उपराज्यपाल को शक्ति देने वाला केंद्र का अध्यादेश तानाशाही है, इसका विरोध करेंगे: केजरीवाल

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए केंद्र सरकार द्वारा बीते 19 मई को लाया गया एक अध्यादेश दिल्ली में निर्वाचित सरकार के विभिन्न विभागों की प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के संबंध में उपराज्यपाल को अधिक शक्तियां प्रदान करता है.

अरविंद केजरीवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए केंद्र सरकार द्वारा बीते 19 मई को लाया गया एक अध्यादेश दिल्ली में निर्वाचित सरकार के विभिन्न विभागों की प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के संबंध में उपराज्यपाल को अधिक शक्तियां प्रदान करता है.

अरविंद केजरीवाल. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार (11 जून) को कहा कि नई दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर खुद को अधिक नियंत्रण देने वाला केंद्र सरकार का हालिया अध्यादेश ‘तानाशाही’ है और आम आदमी पार्टी (आप) इसका विरोध करेगी.

वह अध्यादेश के विरोध में आप द्वारा आहूत एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय राजधानी के रामलीला मैदान में एकत्र हुए हजारों समर्थकों को संबोधित कर रहे थे. इस महारैली का आयोजन केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन हासिल करने के लिए किया गया था, जिसे पार्टी ने लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाला बताया है.

केंद्र सरकार द्वारा बीते 19 मई को लाया गया यह अध्यादेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम, 1991 में नए प्रावधानों को पेश करता है. यह दिल्ली में निर्वाचित सरकार के विभिन्न विभागों की प्रशासनिक सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल (एलजी) को अधिक शक्तियां प्रदान करता है.

इससे पहले 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर दिल्ली सरकार को अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग सहित सेवा से संबंधित मामलों पर कार्यकारी नियंत्रण दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि उसे 2015 की केंद्र द्वारा ‘सेवाओं’ [भारत के संविधान की 7वीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 41 में] को नई दिल्ली में निर्वाचित सरकार के दायरे से बाहर रखने का कोई औचित्य नहीं मिल पाया.

केंद्र सरकार के नए अध्यादेश का उद्देश्य इस अधिसूचना को संशोधन अधिनियम की धारा 3ए के रूप में जोड़कर इसे वैधानिक संरक्षण देना है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, केजरीवाल ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार नहीं करते, तो इसे हिटलरशाही कहा जाएगा. मोदीजी का यह काला अध्यादेश कहता है कि ‘मैं लोकतंत्र को स्वीकार नहीं करता.’ अब दिल्ली में अत्याचारी शासन होगा. अब दिल्ली के लोग नहीं, बल्कि उपराज्यपाल सर्वोच्च हैं.’

द हिंदू ने केजरीवाल के हवाले से कहा कि यह पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने से इनकार किया है. टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, केजरीवाल ने कहा कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है और दिल्ली के लोगों के अधिकारों को छीन लिया है.

केजरीवाल ने कहा, ‘यह तानाशाही है. मोदीजी के अध्यादेश ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया है. यह दिल्ली के लोगों का भी अपमान है.’

केजरीवाल ने लोगों से उनके काम की तुलना मोदी से करने को कहा. केजरीवाल ने दावा किया, मोदी 21 साल (गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में 12 साल और प्रधानमंत्री के रूप में नौ साल) सत्ता में रहे हैं, जबकि वह आठ साल तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे हैं. फिर भी उन्होंने कई सुधार किए हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, केजरीवाल ने कहा कि तानाशाही अध्यादेश के रूप में इस तरह का ‘हमला’ झेलने वाला दिल्ली देश का पहला राज्य है, इसी तरह के अध्यादेश अन्य राज्यों के लिए भी लाए जाएंगे.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, केजरीवाल ने दावा किया कि इसे (अध्यादेश) राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा. इसलिए अध्यादेश को अब रोकना होगा.

केजरीवाल देश भर के नेताओं से इस अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. देशव्यापी दौरे की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री पहले ही पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु और बिहार के मुख्यमंत्रियों सहित कई नेताओं से मिल चुके हैं.

वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री और वकील कपिल सिब्बल, जो रामलीला मैदान में हुए इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे, ने विपक्षी दलों से आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा से लड़ने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया.

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