आरबीआई के विलफुल डिफॉल्टर्स के क़र्ज़ को समझौते से निपटाने के निर्णय के ख़िलाफ़ आईं बैंक यूनियन

आरबीआई ने अपने नियमों में बदलाव करते हुए विलफुल डिफॉल्टर्स (जानबूझकर क़र्ज़ न चुकाने वाले) और धोखाधड़ी के मामलों के ऋण निपटान के लिए समझौते की अनुमति दी है. बैंक यूनियन इसके ख़िलाफ़ हैं. वहीं, कांग्रेस ने कहा है कि मोदी सरकार आम जनता के पैसों को अपने चुनिंदा मित्रों पर न्योछावर कर रही है.

रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास. (फोटो साभार: ट्विटर/आरबीआई)

आरबीआई ने अपने नियमों में बदलाव करते हुए विलफुल डिफॉल्टर्स (जानबूझकर क़र्ज़ न चुकाने वाले) और धोखाधड़ी के मामलों के ऋण निपटान के लिए समझौते की अनुमति दी है. बैंक यूनियन इसके ख़िलाफ़ हैं. वहीं, कांग्रेस ने कहा है कि मोदी सरकार आम जनता के पैसों को अपने चुनिंदा मित्रों पर न्योछावर कर रही है.

रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास. (फोटो साभार: ट्विटर/आरबीआई)

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में एक अधिसूचना जारी करते हुए कॉम्प्रोमाइज़ सेटलमेंट (समझौते की प्रक्रिया) के तहत बैंकों को विलफुल डिफॉल्टर्स (जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले) और धोखाधड़ी के मामलों के ऋण निपटान की अनुमति देने का निर्णय लिया है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बैंक यूनियनें इसके खिलाफ हैं. उनका कहना है कि आरबीआई का ‘कॉम्प्रोमाइज़ सेटलमेंट और तकनीकी राइट-ऑफ का तरीका’ एक ‘हानिकारक कदम है जो बैंकिंग प्रणाली की अखंडता से समझौता कर सकता है और विलफुल डिफॉल्टर्स से प्रभावी ढंग से निपटने के प्रयासों को कमजोर कर सकता है.’

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी) और ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन (एआईबीईए) ने कहा, ‘बैंकिंग उद्योग में प्रमुख हितधारकों के रूप में हमने हमेशा विलफुल डिफॉल्टर्स के मुद्दे से निपटने के लिए सख्त उपायों की वकालत की है. हम दृढ़ता से मानते हैं कि धोखाधड़ी या विलफुल डिफॉल्टर्स के रूप में वर्गीकृत खातों के लिए सेटलमेंट की अनुमति देना न्याय और जवाबदेही के सिद्धांतों का अपमान है.’

दोनों संघों का कहना है कि वे 6 लाख बैंक कर्मचारियों का का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने जोड़ा, ‘यह निर्णय न केवल बेईमान उधारकर्ताओं को ईनाम देने जैसा है बल्कि लोन लेने वाले ईमानदार ग्राहकों, जो अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने का प्रयास करते हैं, को गलत संदेश भी भेजता है.’

उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने अपने ‘दबावग्रस्त संपत्तियों के समाधान के लिए प्रुडेंशियल फ्रेमवर्क’ (7 जून, 2019) में स्पष्ट किया था कि धोखाधड़ी/अपराध/जानबूझकर चूक करने वाले उधारकर्ता किसी तरह की ‘रीस्ट्रक्चरिंग’ (लोन डिफॉल्ट होने की किसी स्थिति में समझौता) के लिए पात्र नहीं होंगे.

हालांकि बीते आठ जून को जारी सर्कुलर में कहा कि बैंक विलफुल डिफॉल्टर्स या धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत खातों के संबंध में ऐसे देनदारों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ कर सकते हैं.

कर्मचारी यूनियनों का कहना है, ‘अब विलफुल डिफॉल्टर्स को समझौता देने के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा अपने नियमों में अचानक किया गया यह परिवर्तन किसी झटके की तरह सामने आया है. इससे न केवल बैंकिंग क्षेत्र में जनता का भरोसा कम होगा बल्कि जमाकर्ताओं के विश्वास को भी ठेस पहुंचेगी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक ऐसे माहौल को बढ़ावा देता है जहां कर्ज चुकाने में समर्थ व्यक्ति और संस्थाएं उचित नतीजा भुगते बिना अपनी जिम्मेदारियों से बचने का विकल्प चुन सकते हैं. इस तरह की उदारता नियमों को न मानने और नैतिक खतरे की संस्कृति को बनाए रखने का काम करती है, जिसका खामियाजा बैंकों और उनके कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है.’

उन्होंने जोड़ा कि ध्यान देने बात यह भी है कि विलफुल डिफॉल्ट का बैंकों की वित्तीय स्थिरता और समग्र अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘उन्हें समझौते के तहत अपने कर्ज निपटाने की अनुमति देकर आरबीआई अनिवार्य रूप से उनके गलत कामों को माफ कर रहा है और उनके गलत करनी का बोझ आम नागरिकों और मेहनती बैंक कर्मचारियों के सिर पर डाल रहा है.’

इसके अलावा, आरबीआई के नए फ्रेमवर्क के अनुसार, बैंक बोर्डों को विलफुल डिफॉल्टर्स के समझौता निपटान के लिए ऐसी नरमी दिखाने के लिए अधिकृत किया गया है, जितनी वो वे उचित समझते हैं.

अमर उजाला के अनुसार, बैंक ने यह भी कहा है कि बैंक सेटलमेंट होने के 12 महीने बाद ऐसे कर्जदारों को फिर लोन भी दे सकते हैं. हालांकि, बैंक बोर्ड चाहे तो यह अवधि और बढ़ाई जा सकती है.

बता दें कि फरवरी 2016 में वित्त संबंधी स्थायी समिति ने बैंक बोर्डों में आरबीआई/मंत्रालय के नामित निदेशकों के साथ-साथ बैंकों के सीएमडी और एमडी की जवाबदेही की सिफारिश की थी.

स्टैंडिंग कमेटी द्वारा सुझाई गई टॉप विलफुल डिफॉल्टर्स की सूची अभी प्रकाशित होनी बाकी है.

कांग्रेस ने कहा- आरबीआई नियम बदलने का कारण स्पष्ट करे

आरबीआई के नियम बदलावों को लेकर विपक्षी कांग्रेस ने केंद्रीय बैंक से सवाल किया है कि डिफॉल्टर्स के लिए नियमों में बदलाव किए जाने की वजह क्या है.

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा,’आरबीआई को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्यों उसने ‘जानबूझकर क़र्ज़ न चुकाने वालों’ और ‘धोखाधड़ी’ से संबंधित अपने ही नियमों में बदलाव किया. वह भी इसके बावजूद जब अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ और अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस कदम से ‘बैंकिंग क्षेत्र में जनता का विश्वास कम होगा, जमाकर्ताओं का भरोसा कम होगा, नियमों की अवहेलन करने की संस्कृति को बल मिलेगा और बैंकों एवं उनके कर्मचारियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.’

एक प्रेस वार्ता में पार्टी की रिसर्च इकाई के प्रमुख अमिताभ दुबे ने कहा, ‘हिंदुस्तान के टॉप 50 विलफुल डिफॉल्टर्स का कुल ऋण 95 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है, जिनके लिए सरकार लगातार काम कर रही है. … 2 साल पहले आरबीआई की पॉलिसी में यह स्पष्ट था कि विलफुल डिफॉल्टर्स को शेयर बाजार में जाने और नए लोन लेने की अनुमति नहीं मिलेगी. अब सरकार ने यह पॉलिसी बदलकर उन्हें खुली छूट दे दी है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘सवाल उठता है कि क्या भाजपा ने धनी फाइनेंसर्स को फिर अपने फाइनेंसर्स क्लब में शामिल करने की कोशिश कर रही है. क्या यह चुनाव से संबंधित है?’

उन्होंने दावा किया कि यूपीए शासन की तुलना में मोदी सरकार के कार्यकाल में बैंक फ्रॉड 17 गुना बढ़े हैं. दुबे ने कहा, ‘2005 से 2014 के बीच लगभग 35 हज़ार करोड़ रुपये के बैंक फ्रॉड हुए थे, यह 2015 से 2023 के बीच छह लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गए हैं.’

पार्टी सचिव विनीत पुनिया ने कहा, ‘पिछले 9 साल में मोदी जी के कार्यकाल में एनपीए 365% बढ़ा है. 10 लाख करोड़ से ज्यादा की राशि बट्टे खाते में डाली गई, जिसमें से सिर्फ 13% कर्ज वसूले गए हैं. मोदी सरकार की नीतियां ऐसी हैं जिसमें विलफुल डिफॉल्टर्स को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार आम जनता के पैसों को अपने चुनिंदा मित्रों पर न्योछावर कर रही है.’