पूर्ण राज्य, विशेष दर्जा देने की बात नहीं हुई तो गृह मंत्रालय की बैठक में शामिल नहीं होंगे: लद्दाख के नेता

उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की बैठक से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के समिति से मिलने वाले लद्दाख के नेताओं ने कहा है कि अगर एजेंडा में राज्य का दर्जा और विशेष दर्जे पर बातचीत शामिल नहीं हुई तो वे आगामी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे.

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लद्दाख की राजधानी लेह स्थित लेह गेट. (प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की बैठक से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के समिति से मिलने वाले लद्दाख के नेताओं ने कहा है कि अगर एजेंडा में राज्य का दर्जा और विशेष दर्जे पर बातचीत शामिल नहीं हुई तो वे आगामी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे.

लद्दाख की राजधानी लेह स्थित लेह गेट. (प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की बैठक से पहले सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय के समिति से मिलने वाले लद्दाख के नेताओं ने कहा है कि अगर एजेंडा में राज्य का दर्जा और विशेष दर्जे पर बातचीत शामिल नहीं है तो वे आगामी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे.

द ट्रिब्यून के रिपोर्ट में कहा गया है कि चर्चा, जो एक घंटे से अधिक समय तक चली, आने वाले हफ्तों में होने वाली एचपीसी बैठक के एजेंडा को निर्धारित करने के लिए आयोजित की गई थी.

छह सदस्यीय लद्दाख प्रतिनिधिमंडल ने राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची के तहत केंद्र शासित प्रदेश के लिए विशेष दर्जा, लेह और करगिल के लिए अलग लोकसभा सीटें (वर्तमान में लद्दाख के लिए केवल एक है) और नौकरी में स्थानीय लोगों को आरक्षण सहित चार सूत्री एजेंडा प्रस्तुत किया.

लद्दाख के नेताओं ने समिति को सूचित किया कि अगर इसे छठी अनुसूची, जो कुछ आदिवासी क्षेत्रों के लिए अधिक प्रशासनिक और राजनीतिक स्वायत्तता प्रदान करती है, के तहत नहीं लाया गया, तो आदिवासी संस्कृति और क्षेत्र के पर्यावरण के लिए खतरा होगा.

लद्दाख के प्रतिनिधियों में लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के सदस्य – पूर्व सांसद थूपस्तान छेवांग और पूर्व जम्मू-कश्मीर के पूर्व कैबिनेट मंत्री चेरिंग दोरजे और नवांग रिगज़िन जोरा, करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सदस्य – पूर्व कैबिनेट मंत्री कमर अली अखून, पूर्व विधायक असगर अली करबलाई और कार्यकर्ता सज्जाद करगिली शामिल थे.

बैठक के दौरान गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, गृह मंत्रालय और खुफिया ब्यूरो (आईबी) के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

ट्रिब्यून के अनुसार, वे इस बात से परेशान थे कि गृह मंत्रालय ने उन्हें यह आश्वासन नहीं दिया कि राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के मुद्दे को उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक के एजेंडा में शामिल किया जाएगा.

दोरजे ने कहा, ‘गेंद अब सरकार के पाले में है. यह देखना होगा कि क्या वह लद्दाख के लोगों के साथ बातचीत को आगे बढ़ाना चाहता है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने उन्हें नौकरशाहों के बजाय निर्वाचित प्रतिनिधियों की आवश्यकता के बारे में बताया. यह तभी संभव है जब लद्दाख एक राज्य बन जाएगा.’

करबलाई ने ट्रिब्यून को बताया कि बैठक एक सकारात्मक नोट पर समाप्त हुई, लेकिन निगाहें एचपीसी बैठक के एजेंडा पर टिकी हैं जो गृह मंत्रालय द्वारा तय किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि एमएचए समिति ने लद्दाख के नेताओं की मांगों के प्रति चिंता दिखाई और आश्वासन दिया कि सरकार लद्दाख के लोगों के लिए विकास चाहती है.

गौरतलब है कि साल 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और और तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद लद्दाख क्षेत्र के लोग भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं, जिससे उनकी जनसांख्यिकी, नौकरी और भूमि की रक्षा हो.

बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है. छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त प्रशासनिक जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है जिसमें कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता होती है. ये परिषद भूमि, जंगल, जल, कृषि, स्वास्थ्य, स्वच्छता, विरासत, विवाह और तलाक, खनन और अन्य को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून बना सकती हैं. अभी तक असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.