कथित बलात्कार पीड़िता ‘मांगलिक’ है या नहीं, इसकी जांच करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

बीते 23 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इस बात का पता लगाने का निर्देश दिया था कि पीड़ित महिला ‘मांगलिक’ है या नहीं. याचिका में आरोपी की ओर से कहा गया था कि वह महिला से शादी नहीं कर सकता, क्योंकि वह ‘मांगलिक’ है.

(फोटो: द वायर)

बीते 23 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी द्वारा दायर ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इस बात का पता लगाने का निर्देश दिया था कि पीड़ित महिला ‘मांगलिक’ है या नहीं. याचिका में आरोपी की ओर से कहा गया था कि वह महिला से शादी नहीं कर सकता, क्योंकि वह ‘मांगलिक’ है.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने एक कथित बलात्कार पीड़िता की कुंडली की जांच के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है.

बीते 3 जून को जस्टिस सुधांशु धूलिया और पंकज मिथल की एक अवकाश पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश द्वारा जारी निर्देश पर रोक लगाने संबंधी मामले की सुनवाई की थी. बलात्कार के एक मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह पता लगाने का आदेश दिया था कि लगाने वाली महिला ‘मांगलिक’ है या नहीं.

एकल न्यायाधीश का आदेश जस्टिस बृजराज सिंह ने आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया, जिसमें कहा गया था कि वह महिला से शादी नहीं कर सकता, क्योंकि वह ‘मांगलिक’ है.

हालांकि, महिला ने इस बात से इनकार किया है कि वह ‘मांगलिक’ है.

इसलिए हाईकोर्ट ने लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रमुख को निर्देश दिया था कि वह महिला की कुंडली की जांच करके यह तय करे कि वह ‘मांगलिक’ है या नहीं और सीलबंद लिफाफे में अदालत को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें.

हाईकोर्ट ने बीते 23 मई को यह निर्देश जारी किया था.

हिंदू मान्यता के अनुसार, मंगल ग्रह के प्रभाव में जन्म लेने वाला व्यक्ति मंगल दोष से पीड़ित होता है और ऐसे व्यक्ति के जीवनसाथी की शीघ्र मृत्यु होने की संभावना होती है, यदि वह (जीवनसाथी) समान दोष से पीड़ित नहीं होता है.

हिंदू समुदाय में होने वाली अरेंज मैरिज में कई परिवार वर-वधू के कुंडली मिलान पर जोर देते हैं. इसमें यह जांचना शामिल है कि संभावित गुणों के मिलान के दौरान कोई एक इस दोष से ग्रस्त है या नहीं.

हाईकोर्ट के निर्देश पर शीर्ष अदालत ने अपनी नाराजगी जाहिर की, इसलिए नहीं कि हिंदू विश्वास अवैज्ञानिक और अंधविश्वासी है, बल्कि इस सवाल पर कि क्या बलात्कार का एक आरोपी इसे (मांगलिक) एक आधार के रूप में उपयोग कर आरोपों से इनकार करने का हकदार है, जहां पीड़िता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन बाद में तोड़ दिया, क्योंकि वह ‘मांगलिक’ थी, जबकि वह नहीं है.

भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के निर्देश को ‘परेशान करने वाला’ बताया और शीर्ष अदालत की अवकाश पीठ से आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया.

हालांकि, महिला के वकील अजय कुमार सिंह ने पीठ को बताया कि हाईकोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत निर्देश जारी किया था, जो अदालत को मामले के पक्षों की सहमति से विशेषज्ञों की राय लेने में सक्षम बनाता है.

जब सिंह ने कहा कि ज्योतिष को एक विज्ञान के रूप में माना जाता है और विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम का अध्ययन करने वाले छात्रों को डिग्री प्रदान करता है, तो पीठ ने कहा कि वह इस विषय वस्तु को चुनौती नहीं दे रहा है और न ही इस बहस में शामिल हो रहा है कि क्या ज्योतिष एक विज्ञान है.

पीठ ने कहा, ‘हम इसका सम्मान करते हैं. यहां सवाल यह है कि क्या न्यायिक मंच यह निर्देश जारी कर सकता है.’ पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हम न्याय के हित में मामले या आदेश के गुण-दोष पर कुछ नहीं कह रहे हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह आरोपी की जमानत अर्जी को उसके गुण-दोष के आधार पर तय करे. मामले की अगली सुनवाई 26 जून को होगी.

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