बलिया-देवरिया में ‘गर्मी और लू’ से सैकड़ों मौतें होने की बात से क्यों इनकार कर रही है योगी सरकार

उत्तर प्रदेश में भीषण गर्मी और लू के बावजूद राज्य सरकार तब जागी, जब बड़ी संख्या में लोगों की मौत मीडिया के ज़रिये सामने आई. सरकार ने लू के कारण कोई भी मौत होने की बात से इनकार किया है और साल 2017 में हुए गोरखपुर के ऑक्सीजन त्रासदी के बाद अपनाई गई ‘इनकार नीति’ पर चल रही है.

बलिया और देवरिया जिले के अस्पतालों में जून महीने में हुईं मौतों के संबंध में स्थानीय अखबारों में प्रकाशित खबरें.

उत्तर प्रदेश में भीषण गर्मी और लू के बावजूद राज्य सरकार तब जागी, जब बड़ी संख्या में लोगों की मौत मीडिया के ज़रिये सामने आई. सरकार ने लू के कारण कोई भी मौत होने की बात से इनकार किया है और साल 2017 में हुए गोरखपुर के ऑक्सीजन त्रासदी के बाद अपनाई गई ‘इनकार नीति’ पर चल रही है.

बलिया और देवरिया जिले के अस्पतालों में जून महीने में हुईं मौतों के संबंध में स्थानीय अखबारों में प्रकाशित खबरें.

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के बलिया, देवरिया सहित कई जिलों में लू से बड़ी संख्या में मौतों ने एक बार फिर प्रदेश में आपदा और बीमारियों से मौतों को रोकने पर सरकार की अक्षमता उजागर की है.

प्रदेश में भीषण गर्मी और लू के बावजूद सरकार तब जागी जब बड़ी संख्या में लोगों की मौत मीडिया के जरिये सामने आई. सरकार ने लू के कारण कोई भी मौत होने से इनकार किया है और गोरखपुर के ऑक्सीजन त्रासदी के बाद अपनाई गई ‘इनकार नीति’ पर चल रही है.

लू से बड़ी संख्या में मौतों की सबसे पहले खबर बलिया से आई. बलिया के पत्रकारों ने 16 जून जिला अस्पताल में अचानक बढ़ीं मौतों के बारे में जानकारी चाही तो जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डाॅ. दिवाकर सिंह ने बताया कि 24 घंटे में 25 लोगों की मौत हुई है और ये मौतें लू जनित बीमारियों से हुई हैं. उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में इलाज के लिए आ रहे मरीजों में 60 फीसदी मरीज हीट स्ट्रोक के हैं.

सीएमएस ने जब यह जानकारी दी , तब तक एक सप्ताह में जिला अस्पताल में करीब 100 लोगों की मौत हो चुकी थी.

हालांकि इस बयान के कारण प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सीएमएस डाॅ. दिवाकर सिंह पद से हटा दिया. उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कहा था, ‘चिकित्सा अधीक्षक को हटाया गया है, क्योंकि उन्होंने लू के बारे में जानकारी के बिना लापरवाह टिप्पणी की थी.’

अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में भारी वृद्धि हुई थी और मौतें भी बढ़ गई थी. भर्ती होने वाले अधिकतर मरीज बुखार, कमजोरी, सांस की दिक्कत, हाई ब्लड प्रेशर के लक्षणों वाले थे, जो कि लू जनित बीमारियों के प्रमुख लक्षण हैं.

बलिया के जिला अस्पताल में लू से मौतें होने की जानकारी आने के बाद मीडिया का ध्यान इसकी तरफ गया. देवरिया जिले से खबर आई कि 11 से 18 जून के बीच देवरहा बाबा मेडिकल कालेज के इमरजेंसी में 133 लोगों की मौत हुई और इनमें अधिकतर सांस की दिक्कत, बुखार व उल्टी दस्त की शिकायत थी. इनमें से बहुत से लोग अस्पताल पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ चुके थे.

परिवहन विभाग के देवरिया डिपो के संविदा परिचालक धर्मेंद्र प्रताप सिंह की ड्यूटी के दौरान बस्ती में मौत हो गई. देवरिया डिपो से अनुबंधित बस के चालक परमहंस की सलेमपुर में मौत हो गई. भीषण गर्मी में ड्यूटी कर रहे दो अन्य परिचालकों की तबियत खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.

देवरिया डिपो के एआरएम ओपी ओझा ने संविदा परिचालक व अनुबंधित बस के चालक की मौत और दो कर्मचारियों के गर्मी के वजह से बीमार पड़ने की पुष्टि की, लेकिन बीमारी और मौत के कारणों के बारे में जानने के लिए क्षेत्रीय प्रबंधक पीके तिवारी से संपर्क करने को कहा.

क्षेत्रीय प्रबंधक पीके तिवारी ने कहा कि संविदा परिचालक की मौत का कारण लू नहीं है, उसे बुखार था. यह पूछे जाने पर कि गर्मी की वजह से परिवहन विभाग के चालक व परिचालक बीमार पड़ रहे हैं तो उन्होंने स्वीकार किया कि 20 फीसदी कर्मचारी छुट्टी पर हैं, जबकि 3500 कर्मचारियों वाले गोरखपुर रीजन में आम तौर पर 10 फीसदी ही औसतन छुट्टी पर रहते हैं.

कर्मचारियों की बीमारी के कारण अवकाश पर जाने की वजह गर्मी मानने से इनकार करते हुए उनका कहना था कि ऐसा शादी-ब्याह के मौसम में होता है.

मईल क्षेत्र के अकूबा गांव निवासी पीआरडी जवान महेश सिंह की देवरिया-सलेमपुर रोड पर मुसैला चौराहे के पास उस समय लू से तबीयत खराब हो गई, जब वह बाइक से जा रहे थे. जब तक उन्हें जिला अस्पताल ले जाया जाता, उनकी मौत हो चुकी थी.

बलिया में जून महीने में हुईं मौतों को संबंध में अमर उजाला अखबार में प्रकाशित खबर.

देवरिया जिले के रुद्रपुर क्षेत्र के रहने वाले यातायात उप-निरीक्षक विनोद सोनकर की अयोध्या में ड्यूटी के दौरान मौत हो गई. समाचार पत्रों में दरोगा की मौत को हीट स्ट्रोक बताया बताया गया है.

गोरखपुर जिले के चौरीचौरा क्षेत्र के डुमरी खुर्द गांव के किसान रामरक्षा सिंह की उस समय मौत हो गई, जब वह अपने खेत में काम कर रहे थे. उनकी मौत को लू लगना बताया गया है.

देवरिया, बलिया सहित कई जिलों के अस्पतालों में जून के तीसरे हफ्ते में मौतों के बढ़े आंकड़े साफ तौर पर बताते हैं कि अधिकतर मौतें लू जनित बीमारियों से हुई हैं, भले ही शासन-प्रशासन लू से एक भी मौत का होना स्वीकार न करे.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि जैसे बारिश की वजह से तापमान में कमी आई अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या और मौतों में भी कमी आई. जाहिर है कि मौतों का संबंध बढ़ते तापमान से जरूर है.

देवरिया के मेडिकल कालेज के इमर्जेंसी के आंकड़े बताते हैं कि एक से 18 जून तक आकस्मिक अनुभाग में 133 व्यक्ति मृत अवस्था में लाए गए थे.

इन आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि एक से 10 जून के बीच सिर्फ 30 लोगों की मौत हुई, लेकिन अगले आठ दिन में 103 लोगों की मौत हुई. 17 जून को तो सर्वाधिक 30 लोगों की मौत हुई.

देवरिया जिले के सीएमओ, मेडिकल कालेज के प्राचार्य और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा किए गए प्रेस वार्ता में कहा गया कि एक जून से 18 जून तक हीट स्ट्रोक से प्रभावित 53 लोग भर्ती हुए, जिसमें से चार  लोगों की हुई, लेकिन इन मौतों को लू से मौत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि परिजनों ने पोस्टमॉर्टम कराने से इनकार कर दिया, जिससे का सही कारण पता नहीं चल सका.

स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि जून महीने में मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी में 126 लोगों की मौत हुई, जिसमें अधिकतर 70 वर्ष से अधिक उम्र के थे.

इसमें सांस संबंधी कारणों (Respiratory Cause) से 24, एक्यूट क्रॉनिक किडनी डिजीज से 1, स्ट्रोक/ सेरेब्रोवस्कुलर एक्सीडेंट से 13, ट्रामा से 6, पॉयजनिंग से 3, अल्कोहलिक पॉयजनिंग से 1, शॉक विद मल्टी आर्गन फेलियर से 36 और संदिग्ध हीट स्ट्रोक से चार मौतें हुई हैं.

‘हिन्दुस्तान’ समाचार पत्र में 20 जून को प्रकाशित खबर के अनुसार बलिया जिला अस्पताल में पिछले वर्ष जून महीने में हुईं मौतों की तुलना में इस वर्ष बहुत अधिक मौतें हुईं हैं.

हिंदुस्तान अखबार में 20 और 23 जून को प्रकाशित खबर का अंश.

अखबार के अनुसार मई 2022 में 87 और जून 2022 में जिला अस्पताल में 97 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन इस वर्ष जून महीने के 18 दिनों में 154 लोगों की जान गई है, जो असामान्य स्थिति की ओर इशारा करता है.

इसमें भी 11 जून से 18 जून के बीच 100 लोगों की मौत हुई. हिंदुस्तान अखबार के 23 जून के अंक में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, 13 से 23 जून के बीच बलिया जिला अस्पताल में 1,565 लोग भर्ती हुए जिसमें 160 की मौत हुई.

इसी अवधि में अंत्येष्टि स्थलों पर अधिक शवों के अंतिम संस्कार भी जून के तीसरे सप्ताह में मौतों की संख्या में वृद्धि दर्शा रहे हैं.

देवरिया जिले के बरहज और भागलपुर, गोरखपुर के गोला व बड़हलगंज में घाघरा नदी के तट पर बड़ी संख्या में लोगों की अत्येष्टि हुई. भागलपुर के एक पत्रकार ने कहा कि घाघरा तट पर शवों की अत्येंष्टि देख कोराना काल का दृश्य याद आ रहा था.

बलिया के एक पत्रकार ने बताया कि 16, 17 और 18 जून को बलिया जिला अस्पताल का दृश्य भयावह था, जिसे देख कोरोना काल की याद आ गई.

इन भयावह स्थितियों को लेकर बीते 20 जून को एक ट्वीट में समाजवादी पार्टी की ओर से कहा गया, ‘उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था और योगी आदित्यनाथ की संवेदनाएं दम तोड़ चुकी हैं! प्रदेश के सरकारी अस्पतालों से निरंतर आ रही विचलित करने वाली तस्वीरें.’

पार्टी ने ट्वीट में कहा था, ‘बीएचयू के सुंदरलाल अस्पताल में ओपीडी के बाहर स्ट्रेचर पर अपनी बारी का इंतजार कर रहे मरीज. देवरिया जिला अस्पताल में बेड की कमी, बलिया जिला अस्पताल में न स्ट्रेचर, न सफाई, न बेहतर इलाज. गोरखपुर में हीटवेव और लू से 5 लोगों की मौत. जिला अस्पताल बदहाली का शिकार. बेशर्म सरकार, जनता लाचार!’

मौतों को झुठलाने का सरकारी अभियान

तीन से सप्ताह से पूरे प्रदेश में पड़ रही भीषण गर्मी और लू के बावजूद कोई कदम नहीं उठाने वाली प्रदेश सरकार मीडिया में बलिया और देवरिया में मौतों की खबर से अचानक जाग उठा और उसने सबसे पहला काम यह किया कि बलिया के जिला अस्पताल के सीएमएस का तबादला कर दिया और मौतों को लू से होना झूठलाना शुरू कर दिया.

शासन के निर्देश पर लखनऊ से तीन सदस्यीय स्वास्थ्य अधिकारियों की टीम को मौतों के कारणों की जानकारी के लिए बलिया भेज दिया गया. तीन सदस्यीय इस दल में निदेशक संचारी रोग डॉ. एके सिंह, संयुक्त निदेशक संचारी रोग डाॅ. मोहित और निदेशक मेडिकल केयर डॉ. केएन तिवारी थे.

ये दल 18 जून को बलिया पहुंचा और उसने लू से मौतों पर संदेह जताया और कहा कि जिला अस्पताल में इलाज का ज्यादा बोझ है. 5 से 10 मौतें स्वभाविक हैं. गर्मी में मृत्यु दर बढ़ जाती है. अचानक बढ़ी मौतें संयोग हो सकती हैं.

इस टीम ने यह भी आशंका जता दी कि मौतों का कारण प्रदूषित जल हो सकता है. टीम का कहना था कि बलिया के दो ब्लाकों- बांसडीह और गड़वार से अधिक मौतें हुई हैं, इसलिए वहां के एक गांव में पहुंच कर पानी की भी जांच की, लेकिन एक सप्ताह बाद में इस टीम ने लखनऊ पहुंच कह दिया कि प्रदूषित पानी भी मौतों का कारण नहीं है.

इस बीच बलिया जिले के विधायक एवं परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने बयान दिया कि गर्मी में मौतें बढ़ जाती है.

याद करिए कि इस तरह के बयान अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों और वयस्कों की मौत के बारे में में दिए गए थे. दिल्ली और लखनऊ से स्वास्थ्य अधिकारियों और विशेषज्ञों की टीम ने फौरन ऑक्सीजन की कमी से मौतों से इनकार कर दिया था.

तब के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा था कि अगस्त में बच्चों की मौत तो होती ही है. ऑक्सीजन त्रासदी के बाद से यूपी सरकार का यह चिर परिचित तरीका बन गया है कि सचाई स्वीकार नहीं करती है और अफसरों को भी इसी तरह के निर्देश दिए जाते हैं कि वे वही भाषा बोलें, जो सरकार कह रही है.

सरकार की सख्ती की वजह से 18 जून के बाद स्वास्थ्य अधिकारियों की भाषा बदल गई और वे मीडिया के सामने आने से बचने लगे. कुछ अधिकारियों और मंत्रियों ने मीडिया पर ही झूठी खबरें प्रसारित करने का आरोप लगाया.

देवरिया में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने लू से मौतों की खबर को झूठ बताते हुए पत्रकारों पर नाराजगी जताई.

देवरिया के सीएमओ डॉ. राजेश झा ने ‘द वायर’ से कहा कि लू के बारे में बोलने के लिए हम अधिकृत नहीं हैं. आम डीएम साहब से बात करिए. अब स्थिति में सुधार है. पहले भी स्थिति ठीक थी.

वहीं, बलिया के सीएमओ से संपर्क करने के प्रयास असफल रहे. उन्होंने मोबाइल पर कई बार किए गए कॉल को रिसीव नहीं किया.

लू जनित बीमारियों के लिए कोई तैयारी नहीं थी

सरकार बहुत देर से चेती और 19 जून को प्रदेश स्तर पर लू को लेकर अलर्ट जारी किया गया. इसके बाद से गोरखपुर के जिला अस्पताल सहित कई दूसरे जिलों में वार्डों में कूलर, पंखों का इंतजाम किया गया. देवरिया में 19 जून को 15 बेड का नया वार्ड बनाया गया. गोरखपुर जिला अस्पताल में 21 जून को 18 कूलर लगाए गए.

देवरिया मेडिकल कॉलेज में 133 मौतों के बाद तैयार किया गया नया वार्ड. (फोटो: मनोज सिंह/द वायर)

आनन फानन में किए गए ये इंतजाम बताते हैं कि प्रदेश सरकार की लू को लेकर पहले से कोई तैयारी नहीं थी और जून के तीन हफ्ते तक अधिकतर जिलों में तापमान के 40 से 44 डिग्री सेल्सियिस तक रहने के बावजूद स्वास्थ्य व दूसरे विभाग सोए रहे, जबकि केंद्र सरकार की ओर से 2021 में लू-जनित बीमारियों के बारे में एक्शन प्लान जारी किया गया था.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी लू-जनित बीमारियों के बारे में एक्शन प्लान बनाने के बाद इसको लागू करवाने के बारे में उदासीन बना रहा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया द्वारा 21 जून को लू-प्रभावित सात राज्यों के मंत्रियों व अफसरों के साथ बैठक के बाद दिया गया बयान भी यही बताता है कि केंद्र व प्रदेश सरकार अपने द्वारा बनाए गए एक्शन प्लान को लागू करने के बारे में गंभीर नहीं थे.

इस बैठक के बारे में जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने 28 फरवरी को ही राज्यों के प्रमुख सचिवों को एक्शन प्लान के अनुसार कार्यवाही करने को कहा था, लेकिन इसके अनुसार क्या कार्रवाई हुई, इसका कोई फालोअप नहीं किया गया. जब मौतों की खबर आई, तब जाकर बैठक की गईं और पूरे देश में लू से एक भी मौत नहीं होने का खोखला दावा कर दिया गया.

नेशनल एक्शन प्लान ऑन हीट रिलेटेड इलनेस जुलाई 2021 और गाइडलाइंस ऑन प्रीवेंशस एंड मैनेजमेंट ऑफ हीट रिलेटेड इलनेस में कहा गया है कि क्लाइमेंट चेंज के कारण लू की आवृत्ति और अवधि बढ़ रही है. इसकी वजह से लू संबंधी बीमारियों के मामले और मौत बढ़ रहे हैं.

इसमें यह भी कहा गया है कि 2015 से 2019 तक (लू संबंधी बीमारियों) से 3,775 लोगों की मौत हुई है.

एक्शन प्लान में जलवायु परिवर्तन की वजह से लू और लू-जनित बीमारियों में वृद्धि को देखते हुए 2019 के बाद से 17 के बजाय 23 प्रदेशों- आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट, मध्य प्रदेश, ओडीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडू, तेलगांना, उत्तर प्रदेश, केरल, गोवा, उत्तराखंड, जम्मू एवं कश्मीर, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश में लू-जनित बीमारियों से संदिग्ध और निश्चित मौतों के आंकड़े दर्ज किए जाने का निर्देश है.

वर्ष 2019 के पहले अप्रैल से जुलाई माह तक लू जनित केस के आंकड़े दर्ज करने का प्रावधान था, लेकिन अब इसे मार्च से जुलाई तक कर दिया गया है.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नेशनल एक्शन प्लान में कहा गया है कि लू-जनित बीमारियों के इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल तक में इलाज की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए. इन अस्पतालों में आवश्यक दवाइयों व उपकरण के अलावा डेडीकेटेड वार्ड बनाया जाना चाहिए, जिसमें एयर कंडीशनर और कूलर लगे हों. पीने के पानी के लिए वाटर कूलर हों.

इस प्लान में लू-जनित बीमारियों के इलाज के लिए एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) भी बनाई गई है. मरीजों के इन्वेस्टीगेशन शीट का प्रोफार्मा भी है, जिसमें मरीज के लक्षण, बीमार होने की जगह से लेकर परीक्षण- पल्स रेट, कोर बॉडी टेम्परेचर, मेंटल सेंसोरियम, ब्लड प्रेशर आदि करने की बात कही गई है.

बलिया, देवरिया व अन्य अस्पतालों में मौतों के बारे में जानकारी से पता चलता है कि यहां पर एक्शन प्लान के मुताबिक कोई तैयारी नहीं थी, न ही इस बारे में स्वास्थ्य अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों ने निरीक्षण किए थे, न ही निर्देश जारी किए गए थे.

देवरिया के देवरहा बाबा मेडिकल कॉलेज में 18 जून तक 200 से अधिक मौतों के बाद 19 जून को ओपीडी बिल्डिंग के तीसरे माले पर आननफानन में 15 बेड का वार्ड तैयार किया गया. सीएमओ आफिस पर लू से बचाव का बैनर लगाया गया.

राज्य आपदा विभाग बाढ़ पूर्व तैयारियों में लगा था, लेकिन लू से बचाव के बारे में उसने कोई कार्यवाही नहीं की.

प्रदेश सरकार द्वारा 19 जून को एर्लट जारी होने के बाद 20 जून को जिलों में कई विभागों को चौक चौराहों पर पेयजल की व्यवस्था करने, रैन बसेरों को शेल्टर हाउस के रूप में प्रयोग करने, निशुल्क ओआरएस कैंप लगाने, सार्वजनिक पेयजल स्रोतों को क्रियाशील करने के बारे में निर्देश जारी किए गए.

जब यह निर्देश जारी किए गए तब कई जनपदों में बारिश होने से तापमान में कमी आई और लू का कहर कम होने लगा. इसका सीधा प्रभाव अस्पतालों में भर्ती होने मरीजों की संख्या में कमी आने से देखने को मिला.

जाहिर है कि प्रदेश सरकार जब तक सतर्क होती और एहतियातन उपाय करती लू सैकड़ों लोगों की जान ले चुका था और कोरोना की तरह एक बार फिर सरकार लोगों की जान बचाने में अक्षम साबित हो चुकी थी.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं)

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