उत्तराखंड में इस साल 22 अप्रैल से शुरू हुए चारधाम और हेमकुंड साहिब तीर्थ यात्रा के मार्गों पर भक्तों को ले जाने वाले कुल 115 खच्चर और घोड़ों की मौत हुई है. इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है.
नई दिल्ली: उत्तराखंड में इस साल 22 अप्रैल से जब चार हिमालयी तीर्थस्थलों की तीर्थयात्रा शुरू हुई, तब से चारधाम और हेमकुंड साहिब मार्गों पर भक्तों को ले जाने वाले कुल 115 खच्चर और घोड़ों की मौत हुई है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, केदारनाथ के रास्ते में अब तक कम से कम 90 खच्चरों की मौत हो चुकी है, जहां से श्रद्धालु 16 किलोमीटर पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचते हैं. इसी तरह उत्तरकाशी में यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिरों की ओर जाने वाले मार्गों पर 17 घोड़ों की मौत हो गई है.
उत्तराखंड पशुपालन विभाग से उपलब्ध आंकड़ों से पता चला है कि चमोली जिले में बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब मार्गों पर अन्य आठ जानवरों की मौत हुई है.
इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए कहा है.
अदालत पशु अधिकार कार्यकर्ता गौरी मौलेखी की जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि तीर्थयात्रा मार्गों पर ले जाने के लिए जानवरों पर अत्यधिक बोझ डाला जा रहा है.
हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आरसी खुल्बे ने उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और चारधाम यात्रा मार्ग पर अन्य जिलों के जिलाधिकारियों को भी नोटिस जारी किया.
मौलेखी ने अपनी याचिका में कहा कि उत्तराखंड में तीर्थयात्रा के लिए यात्रियों को ले जाने के लिए 20,000 से अधिक घोड़ों और खच्चरों का इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने दावा किया कि इनमें से अधिकतर घोड़े और खच्चर बीमार हैं और उन पर क्षमता से अधिक बोझ डाला जा रहा है.
जनहित याचिका में आगे दावा किया गया कि इन जानवरों के लिए न तो कोई पशु चिकित्सक उपलब्ध कराया गया है और न ही उचित चारा या पानी उपलब्ध होता है. श्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ के कारण अतिरिक्त दबाव बढ़ गया है, जिससे जानवरों की मौत हो रही है.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि मृत जानवरों को नदियों में फेंक दिया जाता है, जिससे जल प्रदूषित हो रहा है. अदालत जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 22 जुलाई को करेगी.
23 जून को मौलेखी ने भी राज्य पशुपालन को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि घोड़ा मालिक मानदंडों का उल्लंघन कर रहे हैं और जानवरों की भारी संख्या में मौतों के पीछे जानवरों के अत्यधिक शोषण, चोट और इलाज की कमी मुख्य कारक हैं.
उन्होंने अधिकारियों का ध्यान इस ओर भी आकर्षित किया था कि घोड़े के मालिक गौरी मौलेखी बनाम उत्तराखंड राज्य और उर्वशी शोभना कचरी बनाम भारत संघ और अन्य मामलों में अदालतों द्वारा जारी हाईकोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं.
मौलेखी ने पिछले साल भी अदालत का रुख किया था, जिसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को घोड़ों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों की सूची देने के निर्देश जारी किए थे.
मौलेखी के अनुसार, गौरीकुंड में घोड़ों की दैनिक स्वास्थ्य जांच नहीं की जा रही है, शिकायतों के बाद घोड़ों को बचाया नहीं जा रहा है, जानवरों पर नशीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इस बीच, पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. प्रेम कुमार ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि जानवरों पर हिंसा को रोकने के लिए मानदंडों का सख्ती से पालन किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘हमारी टीमें यात्रा मार्ग पर चौबीसों घंटे काम कर रही हैं और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ तत्काल मामले दर्ज किए जा रहे हैं. कुल 212 खच्चर मालिकों के चालान काटे गए हैं. अब तक 15 अपराधियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.’
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दो महीनों में 26,500 घोड़ों की स्वास्थ्य जांच की गई, जिनमें से 3,600 का उचित इलाज किया गया और 800 जानवरों को यात्रा मार्गों पर तैनात करने से रोक दिया गया.
अनुमान के मुताबिक, पिछले साल चारधाम यात्रा के दौरान करीब 300 जानवरों की मौत हो गई थी.
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