भारतीय शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, कानूनी विशेषज्ञों, कलाकारों और सिविल सोसायटी के सदस्यों ने गुरुवार (1 जून) को एक बयान जारी कर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा शोधकर्ता, लेखक और कार्यकर्ता डॉ. नवशरण सिंह से पूछताछ की कड़ी निंदा की.

सिंह को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत तलब किया गया था और उनसे 10 मई को पूछताछ की गई थी. उनकी किसान आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी रही थी. किसान आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था.

नवशरण अधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर के नेतृत्व वाले ट्रस्ट अमन बिरादरी के बोर्ड में भी हैं. पूछताछ के दौरान नवशरण से कथित तौर पर अमन बिरादरी के साथ उसके जुड़ाव और मंदर के खिलाफ मामले के बारे में पूछा गया था.

बयान में कहा गया है, ‘डॉ. नवशरण सिंह से ईडी द्वारा लंबी पूछताछ हाल के वर्षों में कई अन्य शिक्षाविदों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से की गई पूछताछ के समान पैटर्न वाली प्रतीत होती है, जिसमें नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और सरकार की नीतियों व कामकाज के उनके कानूनी आलोचनात्मक मूल्यांकन को कुंद करने का प्रयास किया जाता है. पीएमएलए भारतीय लोकतंत्र पर काला धब्बा है.’

इसमें जोर देकर कहा गया है कि सिंह एक बेहद की ईमानदार किस्म की विद्वान हैं और कृषि, महिला अधिकारों, किसानों एवं शांति के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध शोधकर्ता हैं. उनके काम ने गरीब किसानों, वनवासियों, दलित महिलाओं और अन्य वंचित समुदायों के संघर्षों पर नीतिगत ध्यान देने की मांग की है.

हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि ‘सरकारी नीतियां स्वयं भारत के गरीबों और हाशिये पर मौजूद लोगों के आर्थिक और सामाजिक समावेश पर जोर देती हैं, इसलिए डॉ. सिंह को इन्हीं उद्देश्यों को आगे बढ़ाने वाली व्यक्ति के तौर पर देखा जाना चाहिए.’

यह उल्लेख करते हुए कि पीएमएलए ‘भारतीय लोकतंत्र पर एक काला धब्बा है’, हस्ताक्षरकर्ताओं ने सरकार और ईडी से संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखने वाले प्रतिष्ठित विद्वानों के उत्पीड़न को रोकने का आग्रह किया.

बयान में कहा गया है, शिक्षाविदों, विद्वानों, शोधकर्ताओं और संबंधित नागरिकों के रूप में हम नवशरण सिंह और अन्य लोगों के साथ एकजुटता से खड़े हैं, जिन्होंने संवैधानिक मूल्यों और भारत के वंचितों के अधिकारों को बरकरार रखा है.

उन्होंने कहा, हम सरकार और प्रवर्तन एजेंसियों से उनके अनुचित उत्पीड़न को बंद करने का आह्वान करते हैं. हमारे प्रख्यात विद्वान भारत का गौरव हैं और उनके साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए.

डॉ. सिंह ने कनाडा के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक कार्लटन विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की पढ़ाई पूरी की है और 2017 में उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा अपने 75 सबसे प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों में से एक के रूप में सम्मानित किया गया था.

उन्होंने रोहतक विश्वविद्यालय, नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक्स रिसर्च (एनसीएईआर) और इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च काउंसिल (आईडीआरसी) में भी काम किया है. 2021 में उन्होंने अपने शोध पर काम करने के लिए आईडीआरसी से इस्तीफा दे दिया था.

इस रिपोर्ट और पूरे बयान को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.