प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दिए एक भाषण में समान नागरिक संहिता की पुरज़ोर वकालत की थी. इस पर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने कहा है कि वे कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंगलवार को विवादास्पद समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर टिप्पणी करने के कुछ घंटों बाद कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने उन्हें निशाने पर लिया. उन्होंने आरोप लगाया कि कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए वे विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं.
ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को मध्य प्रदेश में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ अभियान के तहत भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यूसीसी की पुरजोर वकालत करते हुए सवाल किया था कि ‘दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा?’
उन्होंने कहा, ‘अगर लोगों के लिए दो अलग-अलग नियम हों तो क्या एक परिवार चल पाएगा? तो फिर देश कैसे चलेगा? हमारा संविधान भी सभी लोगों को समान अधिकारों की गारंटी देता है.’
इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस ने यूसीसी की खूबियों या कमियों पर चर्चा करने से परहेज करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की टिप्पणियों का उद्देश्य उन ‘ज्वलंत मुद्दों’, जिनका देश के लोग सामना कर रहे हैं, से ध्यान भटकाना है.
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा, ‘यह सब मौजूदा मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला है. मणिपुर 50 दिनों से अधिक समय से जल रहा है. प्रधानमंत्री ने एक शब्द भी नहीं बोला. फिर महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी हैं. उन मुद्दों पर भी वह चुप हैं. यह (यूसीसी) ध्यान भटकाने और अपनी सरकार की विफलताओं से दूर भागने का एक प्रयास है… उन्हें इस देश के वास्तविक सवालों का जवाब देना होगा.’
पार्टी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि किसी परिवार और एक राष्ट्र के बीच तुलना उचित नहीं है और इसे किसी पर थोपा नहीं जा सकता.
The Hon'ble PM has equated a Nation to a Family while pitching for the Uniform Civil Code (UCC)
While in an abstract sense his comparison may appear true, the reality is very different
A family is knit together by blood relationships. A nation is brought together by a…
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) June 28, 2023
उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि एक परिवार में भी विविधता होती है. भारत के संविधान ने भारत के लोगों के बीच विविधता और बहुलता को मान्यता दी है. यूसीसी एक आकांक्षा है. इसे एजेंडा-संचालित बहुसंख्यकवादी सरकार द्वारा लोगों पर थोपा नहीं जा सकता है.’
वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने भी इसी तरह का रुख अपनाया. टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, ‘जब आप नौकरियां नहीं दे सकते, महंगाई को नियंत्रित नहीं कर सकते, जब आप सामाजिक ताने-बाने को तोड़ देते हैं, जब आप किए गए हर वादे को पूरा करने में विफल रहते हैं तो आप अपनी हताशा में 2024 से पहले बस अपनी विभाजनकारी राजनीति की आग को भड़का सकते हैं.’
राजद के मनोज कुमार झा ने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री भड़काऊ राजनीति में शामिल होने के अवसरों की तलाश में हैं.
झा ने कहा, ‘जब आप प्रधानमंत्री को सुनते हैं…कभी-कभी आपको लगता है कि वह भड़काने के लिए अवसरों की तलाश में हैं. बोलने से पहले प्रधानमंत्री को 21वें लॉ कमीशन की रिपोर्ट पढ़नी और अध्ययन करना चाहिए था. उन्हें बिना किसी की मदद के यह भी अध्ययन करना चाहिए था कि संविधान सभा में क्या चर्चा और विचार-विमर्श हुआ…क्योंकि जो आपकी मदद कर रहे हैं वे आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं.’
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए इसे इसे देश के बहुलवाद और विविधता पर हमला बताया.
#WATCH | AIMIM chief Asaduddin Owaisi speaks on PM Modi's statement on Uniform Civil Code in Bhopal; says, "India's PM considers India's diversity & its pluralism a problem. So, he says such things…Will you strip the country of its pluralism & diversity in the name of a UCC?…… pic.twitter.com/XeBhdBDycD
— ANI (@ANI) June 27, 2023
उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘प्रधानमंत्री भारत की विविधता और बहुलतावाद को एक समस्या मानते हैं. इसीलिए ऐसी बातें कही जाती हैं. वे कहते हैं एक राष्ट्र, एक चुनाव, एक कर, एक कानून, एक संस्कृति, एक धर्म, एक पहचान और अब वे एक ही फर्टीलाइजर की भी बात करते हैं. यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है.’
कांग्रेस की सहयोगी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने प्रधानमंत्री मोदी की समान नागरिक संहिता की वकालत पर सवाल उठाया और कहा कि एक समान संहिता सबसे पहले हिंदुओं पर लागू होनी चाहिए.
डीएमके के टीके एस इलांगोवन ने कहा, ‘यूसीसी को सबसे पहले हिंदू धर्म में लागू किया जाना चाहिए. हर कोई, अनुसूचित जाति या जनजाति के लोगों को उच्च जाति के लोगों द्वारा भारत के किसी भी मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी जाती है. इसलिए उन्हें सबसे पहले हिंदू धर्म में यूसीसी लागू करना होगा. एक वर्ग के लोगों को क्यों जाकर पूजा करनी चाहिए और अन्य लोग मंदिर के गर्भगृह में भी प्रवेश नहीं कर सकते?’
सीपीएम ने कहा कि वह 2018 में पिछले विधि आयोग के निष्कर्ष का समर्थन करता है कि इस स्तर पर यूसीसी न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सवाल किया कि यदि यह लागू हुआ, तब आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं का क्या होगा.
प्रधानमंत्री की टिप्पणी पर बघेल ने कहा, ‘आप (भाजपा) हमेशा हिंदू-मुस्लिम दृष्टिकोण से क्यों सोचते हैं? छत्तीसगढ़ में आदिवासी हैं. उनकी परंपराओं और उनके नियमों का क्या होगा, जिनसे उनका समाज चलता है. यदि समान नागरिक संहिता लागू हो गई, तो उनकी परंपरा का क्या होगा?’
कांग्रेस नेता ने कहा कि देश में कई अन्य जाति समूह भी हैं जिनके अपने नियम हैं. हमारा देश एक खूबसूरत गुलदस्ते की तरह है जिसमें विभिन्न धर्मों को मानने वाले, विभिन्न भाषाएं बोलने वाले, विभिन्न संस्कृतियों का पालन करने वाले लोग हैं. हमें उन्हें भी देखना होगा.’
गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.
उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.
मालूम हो कि समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे.
समान नागरिक संहिता को सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो. वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.
मुस्लिम संगठनों ने कहा- प्रधानमंत्री मोदी की यूसीसी पर टिप्पणी ‘अवांछित’
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी पर आपत्ति जताई है और कहा है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून पर उनका दावा संविधान के भावना के अनुरूप नहीं है, जो सभी को अपने धर्म और प्रथागत कानूनों का पालन करने के लिए सुरक्षा और स्वतंत्रता प्रदान करता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम मौलवियों की प्रभावशाली संस्था जेयूएच ने सार्वजनिक मंच पर प्रधानमंत्री के यूसीसी पर जोर को ‘अवांछित’ बताया क्योंकि यह ऐसे समय में आया है जब विधि आयोग ने इसकी समीक्षा शुरू करने से पहले हितधारकों और आम जनता से इस मुद्दे पर विचार मांगे हैं.
जेयूएच के वरिष्ठ सदस्य और सचिव नियाज़ अहमद फारूकी ने आरोप लगाया कि यूसीसी पर पीएम के बयान विधि आयोग को प्रभावित करने और इस विषय पर एक सार्वजनिक नैरेटिव बनाने का सीधा प्रयास है.
उन्होंने कहा, ‘देश के प्रधानमंत्री होने के नाते यह उनके कद के अनुरूप नहीं है और यूसीसी पर इस तरह सार्वजनिक रूप से जाने से पहले उन्हें इस समय इस मुद्दे को उठाने की उपयुक्तता पर विधि आयोग से परामर्श करना चाहिए था.’
दिलचस्प बात यह है कि मंगलवार शाम को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूसीसी पर अपना रुख मजबूत करने और एक जवाब का मसौदा तैयार करने के लिए बैठक की, जिसे जल्द ही लॉ कमीशन को भेजा जाएगा.
प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए मुद्दों पर एआईएमपीएलबी के उभरते दृष्टिकोण को साझा करते हुए, इसके प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा, ‘एक राष्ट्र, एक कानून पर जोर देने के लिए यूसीसी पर प्रधानमंत्री की टिप्पणी संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है जो विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से विविधता और संघवाद को अपनी उपस्थिति महसूस कराने के लिए जगह बनाता है. वास्तव में ऐसे उदाहरण हैं जैसे संविधान के विशिष्ट खंड नगा और कुकी जैसी पूर्वोत्तर की जनजातियों को उनके प्रथागत कानूनों का पालन करने के लिए सुरक्षा प्रदान करते हैं.’
फारूकी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने यूसीसी के बारे में बात करते हुए मुसलमानों को अलग कर दिया, लेकिन यह भारत जैसे इतने सारे धर्मों, व्यक्तिगत और प्रथागत कानूनों वाले विविधतापूर्ण देश में एक समुदाय के बारे में नहीं है.’
2019 और उसके बाद तत्काल तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने के सरकार के फैसले पर विरोधियों द्वारा सवाल उठाने वाले पीएम के बयान पर फारूकी ने जवाबी सवाल के साथ जवाब दिया.
उन्होंने कहा, ‘अब इस मामले पर भारत में एक कानून बन गया है तो पीएम की इस चर्चा का क्या मतलब है. जहां तक इस्लाम की बात है तो यह सब महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए है, लेकिन तीन तलाक कहने वाले पति के लिए सजा का प्रावधान करने वाला यह कानून प्रभावित महिला के लिए कोई सहायता प्रणाली नहीं बनाता है. यहां तक कि सामान्य आबादी पर लागू होने वाले तलाक कानून भी सक्षम नहीं हैं और इसमें महिलाओं को अधर में छोड़कर लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है. पहले सरकार को इन सभी चीजों को ठीक करना होगा.’
इलियास ने कहा, ‘तीन तलाक पर बार-बार जोर देने से ऐसा लगता है जैसे यह मुसलमानों में बहुत आम बात है. वास्तव में यह जमीनी हकीकत से बहुत दूर है क्योंकि मुसलमानों में तलाक की दर कम है और इस्लाम किसी रिश्ते के टूटने की स्थिति में तलाक को अंतिम उपाय मानता है.’
उन्होंने जोड़ा, ‘अन्य मुस्लिम देश क्या कर रहे हैं, इस पर यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस्लाम में अलग-अलग विचारधाराएं हैं और इसलिए सभी मुस्लिम देश जिन्होंने बहुत पहले ही इंस्टैंट तलाक को समाप्त कर दिया था या इसकी अनुमति नहीं देते हैं, उन्होंने अपनी स्थिति के अनुसार ऐसा किया होगा. इस मामले पर देशों की तुलना करना उचित नहीं है.’