उत्तरकाशी ज़िले के पुरोला में बीते 26 मई से सांप्रदायिक तनाव व्याप्त है. इस बीच, उत्तरकाशी ज़िला प्रशासन ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग को सौंपी पहली आधिकारिक रिपोर्ट में अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले 11 दुकानदारों के शहर छोड़ने की पुष्टि की है.
नई दिल्ली: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला में बीते 26 मई से सांप्रदायिक तनाव व्याप्त है. इसी बीच, सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के पुरोला शहर छोड़ने को लेकर दी गई अपनी पहली आधिकारिक रिपोर्ट में 11 दुकानदारों के शहर छोड़ने की पुष्टि की है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग को सौंपी रिपोर्ट में कहा, ‘अब तक पुरोला से समुदाय विशेष के 11 दुकानदारों ने दुकानें खाली कर पलायन किया है, जिसमें क्राॅकरी, फर्नीचर, रजाई-गद्दा, आइसक्रीम, सब्जी भंडार व गारमेंटस शॉप है.’
हालांकि, आयोग ने पुरोला सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट देवानंद शर्मा द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को ‘अस्पष्ट और असंतोषजनक’ करार दिया. इसने उत्तरकाशी में जिला प्रशासन से जल्द से जल्द उन लोगों का पूरा विवरण भेजने को कहा है जो पलायन कर गए हैं.
रिपोर्ट मिलने की पुष्टि करते हुए राज्य अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष मजहर नईम नवाब ने अखबार को बताया, ‘जिला प्रशासन ने हमें रिपोर्ट भेजकर औपचारिकताएं पूरी कीं. लेकिन यह अस्पष्ट है. इसलिए, जिला मजिस्ट्रेट और एसएसपी को निर्देशित किया गया है कि वे उन लोगों की विस्तृतजानकारी पेश करें जिन्हें शहर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है. हमने उनसे प्रभावित लोगों का पूरा नाम, आधार कार्ड नंबर और उस जगह का जिक्र करने को कहा, जहां वे शिफ्ट हुए होंगे.’
मालूम हो कि बीते 26 मई को मुस्लिम समुदाय के एक व्यक्ति सहित दो युवकों द्वारा एक हिंदू लड़की के कथित अपहरण के प्रयास के बाद से उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के पुरोला कस्बे में तनाव व्याप्त है.
पुलिस के अनुसार, अपहरण के संबंध में उबैद खान (24 वर्ष) और जितेंद्र सैनी (23 वर्ष) को गिरफ्तार किया गया है. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) और 366ए (नाबालिग लड़की की खरीद) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया है. वे फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं. वहीं नाबालिग लड़की को उसके परिवार को सौंप दिया गया था.
इस घटना के बाद से दक्षिणपंथी हिंदू समूहों, स्थानीय व्यापार मंडल और कुछ स्थानीय निवासियों द्वारा राज्य में आने वाले सभी ‘बाहरी लोगों’ के सत्यापन की मांग को लेकर विरोध रैलियां निकाली गई हैं.
प्रदर्शनकारियों ने जल्द ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर अवैध गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया और 26 मई की घटना को ‘लव जिहाद’ का उदाहरण बताया.
हिंदू महिलाओं को लुभाने और बहकाने के लिए मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक कथित साजिश का वर्णन करने के लिए दक्षिणपंथी समूहों द्वारा ‘लव जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि अदालतें और केंद्र सरकार इसे आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती हैं.
बहरहाल तनाव के बीच बीते 5 जून को पुरोला बाजार में कुछ पोस्टर लगाए थे, जिसमें मुस्लिम व्यापारियों से 15 जून को होने वाली महापंचायत से पहले दुकानें खाली करने को कहा गया था. हालांकि पुलिस ने उसी दिन ये पोस्टर हटा दिए थे.
इससे पहले बीते 29 मई को पुरोला में एक विरोध मार्च उस समय हिंसक हो गया था, जब कुछ आंदोलनकारियों ने मुसलमानों की दुकानों और प्रतिष्ठानों पर हमला कर दिया था. यमुना घाटी हिंदू जागृति संगठन के बैनर तले बीते 3 जून को भी इसी तरह का विरोध प्रदर्शन किया गया था.
हालांकि, प्रशासन द्वारा धारा 144 लगा देने के बाद 15 जून को प्रस्तावित ‘महापंचायत’ नहीं हुई.