वाराणसी में महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए बने सर्व सेवा संघ के परिसर को उत्तर रेलवे द्वारा ‘अतिक्रमण’ बताते हुए ध्वस्तीकरण का नोटिस दिया गया है. संस्था से जुड़े लोगों ने इसे सरकार की तानाशाही बताया है.
वाराणसी: महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए बना सर्व सेवा संघ इस साल अपनी स्थापना के 75 साल पूरे कर रहा है, लेकिन वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ तथा गांधी विद्या संस्थान के परिसर में किसी आयोजन या समारोह की तैयारी के बजाय तनाव व्याप्त है. मंगलवार को इसे उत्तर रेलवे की तरफ से सर्व सेवा संघ को इसके 12.9 एकड़ के इसके परिसर में स्थित कई भवनों को ध्वस्त करने का नोटिस मिला है, जिसे लेकर संघ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया है.
नोटिस में लिखा है कि उत्तर रेलवे प्रशासन 30 जून 2023,को सुबह 9:00 बजे सर्व सेवा संघ परिसर में स्थित सभी ‘अवैध निर्माण’ ध्वस्त करने जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अदालत ने मामले को बुधवार को सुना था और अगली सुनवाई शुक्रवार को ही होगी. अपनी याचिका में सेवा संघ का कहना है कि ‘वाराणसी के परगना देहात में उसने ‘1960, 1961 और 1970′ में भारत सरकार से यह जमीन तीन रजिस्टर्ड डीड के जरिये खरीदी थी.’
सर्व सेवा संघ की वेबसाइट बताती है कि अप्रैल, 1948 में पांच संगठनों-अखिल भारत चरखा संघ, अखिल भारत ग्राम उद्योग संघ, अखिल भारत गौ सेवा संघ, हिंदुस्तानी तालिमी संघ और महरोगी सावा मंडल के विलय के बाद यह अस्तित्व में आया था. महात्मा गांधी की मृत्यु के उपरांत पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, पूर्व राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर संपूर्णानंद, आचार्य विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण आदि लोगों की पहल से सर्व सेवा संघ को शुरू किया गया था.
बताया जाता है कि महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से सर्व सेवा संघ और गांधी विद्या संस्थान का गठन किया गया. सेवा संघ का दावा है कि 1963 में समाजवादी आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण ने गांधी विद्या संस्थान की स्थापना की. इसका उद्घाटन लाल बहादुर शास्त्री ने किया और रेलवे से जमीन लेकर इसकी रजिस्ट्री भी कराई गई थी.
जिस परिसर को लेकर हालिया विवाद है, उससे एक प्रकाशन- सर्व सेवा संघ प्रकाशन, आर्थिक रूप से कमजोर तबके से आने वाले बच्चों के लिए एक निशुल्क प्री-स्कूल, एक गेस्ट हाउस, एक पुस्तकालय, मीटिंग हॉल, गांधी आरोग्य केंद्र (प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र), एक युवा प्रशिक्षण केंद्र और खादी भंडार संचालित होते हैं.
टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, परिसर में बने गांधी विद्या संस्थान में चालीस कर्मचारी अपने परिवार के साथ रहते हैं. बताया गया है कि साल 1963 में सोसाइटी एक्ट के अंतर्गत गांधी विद्या संस्थान का पंजीकरण हुआ और सर्व सेवा संघ ने अपनी जमीन का एक हिस्सा 20 साल के लिए संस्थान को दे दिया. हालांकि, पिछले कई वर्षों से यह संस्था आर्थिक संकट में है. इमरजेंसी के बाद अधिकांश समय इसे दी जाने वाली आर्थिक मदद रोक दी गई.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, वाराणसी में अधिकारियों ने बताया कि उत्तर रेलवे और सेवा संघ के बीच जमीन के स्वामित्व को लेकर लंबे समय से इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला चल रहा था. अदालत ने वाराणसी के जिलाधिकारी (डीएम) को इसका निपटारा करने को कहा था. बीते 26 जून को डीएम एस. राजलिंगम ने अपना फैसला सुनाया कि ‘राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार भूमि रेलवे की थी.’
अख़बार के मुताबिक, एस. राजलिंगम ने कहा, ‘मैंने दोनों पक्षों को उनकी बात रखने का मौका दिया था. रिकॉर्ड्स साफ दिखाते हैं कि जमीन रेलवे की है… सेवा संघ एक सेल डीड पर भरोसा कर रहा है जो कथित तौर पर भारत के राष्ट्रपति की ओर से एक डिविजनल इंजीनियर ने दी थी. उनके दावे के समर्थन में कोई सरकारी आदेश या प्राधिकार पत्र नहीं है. संघ अपना मालिकाना हक साबित करने में विफल रहा और इसलिए मैंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशों का अनुपालन किया और एक आदेश (26 जून को) जारी किया. अब मामला रेलवे और सेवा संघ के बीच है.’
सेवा संघ ने नोटिस को तानाशाही बताया
डीएम के 26 जून के आदेश के बाद उत्तर रेलवे द्वारा परिसर में ‘अतिक्रमण’ के ध्वस्तीकरण का नोटिस लगाया गया. सर्व सेवा संघ से जुड़े लोगों ने इसे सरकार की तानाशाही बताया है.
सेवा संघ के अध्यक्ष राम धीरज द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, ‘1:00 बजे जिलाधिकारी ने अपने फैसले की कॉपी सर्व सेवा संघ को दी और 2 बजे रेलवे ने सभी बिल्डिंगों पर नोटिस चिपका दिया कि 30 जून को पूरे परिसर को गिराया जाएगा. मजेदार बात यह है कि इस समय जितना हिस्सा सर्व सेवा संघ के पास है उस पर नोटिस लगाए गए हैं लेकिन जिसमें इंदिरा गांधी कला केंद्र कब्ज़ा किए हुए हैं उसमें नोटिस नहीं लगाए गए. यह तो अंधेरगर्दी है. ऐसा तो इमरजेंसी के समय भी नहीं हुआ था. जयप्रकाश जी ने इंदिरा गांधी को चुनौती दी थी, फिर भी उन्होंने बहाना बनाकर परिसर को नहीं गिराया.’
उन्होंने द टेलीग्राफ से बात करते हुए कहा कि उनके पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज हैं कि यह ज़मीन सेवा संघ की है.
एक आरोप यह भी है कि केंद्र सरकार गांधी विद्या संस्थान और इसकी इमारत को गैर-क़ानूनी तरीके से केंद्र के तहत आने वाले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के हवाले करना चाहते हैं.
राम धीरज ने कहा, ‘पिछले महीने स्थानीय प्रशासन ने जबरन संस्थान के ताले खोल दिए और इसे आईजीएनसीए को सौंप दिया. हम इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट गए थे, जिसने वाराणसी प्रशासन को सभी दस्तावेजों की समीक्षा करने के बाद ही निर्णय लेने का निर्देश दिया था. हमने जमीन संबंधी अधिकांश दस्तावेज डिवीजनल कमिश्नर कौशल राज शर्मा और डीएम एस. राजलिंगम को सौंप दिए हैं, साथ ही बाकी कागजात जमा करने के लिए कुछ समय मांगा है. वे इंतजार करने के लिए तैयार हो गए थे, लेकिन मंगलवार को अचानक उन्होंने न केवल संस्थान बल्कि सेवा संघ की इमारतों को भी गिराने के लिए शुक्रवार को बुलडोजर भेजने का फैसला ले लिया.’
उन्होंने जोड़ा, ‘सरकार यह नहीं समझ रही है कि हम मुजरिम नहीं हैं जिन पर वो बुलडोजर चला देगी. हम संस्थान के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. इमरजेंसी के दौरान हमें जेल में डाला गया था, टॉर्चर किया गया था लेकिन सरकार हमारी भावना को नहीं तोड़ सकी. हम सरकार को यह संपत्ति हड़पने देने और गांधी को एक बार फिर मार देने के बजाय जान देना बेहतर समझेंगे. देशभर से कम से कम पचास गांधीवादी, जिनकी उम्र साठ साल से अधिक है, यहां पहुंच रहे हैं, जो देखेंगे कि बुलडोजर में कितनी ताकत है.’
उल्लेखनीय है कि सर्व सेवा संघ से जुड़े लोग देशभर से समर्थन की मांग कर रहे हैं. उनकी अपील है कि 29 जून (गुरुवार) को समर्थन देने के लिए लोग वाराणसी में सर्व सेवा संघ के परिसर पहुंचकर ‘सरकार के इस जमीन पर कब्जा करने के प्रयास को विफल करें.’ खबर लिखे जाने तक विभिन्न गांधीवादी वाराणसी में प्रदर्शन कर रहे हैं.
सेवा संघ से जुड़े लोगों का आरोप है कि भारत सरकार किसी न किसी माध्यम से इन दोनों संस्थानों पर कब्जा करना चाहती है और इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को सौंप देना चाहती है.
राम धीरज कहते हैं, ‘आरएसएस-भाजपा सरकार गांधी, विनोबा, जयप्रकाश का नाम भारत के इतिहास से मिटाना चाहती हैं. भाजपा के इस कृत्य के सामने तो शैतानियत और अंधेरगर्दी जैसे शब्द भी बेमानी है!’ उनका कहना है कि आईजीएनसीए में अधिकांश लोग एबीवीपी के पूर्व सदस्य हैं.
सेवा संघ और गांधी विद्या संस्थान से जुड़े रहे समाजवादी जन परिषद के नेता अफलातून भी आईजीएनसीए को संस्थान सौंपे जाने के तरीके पर सवाल उठाते हैं. उन्होंने आईजीएनसीए के अध्यक्ष राम बहादुर राय पर आरएसएस से नजदीकी के आरोप लगाए.
उन्होंने यह भी बताया कि 1960 में कुछ स्वतंत्र लोगों ने इस (संस्थान की) भूमि पर दावा किया गया था और वे लोग हाईकोर्ट पहुंचे थे. हाईकोर्ट के एक कमेटी द्वारा जांच करवाने के बाद सर्व सेवा संघ के पक्ष में फैसला लिया गया था. हालांकि, इस सुनवाई से जुड़ी आधिकारिक जानकारी मांगने पर उन्होंने असमर्थता जाहिर की.
उन्होंने बताया कि सर्व सेवा संघ में हमेशा से ही विभिन्न विषयों पर शोध होता आ रहा है, जैसे- खेती पर शोध हुआ, 1977 में पुलिस एनकाउंटर पर रिपोर्ट भी इस संस्था द्वारा प्रकाशित की गई. इसके द्वारा तमाम उर्दू एवं हिंदी की पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं. उन्होंने बताया कि विनोबा भावे के आंदोलन में भी यह केंद्र रहा था. तमाम सांप्रदायिकता विरोधी आंदोलनों में भी सर्व सेवा संघ ने हिस्सा लिया था.
उन्होंने जोड़ा, ’26 जून ,1975 को पहला बड़ा संकट इस पर आया, जब इमरजेंसी के बाद जेपी गिरफ्तार हुए. उस समय भी गांधी विद्या संस्थान को सरकारी मदद उत्तर प्रदेश सरकार एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद द्वारा मिलती रही.’ उन्होंने बताया कि इस संस्थान को मिलने वाली राशि पर तब रोक लगा दी गई थी, जब मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन मंत्री थे.
वे कहते हैं, ‘सेवा संघ के पुस्तकालय में राजनीतिक शास्त्र, इतिहास, अर्थशास्त्र से जुड़ी कई पुस्तकें संग्रहित हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोधकर्ता यहां पढ़ने आते हैं.’ उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की नजर सर्व सेवा संघ के बाद साबरमती एवं सेवा सदन आश्रम पर भी है.
कांग्रेस भी विरोध में उतरी, कहा- गांधी की विरासत पर हमला
इस विवाद में कांग्रेस भी उतर गई है. पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया पर लिखे एक पोस्ट में कहा, ‘वाराणसी में स्थित सर्व सेवा संघ परिसर को भाजपा सरकार द्वारा खाली करने और ढहाने की कार्रवाई शुरू करना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत पर हमला है. आचार्य विनोबा भावे, डॉ राजेंद्र प्रसाद, श्री लाल बहादुर शास्त्री एवं बाबू जगजीवन राम के प्रयासों से वाराणसी में सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई थी. इसका मकसद गांधी जी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था. इन्हीं महापुरुषों के नेतृत्व में यह जमीन भी खरीदी गई थी. यह भवन गांधी स्मारक निधि एवं जयप्रकाश नारायण जी द्वारा किये गये दान-संग्रह से बनवाया गया था.’
उन्होंने आगे लिखा, ‘… भाजपाई प्रशासन द्वारा इसे अवैध बताकर कार्रवाई शुरू करना महात्मा गांधी जी के विचारों और उनकी विरासत पर एक और हमला करने की कोशिश है. हम इस अत्यंत शर्मनाक कार्रवाई की घोर निंदा करते हैं और संकल्प लेते हैं कि महात्मा गांधी की विरासत पर हो रहे हर हमले के खिलाफ डटकर खड़े रहेंगे. हमारे देश के महानायकों और राष्ट्रीय विरासत पर भाजपाई हमले को देश की जनता कभी बर्दाश्त नहीं करेगी.’
कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष और पूर्व विधायक अजय राय ने भी केंद्र सरकार को निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा, ‘विदेशों में गांधी जी को नमन और भारत में गांधी जी के बनाए हर संस्थान को मिटाने की आपाधापी… मैं प्रधानमंत्री जी से मांग करता हूं कि वो सार्वजनिक जगहें, जिसे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने जनता के हित के लिए बनाया, उसे न तोड़ा जाए.’
अमर उजाला के मुताबिक, बुधवार को बयान जारी करते हुए उन्होंने कहा, ‘गांधी को न सही कम से कम जयप्रकाश नारायण की विरासत को तो बख्श देते. उन्होंने भाजपा को आड़े हाथ लिया और कहा कि यह सरकार गांधी-जयप्रकाश की विरासत की संस्थाओं पर बुलडोजर चलवाने से बाज आए, क्योंकि इस पाप के लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा. सर्व सेवा संघ जैसी संस्थाएं उनके रचनात्मक विचारों की संवाहक रहीं हैं. इस विरासत का ध्वस्तीकरण रोकने के लिए महात्मा के पौत्र राजमोहन गांधी ने भी प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की अपील की है. सरकार से हमारा भी निवेदन है कि लंबे समय से स्थापित उस संस्थान पर बुलडोजर चलाने के फैसले पर पुनर्विचार करें.’
(वाराणसी से ऐश्वर्य पांडे के इनपुट के साथ)