ओडिशा: पिछले तीन महीनों में हाथियों के साथ संघर्ष में 57 लोगों की मौत

ओडिशा में इस साल के पहले तीन महीनों में जंगली हाथियों के साथ संघर्ष में मानव हताहतों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. ढेंकनाल ज़िले को हाथियों के उत्पात का सबसे ज़्यादा ख़ामियाजा भुगतना पड़ा है, जहां 14 लोग मारे गए. इसके बाद अंगुल में 13, क्योंझर में 8, मयूरभंज और संबलपुर जिलों में पांच-पांच लोग मारे गए.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

ओडिशा में इस साल के पहले तीन महीनों में जंगली हाथियों के साथ संघर्ष में मानव हताहतों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. ढेंकनाल ज़िले को हाथियों के उत्पात का सबसे ज़्यादा ख़ामियाजा भुगतना पड़ा है, जहां 14 लोग मारे गए. इसके बाद अंगुल में 13, क्योंझर में 8, मयूरभंज और संबलपुर जिलों में पांच-पांच लोग मारे गए.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: ओडिशा में 2023-24 के पहले तीन महीनों में जंगली हाथियों के साथ संघर्ष में इंसानों की मौत की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जिसमें पिछले साल की समान अवधि में 38 मौतों की तुलना में इस साल 57 मौतें हुई हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अप्रैल, मई और जून में, जब आम, बेल और कटहल के बगीचों पर हमला करने वाले हाथियों के साथ मानव संघर्ष आम तौर पर अपने चरम पर होता है, इस वर्ष यह संघर्ष पिछले 10 वर्षों में सबसे घातक रही है. इस तिमाही में मानव-हाथी मुठभेड़ की संख्या में 26 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप पहले से कहीं अधिक नुकसान हुआ है.

वन्यजीव विशेषज्ञ बिस्वजीत मोहंती ने कहा कि एशियाई हाथी खाद्य फसलों की ओर आकर्षित होते हैं, क्योंकि वे जंगली पौधों की तुलना में अधिक स्वादिष्ट, अधिक पौष्टिक और कम सुरक्षा वाले होते हैं. उन्होंने कहा कि हाथियों द्वारा फसल को नुकसान राज्यों में मानव-हाथी संघर्ष का मूल कारण है.

मोहंती ने कहा, ‘एक हाथी प्रतिदिन लगभग 200 किलोग्राम भोजन खाता है और एक अकेला हाथी बहुत ही कम समय में एक हेक्टेयर फसल को नष्ट कर सकता है और एक छोटा झुंड रात भर में एक किसान की आजीविका को नष्ट कर सकता है.’

आधिकारिक डेटा के अनुसार, तीन महीनों में हुई 57 मानव मौतों में से 14 आम के बगीचों में, 3 काजू के बागानों में, 7 जब लोग शौच के लिए बाहर गए थे, 7 गांव में हाथियों के घुसने दौरान, 3 खेतों की फसल में घुसने के दौरान और 8 मौतें तब हुईं, जब लोग तेंदू, साल के पत्ते, महुआ के फल, मशरूम और जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगलों में गए थे.

रिपोर्ट के अनुसार, ढेंकनाल जिले को हाथियों के उत्पात का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ा है, जहां 14 लोग मारे गए. इसके बाद अंगुल में 13, क्योंझर में 8, मयूरभंज और संबलपुर जिलों में पांच-पांच लोग मारे गए.

अंगुल जिले में हुईं 13 मौतों में से, बंटाला वन रेंज के ग्रामीणों को तीन महीनों में हाथियों के क्रोध का सबसे अधिक सामना करना पड़ा, जिसमें 12 मुठभेड़ दर्ज की गईं, जिनमें नौ लोग मारे गए और पांच घायल हो गए.

मोहंती ने कहा, ‘ताड़ के फल, जो जून और जुलाई के दौरान हाथियों के भोजन का प्रमुख स्रोत होते हैं, तमिलनाडु में अंतरराज्यीय व्यापार के लिए ताड़ के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई के कारण दुर्लभ हो गए हैं. पिछले तीन वर्षों में ढेंकनाल, अंगुल और देवगढ़ जिलों में हजारों ताड़ के पेड़ नष्ट हो गए हैं, क्योंकि संगठित लकड़ी व्यापारी वहां डेरा डालते हैं और पेड़ों को नष्ट कर देते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘तीव्र वृद्धि से पता चलता है कि इस वर्ष मानव मृत्यु की संख्या पिछले वर्ष की 146 मानव मृत्यु से काफी अधिक हो सकती है.’

अगस्त 2017 में की गई हाथियों की आखिरी जनगणना के अनुसार, कर्नाटक, असम, केरल और तमिलनाडु की तुलना में हाथियों की कम संख्या वाला राज्य होने के बावजूद ओडिशा के पास सभी राज्यों से सबसे अधिक मानव मृत्यु का संदिग्ध रिकॉर्ड है.

रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा में 1,976 हाथी हैं, जबकि कर्नाटक में 6,049, असम में 5,719, केरल में 3,054 और तमिलनाडु में इनकी संख्या 2,761 है.

रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले साल लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि 2019-20 और 2021-22 के बीच देश में हाथियों द्वारा 1,579 लोग मारे गए, जिनमें 322 मौतों के साथ ओडिशा इस सूची में शीर्ष पर है. इसके बाद झारखंड (291), पश्चिम बंगाल (240), असम (229), छत्तीसगढ़ (183) और तमिलनाडु (152) हैं.

भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी की बेलिंडा राइट के अनुसार, मानव-हाथी संघर्ष के कारण मानव मौतों में वृद्धि संभवतः झुंड में कुछ हाथियों की मौजूदगी के कारण है.

उन्होंने कहा, ‘मानव-हाथी संघर्ष के एक बड़े प्रतिशत में हाथी शामिल होते हैं. अगर हाथियों की पहचान की जाए और विशेषज्ञ ट्रैकर्स द्वारा लगातार उन पर नज़र रखी जाए तो इन टकरावों को रोकना संभव है.’ उन्होंने कहा, ‘वन विभाग को चुपचाप नहीं बैठना चाहिए और लोगों के इस तरह से मरने की अनुमति नहीं देनी चाहिए.’

ओडिशा के मुख्य वन्यजीव वार्डन एसके पोपली ने कहा, ‘राज्य वन विभाग ने कई उपाय किए हैं, जिसमें ‘गज साथी’ (हाथी मित्र) नामक एक योजना की शुरुआत भी शामिल है, जिसमें वन अधिकारियों द्वारा प्रशिक्षित स्वयंसेवक मानव-हाथी संघर्ष को कम करने में मदद कर रहे हैं.

पोपली ने कहा, ‘1,177 गांवों में 5,400 से अधिक स्वयंसेवक लगे हुए है. हमने ‘जन सुरक्षा गज रक्षा’ योजना भी शुरू की है, जिसके तहत गांवों के आसपास 90 प्रतिशत लागत राज्य द्वारा वहन की जाएगी. हमने हाथी के हमले के कारण मानव मृत्यु के मामले में अनुग्रह राशि को 4 लाख रुपये से बढ़ाकर 6 लाख रुपये कर दिया है.’

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