मध्य प्रदेश: आदिवासी परिवार का आरोप- अस्पताल के इनकार के बाद बच्चे का शव बैग में लेकर जाना पड़ा

मध्य प्रदेश के जबलपुर ज़िले का मामला. आदिवासी परिवार ने आरोप लगाया है कि नवजात बच्चे की मौत के बाद सरकारी अस्पताल ने शव ले जाने के लिए वाहन देने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें शव को बैग में रखकर बस से अपने घर लौटने को मजबूर होना पड़ा. परिवार डिंडोरी ज़िले के एक गांव का रहने वाला है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

मध्य प्रदेश के जबलपुर ज़िले का मामला. आदिवासी परिवार ने आरोप लगाया है कि नवजात बच्चे की मौत के बाद सरकारी अस्पताल ने शव ले जाने के लिए वाहन देने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें शव को बैग में रखकर बस से अपने घर लौटने को मजबूर होना पड़ा. परिवार डिंडोरी ज़िले के एक गांव का रहने वाला है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के एक आदिवासी परिवार का कहना है कि जबलपुर के एक सरकारी अस्पताल के अधिकारियों ने कथित तौर पर शव वाहन देने से मना करने के बाद उन्हें अपने नवजात बच्चे के शव को एक बैग में रखकर बस से वापस अपने गांव लौटने को मजबूर होना पड़ा.

जबलपुर अस्पताल प्रशासन ने इस आरोप का खंडन किया है. प्रशासन ने कहा कि जब परिवार के अनुरोध पर नवजात को अस्पताल से ​डिस्चार्ज किया गया तो वह जीवित था.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के सहजपुरी गांव के सुनील धुर्वे ने कहा कि उनकी पत्नी जमनी बाई ने मंगलवार (13 जून) को पास के एक सरकारी अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन शिशु कमजोर होने के कारण मामले को जबलपुर में सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेज में रिफर कर दिया गया.

बच्चे के शव को बैग में रखे हुए धुर्वे ने एक बस स्टैंड के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘मेरे बच्चे को जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 15 जून को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. अस्पताल ने शव को मेरे निवास स्थान तक ले जाने के लिए वाहन उपलब्ध नहीं कराया. आर्थिक तंगी के कारण मुझे शव को बैग में लेकर बस से यात्रा करनी पड़ रही है.’

परिवार ने कहा कि वे करीब पांच घंटे तक शव वाहन का इंतजार करते रहे.

धुर्वे ने कहा कि निजी वाहन संचालक शव को गांव ले जाने के लिए 4,000 से 5,000 रुपये मांग रहे थे और हम इसे वहन करने में सक्षम नहीं थे.

नवजात की मां की बड़ी बहन ने कहा कि परिवार को बताया गया था कि बच्चे की मौत हो गई है.

उन्होंने कहा, ‘हमने जमनी (बहन) को जिला अस्पताल (डिंडोरी में बच्चे के जन्म से पहले) में भर्ती कराया था और बच्चे को अगले दिन जबलपुर मेडिकल कॉलेज रिफर कर दिया गया. बच्चे को सांस लेने में तकलीफ थी. एक दिन बाद हमें बताया गया कि बच्चे की मौत हो गई है और हमें शाम 5 बजे शव दिया गया. हमने डॉक्टर से हमें शव वाहन देने का अनुरोध किया, लेकिन हमारे अनुरोध को ठुकरा दिया गया.’

उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम गरीब हैं, हम आने-जाने के लिए किसी अन्य साधन की व्यवस्था नहीं कर सकते. हमने बच्चे के शव को एक बैग में रखा और बस स्टॉप गए.’

वहीं राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि जबलपुर के सरकारी अस्पताल से छुट्टी मिलने के समय बच्चा जीवित था.

एक अधिकारी ने कहा, ‘बच्चे का इलाज जबलपुर मेडिकल कॉलेज में नवजात गहन चिकित्सा इकाई में किया जा रहा था. हमारी सलाह के खिलाफ माता-पिता ने बच्चे को डिस्चार्ज करने को कहा. बच्चे की हालत गंभीर थी.’

अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें संदेह है कि माता-पिता को सौंपे जाने के बाद बच्चे की मौत ‘अत्यधिक गर्मी से डिहाइड्रेशन के कारण’ हो सकती है.

स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि वे बच्चे की मौत की परिस्थितियों की जांच करेंगे.