असम सीएम का बयान प्रधानमंत्री के दावे को कमज़ोर करता है कि देश में धार्मिक भेदभाव नहीं: विपक्ष

बीते 22 जून को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत में जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर चिंता जताई थी. हालांकि नरेंद्र मोदी ने देश में धार्मिक भेदभाव की बात से इनकार किया था. इसके बाद ​असम के मुख्यमंत्री ने कहा था​ कि देश में कई ‘हुसैन ओबामा’ है, उन पर ध्यान देने की ज़रूरत है. असम पुलिस प्राथमिकता के आधार पर काम करेगी.

हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक)

बीते 22 जून को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत में जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर चिंता जताई थी. हालांकि नरेंद्र मोदी ने देश में धार्मिक भेदभाव की बात से इनकार किया था. इसके बाद ​असम के मुख्यमंत्री ने कहा था​ कि देश में कई ‘हुसैन ओबामा’ है, उन पर ध्यान देने की ज़रूरत है. असम पुलिस प्राथमिकता के आधार पर काम करेगी.

हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा पर उनके ‘हुसैन ओबामा’ ट्वीट पर हमला करते हुए कांग्रेस समेत विपक्ष के अन्य दलों ने उन पर भारत में अल्पसंख्यकों को ‘गंभीर परिणाम’ भुगतने की ‘खुलेआम धमकी’ देने का आरोप लगाया है.

विपक्ष के नेताओं ने कहा है कि असम के मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री के उस दावे को कमजोर करता है कि देश में धार्मिक भेदभाव नहीं है. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्रालय से उनकी टिप्पणी पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है.

बीते 23 जून को शर्मा ने भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की टिप्पणी पर एक पत्रकार द्वारा किए गए व्यंग्यात्मक कटाक्ष का जवाब देते हुए ट्वीट किया था, ‘भारत में ही कई हुसैन ओबामा हैं. वॉशिंगटन जाने पर विचार करने से पहले हमें ‘उन पर ध्यान देने’ (नकारात्मक भाव में) को प्राथमिकता देनी चाहिए. असम पुलिस हमारी अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करेगी.’

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की टिप्पणियों का जिक्र करते हुए पत्रकार रोहिणी सिंह ने पूछा था, ‘क्या गुवाहाटी में ओबामा के खिलाफ भावनाओं को आहत करने के लिए एफआईआर दर्ज की गई है? क्या असम पुलिस ओबामा को गिरफ्तार करने के लिए वॉशिंगटन जा रही है?’

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, वह स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कथित ‘आपत्तिजनक शब्दों’ का इस्तेमाल करने के लिए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा की गिरफ्तारी का जिक्र कर रही थीं.

बीते फरवरी महीने में पवन खेड़ा को असम पुलिस ने एक फ्लाइट से नरेंद्र मोदी को ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी’ के बजाय ‘नरेंद्र गौतमदास मोदी’ कहने के लिए गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि तुरंत उन्होंने माफी मांगते हुए अपनी गलती भी सुधार ली थी.

कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शर्मा को उनकी टिप्पणी के लिए आड़े हाथों लिया है.

कांग्रेस के असम प्रभारी जितेंद्र सिंह ने बीते 23 जून को ट्वीट कर कहा, ‘यह असम के मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने भारत के संविधान की शपथ ली है और खुले तौर पर अल्पसंख्यकों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं. इस प्रक्रिया में वह मोदी के दोस्त बराक (ओबामा) को भी नहीं बख्श रहे हैं. उन्हें हुसैन ओबामा कह रहे हैं.’

उन्होंने सवाल किया, ‘हिमंता बिस्वा शर्मा क्या आप हमेशा की तरह एक घृणित कट्टरपंथी हैं या आप वास्तव में प्रधानमंत्री को कमजोर करने की साजिश रच रहे हैं, जबकि उन्होंने कल ह्वाइट हाउस में इसके बिल्कुल विपरीत बात कही थी.’

मालूम हो कि बीते 22 जून को एक इंटरव्यू में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत में जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर चिंता जताई थी.

उन्होंने कहा था, ‘अगर मैं नरेंद्र मोदी से बात करता तो मेरी बातचीत का एक हिस्सा यह होगा कि यदि आप भारत में जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करते हैं, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत किसी बिंदु पर बंटना शुरू हो जाएगा. और हमने देखा है कि जब आप उस प्रकार के बड़े आंतरिक संघर्षों में शामिल होने लगते हैं तो उसका परिणाम क्या होता है. यह न केवल मुस्लिम भारत, बल्कि हिंदू भारत के हितों के भी विपरीत होगा. मुझे लगता है कि इन चीजों के बारे में ईमानदारी से बात करने में सक्षम होना महत्वपूर्ण है.’

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते गुरुवार (22 जून) को ह्वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता में हिस्सा लिया था. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि भारत में धर्म, जाति आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है.

उन्होंने कहा था, ‘हमने सिद्ध किया है कि लोकतंत्र अच्छे नतीजे दे सकता है. हमारे यहां, जाति, उम्र, लिंग आदि पर भेदभाव की बिल्कुल भी जगह नहीं है. जब आप लोकतंत्र की बात करते हैं, अगर मानव मूल्य न हों, मानवता न हो, मानवाधिकार न हों, तब उस सरकार को लोकतंत्र कहा ही नहीं जा सकता.’

बहरहाल विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि असम के मुख्यमंत्री के ‘हुसैन ओबामा’ ट्वीट ने वास्तव में अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के उस दावे को कमजोर कर दिया है कि भारत में कोई धार्मिक भेदभाव नहीं है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि पीएम मोदी भी (यह टिप्पणी करते हुए) ईमानदार नहीं थे.

बीते 23 जून को जयराम रमेश ने जितेंद्र सिंह के ट्वीट को कोट करते हुए कहा, ‘क्या आप सचमुच सोचते हैं कि प्रधानमंत्री ईमानदार थे? असम के मुख्यमंत्री कोई फ्रिंज एलिमेंट नहीं हैं. वह प्रधानमंत्री की कोर कमेटी में शामिल लोगों में से एक हैं.’

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा, ‘कभी-कभी ऐसा लगता है कि भाजपा के भीतर एक शक्तिशाली लॉबी प्रधानमंत्री कार्यालय को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रही है. अन्यथा मुख्यमंत्री (हिमंता) 24 घंटे के भीतर प्रधानमंत्री (के बयान) का खंडन और अपमान क्यों करेंगे?’

माकपा के आधिकारिक हैंडल से ट्वीट किया गया, ‘हिमंता बिस्वा शर्मा आप अपने इस्लामोफोबिया और किसी भी प्रकार के सवाल के प्रति अपनी असहिष्णुता से भारत को शर्मसार करते हैं.’

तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता साकेत गोखले ने मोदी के बयान का हवाला देते हुए कहा, ‘पीएम मोदी के ‘भारत में कोई भेदभाव नहीं है’ कहने के 24 घंटे से भी कम समय के भीतर उनकी पार्टी के एक मुख्यमंत्री ने ओबामा को ‘हुसैन ओबामा’ कहा. भारत में उन्हें देख लेने के लिए अपने राज्य पुलिस बल का उपयोग करने के बारे में परोक्ष धमकी दी. यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर पीएम मोदी के पाखंड और झूठ को स्पष्ट रूप से उजागर करता है.’

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने ‘अपमानजनक बयान’ के लिए हिमंता बिस्वा शर्मा से माफी की मांग की. पार्टी प्रवक्ता क्लाइड क्रैस्टो ने कहा, या तो उन्होंने (शर्मा) हमारे पीएम नरेंद्र मोदी जी के अमेरिका में दिए गए बयान को नहीं सुना या उन्होंने जो कहा, उसकी अनादरपूर्वक अवहेलना कर रहे हैं.’

क्रैस्टो ने कहा कि अगर दुनिया को विश्वास करना है कि पीएम मोदी ने ह्वाइट हाउस में जो कहा वह सच है, तो असम के मुख्यमंत्री को माफी मांगनी चाहिए.

शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘बराक से हुसैन तक. भाजपा के एक मौजूदा मुख्यमंत्री ने यह साबित कर दिया है कि बराक ओबामा की टिप्पणियां (भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर) गलत नहीं थीं.’