जेलों में आत्महत्या रोकने के लिए क़ैदियों के मानसिक स्वास्थ्य की जांच करवाएं: एनएचआरसी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक परामर्श जारी करते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि हाल के वर्षों में भारत की जेलों में बड़ी संख्या में हुई मौतें आत्महत्या के चलते हुईं. बताया गया है कि जेलों में होने वाली अप्राकृतिक मौतों में से 80 प्रतिशत की वजह आत्महत्या थी.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक परामर्श जारी करते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि हाल के वर्षों में भारत की जेलों में बड़ी संख्या में हुई मौतें आत्महत्या के चलते हुईं. बताया गया है कि जेलों में होने वाली अप्राकृतिक मौतों में से 80 प्रतिशत की वजह आत्महत्या थी.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: यह देखते हुए कि जेलों में कैदियों की अधिकांश अप्राकृतिक मौतें आत्महत्या के कारण होती हैं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक परामर्श जारी किया, जिसमें विभिन्न बातों के अलावा यह सिफारिश की गई है कि हर कैदी की प्रारंभिक स्वास्थ्य जांच में मानसिक स्वास्थ्य जांच को भी शामिल किया जाना चाहिए.

टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने न्यायिक हिरासत में कैदियों द्वारा आत्महत्या के प्रयासों को कम करने के लिए जेल की वास्तुकला और माहौल में सुधार की भी सिफारिश की है. आयोग द्वारा यह भी कहा गया है कि समय-समय पर रिफ्रेशर कोर्स के साथ जेल कर्मचारियों के बुनियादी प्रशिक्षण में मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता को भी शामिल किया जाना चाहिए.

इसके अलावा परामर्श में सभी कैदियों की जेल कर्मचारियों द्वारा नियमित निगरानी और मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित एक ‘कैदी मित्र’ की नियुक्ति की बात कही गई है.

एनएचआरसी ने न्यायिक हिरासत में कैदियों द्वारा जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने और आत्महत्या के प्रयासों को कम करने के तरीकों की सिफारिश करने वाली सलाह के कार्यान्वयन पर तीन महीने के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है.

आयोग ने एक पत्र गृह मंत्रालय, पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो और सभी महानिदेशक-जेल को भी भेजा गया है.

एनएचआरसी ने इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तैयार गेटकीपर मॉडल का उपयोग करने का भी सुझाव दिया गया है, जिसमें आत्महत्या करने वाले कैदियों की पहचान करने के लिए चुनिंदा कैदियों को प्रशिक्षण देना शामिल है.

आयोग ने परामर्श में इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि भारत की जेलों में हाल के वर्षों में आत्महत्या से बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं. जेलों में होने वाली अप्राकृतिक मौतों में से 80 प्रतिशत आत्महत्या के कारण होती हैं. आत्महत्या करने का प्रमुख तरीका फांसी लगाना (93%) है, इसके बाद जहर देना, खुद को चोट पहुंचाना और नशीली दवाओं का अधिक मात्रा में सेवन करना है.

इंडिया टुडे के मुताबिक, केंद्र, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी परामर्श में एनएचआरसी ने जोर दिया कि बैरक और शौचालयों में लोहे की छड़ें, ग्रिल, पंखे और हुक जैसी वस्तुएं नहीं होनी चाहिए, जिनका उपयोग फांसी लगाने के लिए किया जा सकता है. आत्महत्या की सबसे अधिक घटनाएं ऐसे स्थानों पर होती हैं.

इसमें सुझाव दिया गया कि जेल अधिकारियों को नियमित रूप से कैदियों की चादरों और कंबलों की जांच करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका उपयोग आत्महत्या के लिए रस्सी बनाने के लिए नहीं किया जा रहा है और उन स्थानों की भी पहचान करनी चाहिए जहां यह ऐसा किया जा सकता है.

परामर्श में कैदियों के परिवार के सदस्यों से उनकी मुलाकात को प्रोत्साहित करने या फोन पर बात करने की व्यवस्था का भी सुझाव दिया गया है ताकि वे मानसिक रूप से अच्छा महसूस कर सकें.

कुल मिलाकर आयोग ने 11 बिंदुओं पर प्रकाश डाला, जिनमें से कुछ- जेल कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना, उनका प्रशिक्षण, प्रवेश स्तर पर कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य की जांच करना, जोखिम वाले कैदियों की निगरानी करना और उनकी किसी भी लत पर नियंत्रण रखना हैं.

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