एनडीए की सहयोगी एनपीपी ने समान नागरिक संहिता को भारत की भावना के ख़िलाफ़ बताया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा और नेशनल पीपुल्स पार्टी प्रमुख ने कहा कि पूर्वोत्तर में अनूठी संस्कृति और समाज है और वह ऐसे ही रहना चाहेंगे. उन्होंने यह भी जोड़ा कि विविधता भारत की ताक़त है.

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा. (फोटो साभार: फेसबुक/@conradksangma)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में समान नागरिक संहिता की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा और नेशनल पीपुल्स पार्टी प्रमुख ने कहा कि पूर्वोत्तर में अनूठी संस्कृति और समाज है और वह ऐसे ही रहना चाहेंगे. उन्होंने यह भी जोड़ा कि विविधता भारत की ताक़त है.

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा. (फोटो साभार: फेसबुक/@conradksangma)

नई दिल्ली: समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पुरजोर वकालत ने न केवल विपक्षी दलों के बीच बल्कि भारतीय जनता पार्टी के सहयोगियों के बीच भी भ्रम पैदा कर दिया है. मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा ने इसे भारत की भावना के खिलाफ बताया है.

नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) प्रमुख ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि विविधता भारत की ताकत है और उनकी पार्टी को लगता है कि यूसीसी अपने मौजूदा स्वरूप में इस विचार के खिलाफ जाएगी.

मालूम हो कि समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे.

समान नागरिक संहिता को सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो. वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, संगमा ने कहा कि पूर्वोत्तर में एक अनूठी संस्कृति और समाज  है और वह ऐसा ही रहना चाहेंगे.

हालांकि, एनपीपी प्रमुख ने कहा कि यूसीसी मसौदे की वास्तविक सामग्री को देखे बिना विवरण देना मुश्किल होगा. यह देखते हुए कि मेघालय में मातृसत्तात्मक समाज है और पूर्वोत्तर में विभिन्न संस्कृतियां हैं. उन्होंने जोर देकर कहा, ‘इन्हें बदला नहीं जा सकता. इसलिए हम चाहेंगे कि वह बनी रहे, और हम नहीं चाहेंगे कि उसे छुआ जाए. इसलिए हमें देखना होगा कि किस तरह का विधेयक सामने आता है.’

उन्होंने कहा, ‘एनपीपी को लगता है कि यूसीसी भारत के एक विविधतापूर्ण राष्ट्र होने के विचार के खिलाफ है, जिसमें विविधता हमारी ताकत और पहचान है.’

अखबार के अनुसार, इस बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता और कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति के प्रमुख सुशील मोदी ने शुक्रवार को कहा कि समिति 3 जुलाई को अपनी बैठक में यूसीसी के मुद्दे पर सभी हितधारकों के विचार मांगेगा.

समिति की बैठक गैर-राजनीतिक है क्योंकि पैनल में सभी राजनीतिक दलों के सदस्य हैं.

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (27 जून) को मध्य प्रदेश में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ अभियान के तहत भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यूसीसी की पुरजोर वकालत करते हुए सवाल किया था कि ‘दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? अगर लोगों के लिए दो अलग-अलग नियम हों तो क्या एक परिवार चल पाएगा? तो फिर देश कैसे चलेगा? हमारा संविधान भी सभी लोगों को समान अधिकारों की गारंटी देता है.’

विपक्षी दलों ने उनके बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं. मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री की यूसीसी पर टिप्पणी को गैर-जरूरी कहा था.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने कहा कि उनकी पार्टी सरकार द्वारा कुछ चीजें स्पष्ट करने के बाद यूसीसी पर अपना रुख तय करेगी. एनसीपी प्रमुख ने कहा कि सिखों, जैनियों और ईसाइयों जैसे समुदायों के रुख का पता लगाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि उन्हें पता चला है कि सिख समुदाय का एक अलग दृष्टिकोण है.

पवार ने कहा, ‘वे यूसीसी का समर्थन करने के मूड में नहीं हैं… इसलिए सिख समुदाय (उसके विचार) के संज्ञान के बिना यूसीसी पर निर्णय लेना उचित नहीं होगा.’

आम आदमी पार्टी ने यूसीसी को अपना ‘सैद्धांतिक’ समर्थन दिया, जबकि शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी पर यूसीसी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पंजाबियों को गुमराह करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए अपना रुख स्पष्ट करने को कहा.

अकाली दल के नेता दलजीत सिंह चीमा ने इसे सरासर पाखंड और बिना किसी नैतिकता के राजनीतिक औचित्य करार देते हुए कहा, ‘यह स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी आलाकमान ने अपनी पंजाब इकाई, मुख्यमंत्री या यहां तक ​​कि बिना किसी को शामिल किए देश में यूसीसी के कार्यान्वयन का समर्थन करने का निर्णय लिया है. न ही सिख समुदाय को विश्वास में लिया गया.’

इस बीच, महाराष्ट्र कांग्रेस ने प्रस्तावित यूसीसी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति बालचंद्र मुंगेकर के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया है.

राज्य इकाई के प्रमुख नाना पटोले द्वारा गठित नौ सदस्यीय समिति में पत्रकार और राज्यसभा सदस्य कुमार केतकर, वरिष्ठ नेता वसंत पुरके, हुसैन दलवई, अनीस अहमद, किशोरी गजभिये, अमरजीत मन्हास, जेनेट डिसूजा और रवि जाधव भी शामिल होंगे.

हालांकि, र्टी लाइन के खिलाफ जाते हुए हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने शुक्रवार को समान नागरिक संहिता के लिए अपना पूर्ण समर्थन दिया और इसके राजनीतिकरण नहीं करने का आग्रह किया.

फेसबुक पर कांग्रेस नेता ने कहा, ‘मैं समान नागरिक संहिता का पूरा समर्थन करता हूं जो भारत की एकता और अखंडता के लिए जरूरी है, लेकिन इसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए.’

सिंह हिमाचल प्रदेश कांग्रेस प्रमुख प्रतिभा सिंह के बेटे हैं. उनके दिवंगत पिता वीरभद्र सिंह छह बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे.

वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि समान नागरिक संहिता भाजपा का चुनावी एजेंडा है. केरल के मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया, ‘पूरी बहस को समान नागरिक संहिता के ईर्द-गिर्द सीमित करना संघ परिवार का चुनावी हथकंडा है ताकि सांप्रदायिक विभाजन को गहरा करने के लिए अपने बहुसंख्यकवादी एजेंडे को बढ़ा सके. हमें भारत के बहुलवाद को कमतर करने की कोशिश का विरोध करना चाहिए और समुदाय के भीतर ही लोकतांत्रिक चर्चा से सुधार का समर्थन करना चाहिए.’

पिनाराई के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए केरल भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने कहा कि सीपीआई (एम) एक मुस्लिम पार्टी बन गई है क्योंकि उसने यूसीसी का विरोध किया है.

उन्होंने कहा, ‘सीपीआई (एम) एक मुस्लिम पार्टी बन गई है. इसका ताजा उदाहरण समान नागरिक संहिता के खिलाफ पिनाराई विजयन का रुख है.’

गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेशअसमकर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.

उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.