गुजरात दंगा: बेस्ट बेकरी मामले में अदालत ने आरोप साबित न हो पाने पर दो लोगों को बरी किया

वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान वडोदरा शहर में स्थित बेस्ट बेकरी पर भीड़ के हमले में 14 लोग मारे गए थे. इनमें से ज़्यादातर मुस्लिम थे, जिन्होंने अंदर शरण ली हुई थी. मुंबई की निचली अदालत ने हर्षद सोलंकी और मफत गोहिल को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि दोनों दंगाई भीड़ का हिस्सा थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान वडोदरा शहर में स्थित बेस्ट बेकरी पर भीड़ के हमले में 14 लोग मारे गए थे. इनमें से ज़्यादातर मुस्लिम थे, जिन्होंने अंदर शरण ली हुई थी. मुंबई की निचली अदालत ने हर्षद सोलंकी और मफत गोहिल को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि दोनों दंगाई भीड़ का हिस्सा थे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

नई दिल्ली: साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान वडोदरा शहर के बेस्ट बेकरी पर हुए भीड़ के हमले में आरोपी हर्षद सोलंकी और मफत गोहिल के खिलाफ आरोप साबित करने में अभियोजन पक्ष के विफल रहने के बाद मुंबई की एक अदालत ने उन्हें बरी कर दिया.

इस हमले में 14 लोगों की मौत हो गई थी.

समाचार वेबसाइट एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एमजी देशपांडे ने बीते मंगलवार (13 जून) को सोलंकी और गोहिल को सभी आरोपों से बरी कर दिया. विस्तृत आदेश बुधवार (14 जून) को उपलब्ध हो सका.

अदालत ने फैसले में कहा कि इन दोनों आरोपियों की कोई विशेष भूमिका नहीं बताई गई है.

गोधरा ट्रेन आगजनी की घटना में 56 लोगों की मौत के दो दिन बाद 1 मार्च, 2002 को वडोदरा शहर में बेस्ट बेकरी पर भीड़ ने हमला कर 14 लोगों को मार डाला था, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम थे. इन लोगों ने दंगाई भीड़ से बचने के लिए यहां शरण ली हुई थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात पुलिस ने हत्या, दंगा और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं सहित 21 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और मामले को वडोदरा में एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट को सौंपा गया था. साल 2003 में मामले में मुकदमे का सामना कर रहे 21 लोगों को वडोदरा की एक अदालत ने बरी कर दिया था.

जिन गवाहों ने मामले में गवाही दी थी, उनमें जाहिरा शेख भी शामिल थीं, जिनके परिवार के सदस्य बेकरी के मालिक थे और मारे गए लोगों में शामिल थे. वह 30 से अधिक अन्य लोगों के साथ गवाही से मुकर गई थीं. गवाही एक महीने के भीतर शेख ने मीडिया को बताया था कि बयान देने से पहले उन पर दबाव डाला गया था और यही कारण था कि वह मुकर गई थीं.

बाद में गुजरात हाईकोर्ट ने भी अभियुक्तों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा था.

इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. याचिका और अन्य अपीलों का फैसला करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि मामले पर पुनर्विचार होना चाहिए और इसकी सुनवाई गुजरात के बाहर पड़ोसी महाराष्ट्र में की जानी चाहिए.

इसके बाद मुंबई में एक विशेष अदालत स्थापित की गई. अदालत ने 2006 में 9 व्यक्तियों को हत्या सहित अन्य आरोपों का दोषी पाया. उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि अन्य को बरी कर दिया गया.

2012 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने चार अभियुक्तों की सजा की पुष्टि करते हुए नौ में से पांच को बरी कर दिया था.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, चार व्यक्ति, जिन्हें गुजरात अदालत ने मुकदमे के दौरान बरी कर दिया था, मुंबई की अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं हुए, जिसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार किया. इनमें से दो का निधन हो गया, वहीं हर्षद सोलंकी (42 वर्ष) और मफत गोहिल (40 वर्ष) को फिर से गिरफ्तार किया गया और 2013 में मुंबई की अदालत में पेश किया गया. उन्होंने दावा किया था कि उन्हें दोबारा हुई सुनवाई की जानकारी नहीं थी.

उनकी जमानत याचिकाओं को अदालत ने 2018 में खारिज कर दिया था, जब उसने देखा था कि प्रथमदृष्टया उन पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं. उनकी गिरफ्तारी के बाद मुंबई में सत्र न्यायालय के समक्ष 2019 में ही मुकदमा शुरू हुआ. अंतिम गवाह का नवंबर 2022 में परीक्षण किया गया और अंतिम दलीले सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

एनडीटीवी के अनुसार, बीते मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं था कि दोनों आरोपी (सोलंकी और गोहिल) भीड़ का हिस्सा थे, उन्होंने दंगा किया और बेस्ट बेकरी को आग लगा दी.

न्यायाधीश ने कहा, ‘भले ही उक्त घटना में 14 लोगों की हत्या और अप्राकृतिक मौत ज्यादा विवादित न हो… अभियोजन उक्त घटना के साथ इन आरोपियों की सांठगांठ को स्थापित और साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है.’

बेस्ट बेकरी को रात में आग के हवाले कर दिया गया था, जिन लोगों ने इसकी छत पर शरण ली थी, उन्हें सुबह एक सीढ़ी से नीचे आने के लिए कहा गया था. घायल हुए प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, एक बार जब वे नीचे आए तो उनके हाथ-पैर बांध दिए गए और उन पर लाठी-डंडों और तलवारों से हमला किया गया.

न्यायाधीश ने कहा कि लेकिन इन घायल चश्मदीद गवाहों की गवाही में विरोधाभास और चूक थी, जिनकी दोबारा जांच की गई.

अदालत ने कहा, ‘इन दोनों आरोपियों के खिलाफ इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि वे दोनों घटनाओं के समय रात और सुबह तलवार और लोहे का पाइप लिए वहां मौजूद थे.’

अदालत के अनुसार, किसी भी घायल चश्मदीद ने यह नहीं कहा कि इन दोनों आरोपियों ने उन्हें चोटें पहुंचाईं.

अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी पोपटलाल कनानी, जिनसे दोबारा पूछताछ की गई, ने इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा कि क्या आरोपी द्वारा बताए गए स्थान पर हथियार बरामद किए गए थे.