केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा संचालित थिंक टैंक सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज का एफसीआरए लाइसेंस रद्द करने के लिए उनके द्वारा विभिन्न प्रकाशनों में लेख लिखने का हवाला दिया गया है. मंदर ने इसे अभिव्यक्ति और असहमति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर सीधा हमला बताया है.
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता-लेखक हर्ष मंदर द्वारा संचालित थिंक टैंक सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) के विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस को रद्द करने के लिए इस अधिनियम की धारा 3 लागू की है, जो 180 दिनों के लिए किसी भी ‘संवाददाता, स्तंभकार, कार्टूनिस्ट, संपादक, मालिक, मुद्रक या पंजीकृत समाचार पत्र के प्रकाशक’ को किसी भी तरह का विदेशी योगदान या चंदा लेने से रोकती है.
रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि चूंकि मंदर लगातार स्तंभकार और विभिन्न मीडिया प्रकाशनों में लिखते रहते हैं, इसलिए उन्होंने एफसीआरए की धारा 3 का उल्लंघन किया है. दिलचस्प बात यह है कि सरकार की अधिसूचना में स्क्रॉल, द वायर, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू और द क्विंट जैसे भारतीय मीडिया प्रकाशनों में प्रकाशित उनके लेखों और रिपोर्ट्स का हवाला दिया गया है, जो मंत्रालय द्वारा सीईएस के एफसीआरए लाइसेंस को निलंबित करने का प्राथमिक कारण है.
थिंक टैंक गतिविधियों में अनुसंधान और वकालत से लेकर समाज सेवा और सामाजिक न्याय के मुद्दों को लेकर अभियान चलाने जैसे कई काम शामिल हैं. सीईएस के एफसीआरए लाइसेंस का निलंबन विभिन्न संस्थानों, जिनसे मंदर जुड़े रहे हैं, के खिलाफ लक्षित कार्रवाइयों की एक श्रृंखला के बाद हुआ है.
आईएएस अधिकारी रह चुके मंदर भारत में सांप्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ अभियान में सबसे आगे रहे हैं और देश में बहुसंख्यकवादी राजनीति को कथित रूप से हवा देने के लिए पिछले नौ वर्षों में मोदी सरकार की कड़ी आलोचना करते रहे हैं.
14 जून, 2023 के गृह मंत्रालय केआदेश में आरोप लगाया गया है कि मंदर ने ‘वित्तीय वर्ष 2011-12 से 2017-18 के दौरान 12,64,671 रुपये का विदेशी योगदान स्वीकार किया है, जो एसोसिएशन (सीईएस) के एफसीआरए खाते से पेशेवर प्राप्तियों/भुगतान के रूप में है जो ‘अधिनियम की धारा 3 और 8 और अधिनियम की धारा 12(4)(a)(vi) के तहत पंजीकरण की शर्तों का उल्लंघन है.’
एफसीआरए की धारा 8 कहती है कि एफसीआरए के माध्यम से प्राप्त धन का उपयोग केवल उन उद्देश्यों के लिए किया जाएगा जिनके लिए योगदान प्राप्त किया गया है, न कि किसी ‘काल्पनिक कारोबार’ के लिए. अधिनियम की धारा 12(4)(ए)(vi) व्यक्तिगत लाभ के लिए विदेशी अनुदानों के किसी भी ट्रांसफर पर रोक लगाती है. सीईएस के एफसीआरए के निलंबन का मतलब है कि मंत्रालय की मंजूरी के बिना संगठन अपनी गतिविधियों के लिए कोई भी विदेशी चंदा प्राप्त करने के लिए अपात्र होगा.
सरकारी अधिसूचना में दावा किया गया है कि सीईएस द्वारा प्राप्त विदेशी अनुदान का उपयोग मंदर के सह-लेखकों को भुगतान करने के लिए किया गया था, जिन्होंने विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों में रिपोर्ट और लेख प्रकाशित किए थे.
मंत्रालय का कहना है, ‘ऐसा ही एक उदाहरण हर्ष मंदर, अंजलि भारद्वाज और अमृता जौहरी द्वारा 6 अगस्त, 2018 को स्क्रॉल में लिखा गया लेख है. बताया गया है कि अमृता जौहरी और अंजलि भारद्वाज को एसोसिएशन के एफसीआरए खाते से 1,13,251 रुपये और 25,64,550 रुपये का भुगतान किया गया है.’
मंत्रालय ने कहा, ‘वह अन्य स्तंभकारों के साथ कॉलम भी प्रकाशित कर रहे हैं, जिन्हें एसोसिएशन के एफसीआरए खाते से भुगतान किया जा रहा है. उदाहरण के लिए, अब्दुल कलाम आज़ाद ने दिनांक 02.01.2019 को हर्ष मंदर के साथ एक कॉलम लिखा है, जिसका शीर्षक है ‘पीपुल नो काउंटी वांट्स’ और अब्दुल कलाम आज़ाद को सीईएस एफसीआरए बैंक खाते से 5.73 लाख रुपये का भुगतान किया गया है.’
मंत्रालय ने यह भी कहा कि सीईएस द्वारा विदेशी योगदान का उपयोग गैर-एफसीआरए संघों को भुगतान करने के लिए किया गया था, जिनके साथ यह विभिन्न स्तरों पर जुड़ा है. अधिसूचना में एफसीआरए उल्लंघन के उदाहरण के रूप में 2020 की रिपोर्ट- ‘लेबरिंग लाइव्स: हंगर एंड डेस्पेयर एमिड लॉकडाउन‘ का हवाला दिया, जो सीईएस, दिल्ली रिसर्च ग्रुप और कारवां-ए-मोहब्बत द्वारा मिलकर की गई थी. 2020 की रिपोर्ट जर्मन फाउंडेशन रोजा लक्जमबर्ग स्टिफ्टंग द्वारा समर्थित थी.
सरकार ने कहा, ‘इस तरह के उद्देश्यों के लिए विदेशी योगदान का उपयोग भारत की संप्रभुता और अखंडता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने की संभावना है. थिंक टैंक ने विदेशी योगदान प्राप्त किया, विशेष रूप से उन उद्देश्यों के लिए जो ट्रस्ट के उद्देश्यों से परे हैं.’
गृह मंत्रालय ने यह भी आरोप लगाया कि सीईएस के वार्षिक रिटर्न की जांच में एक वित्तीय विसंगति पाई गई और थिंक टैंक 3 मार्च, 2023 को भेजी गई एक प्रश्नावली का जवाब देने में विफल रहा. अधिसूचना में यह भी दावा किया गया कि सीईएस की गवर्निंग काउंसिल के सदस्यों को एफसीआरए अधिनियम की धारा 8 और धारा 12 (4) का उल्लंघन करते हुए विदेशी योगदान के माध्यम से भुगतान किया गया.
अभूतपूर्व कदम
किसी भी संगठन के लिए उसका एफसीआरए लाइसेंस सिर्फ इसलिए खोना अभूतपूर्व है कि उसका प्रमुख, अपनी व्यक्तिगत क्षमता में, एक समाचार स्तंभकार है. सामाजिक मुद्दों पर आवाज उठाने वाले संगठनों, जिनके पास एफसीआरए लाइसेंस है, से जुड़े लोगों के लिए विभिन्न मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण प्रकाशित करना काफी सामान्य बात है. सीईएस के एफसीआरए लाइसेंस को निलंबित करने के लिए अधिनियम की धारा 3 को लागू करने वाली सरकार भारत में एक नई मिसाल कायम कर सकती है.
हालांकि, दो साल से अधिक समय से मंदर सरकारी जांच के दायरे में हैं. मार्च 2023 में गृह मंत्रालय ने एफसीआरए के कथित उल्लंघन के लिए उनके नेतृत्व वाले एक अन्य एनजीओ अमन बिरादरी के खिलाफ सीबीआई इन्क्वायरी का आदेश दिया था.
सितंबर 2021 में नई दिल्ली में मंदर के घर, सीईएस कार्यालय और एक बालगृह- उम्मीद, जिससे मंदर जुड़े थे- पर भी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के संबंध में ईडी द्वारा छापा मारा गया था. मामले की प्रगति फिलहाल स्पष्ट नहीं है. उस समय कई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि इस तरह के छापे सरकार के आलोचकों को चुप कराने और डराने के लिए थे.
अक्टूबर 2020 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मंदर से संबद्ध दो बालगृहों पर भी छापा मारा था. इसने आरोप लगाया कि यहां के बच्चों को मंदर द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में ले जाया गया. बाल अधिकार निकाय ने छापेमारी के बाद इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए रखी और अपने दावों को साबित करने के लिए ज्यादा सबूत पेश नहीं किए.
द वायर से बात करते हुए मंदर ने कहा, ‘हम कुछ दिनों में कानूनी रूप से इस आदेश को चुनौती देंगे. फिलहाल, मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि यह (सीईएस के एफसीआरए लाइसेंस का निलंबन) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर सीधा हमला है- देश के हित और इसकी संप्रभुता पर नहीं जैसा कि सरकार इसे दिखाना चाह रही है.’
मंदर ने सवाल किया, ‘कोई लेख नहीं लिख सकता, कोई स्वतंत्र रूप से बात नहीं कर सकता. क्या सरकार यही चाहती है?’
उन्होंने कहा कि यह मुद्दा ‘सीईएस से बहुत आगे जाता है.’ उन्होंने जोड़ा, ‘यह दिखाता है कि न्याय, समानता, बंधुत्व के लिए बोलना – वास्तव में संविधान की रक्षा में – राष्ट्र के खिलाफ कार्य करना है. और यह कि यदि आप किसी ऐसे संगठन के लिए काम करते हैं जिसने विदेशी धन प्राप्त किया है और आपको कोई पारिश्रमिक प्राप्त होता है, तो आपको कॉलम या लेख लिखने से रोक दिया जाता है. इसलिए, सवाल विवेक के मौलिक अधिकार, असहमति की स्वतंत्रता का है.’