मणिपुर हिंसा: जनजाति समूहों का ह्वाइट हाउस के बाहर प्रदर्शन, पीएम मोदी से चुप्पी तोड़ने की अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते 22 जून को ह्वाइट हाउस पहुंचे थे. इस दौरान नॉर्थ अमेरिकन मणिपुर ट्राइबल एसोसिएशन के सदस्यों ने प्रदर्शन कर राज्य में चल रही जातीय हिंसा पर सरकार की कथित उदासीनता और उसके द्वारा मेईतेई समुदाय का कथित तौर पर समर्थन करने का मुद्दा उठाया.

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ह्वाइट हाउस के पास हुआ प्रदर्शन. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते 22 जून को ह्वाइट हाउस पहुंचे थे. इस दौरान नॉर्थ अमेरिकन मणिपुर ट्राइबल एसोसिएशन के सदस्यों ने प्रदर्शन कर राज्य में चल रही जातीय हिंसा पर सरकार की कथित उदासीनता और उसके द्वारा मेईतेई समुदाय का कथित तौर पर समर्थन करने का मुद्दा उठाया.

ह्वाइट हाउस के पास हुआ प्रदर्शन. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते गुरुवार (22 जून) को जब ह्वाइट हाउस पहुंचे तो सैकड़ों भारतीय उनकी एक झलक पाने के लिए साउथ लॉन के पास इंतजार कर रहे थे. उसी समय प्रदर्शनकारियों का एक अन्य समूह नॉर्थ लॉन के पास ब्लैक लाइव्स मैटर प्लाजा पर एकत्र हुआ.

प्रदर्शनकारियों में से कई मणिपुर की कुकी जनजाति के सदस्य थे, जिन्होंने राज्य में चल रही जातीय हिंसा और सरकार की कथित उदासीनता और यहां तक कि सरकार द्वारा मेईतेई समुदाय का कथित समर्थन करने का मुद्दा भी उठाया.

उनके हाथों में बैनर थे, जिन पर लिखा था, ‘कुकी-ज़ोमी गांवों पर हमला करना बंद करो’ और ‘पीएम मोदी: कुकी-ज़ोमी की चीखें सुनो, भारत के मणिपुर में राज्य प्रायोजित नरसंहार बंद करो’.

नॉर्थ अमेरिकन मणिपुर ट्राइबल एसोसिएशन (एनएएमटीए) के सदस्य लियन गैंगटे ने बताया कि कैसे भीड़ हिंसा के हजारों पीड़ितों में उनका परिवार भी शामिल था.

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद खामोश हैं. क्या हमें भूल जाना चाहिए? क्या हम एकीकरणवादी बहुसंख्यक अभियान में भुला दिए गए हताहतों में से एक बन जाएंगे? हम मांग करते हैं कि प्रधानमंत्री अपनी चुप्पी तोड़ें और मणिपुर में जारी ​संकट के दौर में कुछ हद तक सामान्य स्थिति लाने की दिशा में पहले कदम के रूप में राज्य का दौरा करें.’

बीते 3 मई से मणिपुर में लोग जातीय हिंसा का सामना कर रहे हैं. इसके अलावा राज्य में 50 से अधिक दिनों से इंटरनेट पर रोक लगा हुआ है. 50,000 से अधिक लोग विस्थापित होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं और 100 से अधिक मौतें हुई हैं.

लिय ने सवाल किया, ‘प्रधानमंत्री अभी भी चुप क्यों हैं और स्थिति पर नियंत्रण क्यों नहीं ला रहे हैं?’

एक अन्य प्रदर्शनकारी वकील अर्जुन सेठी ने कहा, ‘हममें से सैकड़ों लोग यह मांग करने के लिए ह्वाइट हाउस के बाहर एकत्र हुए हैं कि राष्ट्रपति बाइडन और कांग्रेस भारत में मानवाधिकारों के हनन, इंटरनेट प्रतिबंध, दलितों, मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा हिंसा के संबंध में प्रधानमंत्री मोदी से कड़े सवाल पूछें.’

उन्होंने कहा, ‘अमेरिका राजकीय रात्रिभोज की मेजबानी करके मोदी के मानवाधिकारों के हनन को सक्षम बना रहा है.’

कुकी आदिवासी समुदाय के लोग इस बात से निराश थे कि बाइडन और मोदी द्वारा संबोधित संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान उनके समुदाय से संबंधित कोई प्रश्न नहीं उठाया गया.

नॉर्थ अमेरिकन मणिपुर ट्राइबल एसोसिएशन ने मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी-ज़ोमी जनजातियों की दुर्दशा पर जोर देते हुए बाइडन को एक पत्र भी सौंपा. पत्र में राष्ट्रपति से संकट और बढ़ने से पहले तत्काल कार्रवाई करने की अपील की गई है.

एसोसिएशन ने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए बाइडन की प्रतिबद्धता में अपना अटूट विश्वास व्यक्त किया, क्योंकि उन्होंने उनके नेतृत्व और मौजूदा संकट से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की तैनाती का आह्वान किया.

प्रधानमंत्री के नाम पर भारतीय दूतावास को सौंपे एक अन्य पत्र में संगठन ने कहा, ‘3 मई, 2023 से 6,100 से अधिक आदिवासी घरों को जला दिया गया और लूट लिया गया, 350 चर्चों को आग लगा दी गई और इंफाल घाटी में 115 से अधिक गांवों पर हमला किया गया.’

एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष निम्नलिखित मांगें रखीं:

1) सभी समुदायों – आदिवासियों और गैर-आदिवासियों – को समान रूप से सभी आवश्यक सेवा और सुरक्षा तथा निष्पक्ष सहायता प्रदान करने के लिए मणिपुर राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा की जाए.

2) मणिपुर में नागरिक समाज और सभी पक्षों द्वारा सम्मानित तटस्थ तीसरे पक्ष के व्यक्तित्वों की एक न्याय समिति का गठन करें, जो प्रत्येक पीड़ित के नुकसान का हिसाब दे और इस तरह शांति लाए.

3) भारत के संविधान में उल्लिखित प्रावधानों के तहत कुकी-ज़ोमी जनजातियों के लिए एक अलग प्रशासन स्थापित किया जाए.

इस बीच सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत में जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर चिंता जताई.

उन्होंने कहा, ‘अगर मैं नरेंद्र मोदी से बात करता तो मेरी बातचीत का एक हिस्सा यह होगा कि यदि आप भारत में जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करते हैं, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत किसी बिंदु पर बंटना शुरू हो जाएगा. और हमने देखा है कि जब आप उस प्रकार के बड़े आंतरिक संघर्षों में शामिल होने लगते हैं तो उसका परिणाम क्या होता है. यह न केवल मुस्लिम भारत, बल्कि हिंदू भारत के हितों के भी विपरीत होगा. मुझे लगता है कि इन चीजों के बारे में ईमानदारी से बात करने में सक्षम होना महत्वपूर्ण है.’

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते गुरुवार को ह्वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता में हिस्सा लिया था. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि भारत में धर्म, जाति आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है.

उन्होंने कहा था, ‘हमने सिद्ध किया है कि लोकतंत्र अच्छे नतीजे दे सकता है. हमारे यहां, जाति, उम्र, लिंग आदि पर भेदभाव की बिल्कुल भी जगह नहीं है. जब आप लोकतंत्र की बात करते हैं, अगर मानव मूल्य न हों, मानवता न हो, मानवाधिकार न हों, तब उस सरकार को लोकतंत्र कहा ही नहीं जा सकता.’

बहरहाल ह्वाइट हाउस के पास जुटे प्रदर्शनकारियों में शामिल लियन गैंगटे और अन्य जनजाति सदस्यों को अब भी उम्मीद है कि उनकी आवाज सुनी जाएगी.

एक अन्य प्रदर्शनकारी लीडिया टॉम्बिंग खुप्टोंग ने मणिपुर हिंसा में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और मोदी की संलिप्तता पर सवाल उठाया. उन्होंने सवाल किया, ‘चुप्पी बहुत कुछ कहती है. क्या मौजूदा सत्ता की मिलीभगत राज्य के साथ खत्म होती है या उससे आगे तक जाती है?’

‘कुकी आईएनपीआई यूएसए’ के मीडिया संयोजकों में से एक सिलास ने कहा कि उन्हें अपने रिश्तेदारों से वीडियो कॉल पर बात करने की याद आती है.

उन्होंने कहा, ‘मेरा घर सुरक्षित है लेकिन इंफाल में मेरे चाचा-चाची के सभी घर जल गए. वे सभी बेघर हो गए. मैं अपनी मां, भाई को देखना चाहता हूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि राज्य में इंटरनेट नहीं है. मैं सोच रहा हूं कि वहां जमीन पर स्थिति क्या होगी. राज्य में कोई कानून-व्यवस्था नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री चुप हैं.’

यह पूछे जाने पर कि क्या यह पर्याप्त होगा यदि केंद्र सरकार मुख्यमंत्री को हटाने के लिए सहमत हो जाए, सिलास ने जवाब दिया, ‘अब यह बीरेन (मुख्यमंत्री) के बारे में नहीं है, हम अपने जीवन में यह नहीं भूलेंगे कि मेईतेई लोगों ने हमें कैसे मार डाला और हमारे घरों और चर्चों को जला दिया. सब कुछ टूट गया है. अलग प्रशासन ही अब एकमात्र समाधान है. इसलिए हम चाहते हैं कि अमेरिका हस्तक्षेप करे और मानवाधिकारों को सर्वोपरि रखे.’

उल्लेखनीय है कि बीते 3 मई से कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. लगभग 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं और पुलिस शस्त्रागार से 4,000 से अधिक हथियार लूटे या छीन लिए गए हैं.

गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं.

मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों- नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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