क्यों मोदी का भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ होने का दावा सफ़ेद झूठ है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक तरफ विपक्ष के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते भाषण देते हैं, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के उन्हीं 'भ्रष्टाचारी' नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके पद, प्रतिष्ठा और सम्मान देते हैं.

नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक तरफ विपक्ष के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते भाषण देते हैं, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के उन्हीं ‘भ्रष्टाचारी’ नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके पद, प्रतिष्ठा और सम्मान देते हैं.

नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

‘कुछ लोग सिर्फ अपने (राजनीतिक) दल के लिए जीते हैं, दल का ही भला करना चाहते हैं. वो ये सब इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें भ्रष्टाचार का, कमीशन का , मलाई खाने का, कट मनी का हिस्सा मिलता है. उन्होंने जो रास्ता चुना है, उसमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती… अगर उनकी घोटालों की गारंटी है तो मोदी की भी एक गारंटी है, हर घोटालेबाज पर कार्रवाई की गारंटी.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 27 जून को यह शब्द मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहे थे और विपक्ष पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए ‘विपक्षी एकता’ को विपक्षी नेताओं द्वारा खुद को सलाखों के पीछे जाने से बचाने की एक कवायद करार दिया था. इस दौरान वे बिहार की राजधानी पटना में हुई विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक को लेकर कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे.

भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई का बिगुल फूंकते हुए उन्होंने कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों का नाम लेते हुए उनके द्वारा किए गए कथित घोटालों को भी गिनाया था, इनमें एक नाम महाराष्ट्र की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का भी था.

चुनाव के मुहाने पर खड़े मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उनके द्वारा भरी गई हुंकार चार दिन बाद ही ‘जुमला’ तब साबित हो गई जब महाराष्ट्र में एनसीपी के भ्रष्टाचार के आरोपी नेता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामकर सरकार में शामिल हो गए.

भोपाल में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ गरजते हुए एनसीपी के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा था,

‘एनसीपी पर भी क़रीब-क़रीब 70 हजार करोड़ रुपये के घोटालों का आरोप है. महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक घोटाला, महाराष्ट्र सिंचाई घोटाला, अवैध खनन घोटाला. इनकी लिस्ट बहुत लंबी है.’

चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में जहां प्रधानमंत्री पार्टी के सबसे निचले पायदान के (बूथ स्तरीय) कार्यकर्ताओं को मतदाताओं के घर-घर जाकर घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों का असली चेहरा सामने रखने के लिए कह रहे थे, वहीं चार दिनों बाद ही महाराष्ट्र में उनके सुर 360 डिग्री के कोण पर ऐसे बदले कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों के स्वागत में सत्ता रूपी ‘रेड कार्पेट’ बिछा दिया और उन्हें राज्य सरकार में मंत्री बना दिया.

भोपाल में जिस महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक (एमएससीबी) घोटाले और सिंचाई घोटाले को लेकर मोदी ने एनसीपी पर निशाना साधा था, उन्हीं घोटालों के आरोपी अजित पवार को महाराष्ट्र की भाजपा-शिवसेना सरकार में उपमुख्यमंत्री बना दिया गया है.

पवार के साथ आए 8 विधायक भी सरकार में मंत्री बनाए गए हैं, जिनमें से 3 पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं और वे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निशाने पर रहे हैं. उनके नाम छगन भुजबल, हसन मुश्रीफ और अदिति तटकरे हैं.

पवार की ही बात करें, तो एक वक़्त भाजपा का चुनावी अभियान उनके भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द ही घूमता था और भरे मंच से महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे प्रमुख चेहरे एवं वर्तमान उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उन्हें जेल में डालकर चक्की पिसवाने की बात कह चुके थे. ज्यादा समय नहीं बीता जब ईडी ने एमएससीबी घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में पवार की चीनी मिल जब्त कर ली थी. वहीं, आयकर विभाग द्वारा भी पवार के रिश्तेदारों और सहयोगियों के यहां छापेमारी की गई थी और कथित तौर पर पवार से जुड़ी 1,000 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गई थी.

छगन भुजबल तो मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले में दो साल जेल भी काटकर आ चुके हैं और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े और भी मामले अदालतों में लंबित हैं.

हसन मुश्रीफ भी ईडी के निशाने पर हैं. बीते दिनों ईडी ने उनके यहां छापेमारी भी की थी और मुश्रीफ को गिरफ्तारी से बचने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी. उनके तीनों बेटे भी इस भ्रष्टाचार में आरोपी हैं. मामला उनकी चीनी मिल से जुड़ा है. भाजपा के ही नेता किरीट सोमैया ने मुश्रीफ पर बेनामी संपत्तियों के सहारे 100 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया था.

इसी तरह, एनसीपी नेता सुनील तटकरे की बेटी अदिति तटकरे भी हालिया दल-बदल में शामिल हैं. सिंचाई घोटाले में सुनील भी एंटी करप्शन ब्यूरो के निशाने पर रहे थे.

वहीं, एनसीपी नेताओं के शपथ ग्रहण समारोह में पार्टी नेता प्रफुल्ल पटेल भी शामिल थे. वह भी ईडी के रडार पर रह चुके हैं. केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार, जिसके घोटालों को मोदी गिनाते नहीं थकते, में पटेल केंद्रीय उड्डयन मंत्री थे. इस दौरान विमानों की खरीद समेत उनके द्वारा लिए गए विभिन्न फैसलों को लेकर उनकी भूमिका ईडी की जांच के दायरे में आई थी. इसके अलावा ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में भी पटेल को निशाने पर लिया था.

बहरहाल, भोपाल में मोदी ने ज़मानत पर बाहर विपक्ष के घोटालेबाज और भ्रष्टाचारी नेताओं पर भी तंज कसा था लेकिन महाराष्ट्र की तरफ नज़र घुमाते ही पाते हैं कि घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोप में जमानत पर बाहर भुजबल और मुश्रीफ, विपक्ष के ये दोनों नेता, अब भाजपा सरकार में मंत्री हैं.

लेकिन, यह चौंकाता नहीं है क्योंकि 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से ऐसा बार-बार हो रहा है. एक तरफ मोदी विपक्ष के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए चुनावी भाषण देते हैं और जनता के सामने अपनी छवि एक ईमानदार नेता के तौर पर प्रस्तुत करते हैं, तो दूसरी तरफ विपक्ष के उन्हीं भ्रष्टाचारी नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके पद, प्रतिष्ठा और पूरा सम्मान देते हैं, जिन्हें जेल भेजने की बात किया करते थे, उन्हें एक राज्य का मुख्यमंत्री (हिमंता बिस्वा शर्मा) तक बना देते हैं.

गौरतलब है कि मोदी ने भोपाल में दिए अपने भाषण में कहा था, ‘विपक्षी दलों की घोटाले (करने) की गारंटी है, तो मेरी भी एक गारंटी है- हर घोटालेबाज पर कार्रवाई की गारंटी.’

लेकिन, सवाल उठता है कि क्या घोटालेबाजों पर मोदी की कार्रवाई की परिभाषा यह है कि उन्हें भाजपा में शामिल करके उन पर लगे घोटाले के आरोपों से उन्हें मुक्त कर दिया जाए!

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भाजपा ने भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों के साथ समझौता किया

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से देशभर में भाजपा ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दोहरा चरित्र अपना रखा है. एक तरफ मोदी ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का नारा देते हैं, तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों के लिए अपनी पार्टी में प्रवेश के द्वार खोल देते हैं. जिनके घोटालों को मुद्दा बनाकर वे चुनाव लड़ते हैं, उन्हें ही अपनी पार्टी में लाकर बड़े पदों पर बैठा देते हैं.

हिमंता बिस्वा शर्मा आज भाजपा शासित असम के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन कुछ सालों पहले तक वह कांग्रेस का हिस्सा थे और असम की तरुण गोगोई सरकार में एक शक्तिशाली मंत्री थे. भाजपा ने एक बुकलेट निकालकर उनके भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था. उन पर जल वितरण परियोजना में रिश्वत (लुईस बर्जर घोटाला) लेने का आरोप लगा था. साथ ही, पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित शारदा चिटफंड घोटाले में भी उनका नाम सामने आया था और सीबीआई ने उनसे पूछताछ भी की थी. भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उनके खिलाफ लगे सभी आरोपों की जांच की भी बात कही थी, लेकिन शर्मा ने भाजपा की सदस्यता ले ली और वह केंद्र में मंत्री बना दिए गए. भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्यों के लिए प्रमुख रणनीतिकार बना दिया और अब वह असम के मुख्यमंत्री हैं.

भोपाल में मोदी पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस पर भी गरजे थे. उन्होंने कहा था,

‘टीएमसी पर 23,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटालों के आरोप हैं. रोज वैली घोटाला, शारदा घोटाला, शिक्षक भर्ती घोटाला, गो तस्करी घोटाला, और कोयला तस्करी घोटाला. बंगाल के लोग ये घोटाला कभी भूल नहीं सकते.’

भले ही बंगाल के लोग इन घोटालों को न भूलें, लेकिन मोदी जरूर समय-समय पर इन घोटालों को भूल जाते हैं (खासकर कि तब जब चुनावी/सत्ताई लाभ की बात आती है), यही कारण है कि शारदा घोटाले के मुख्य आरोपी हिमंता बिस्वा शर्मा, सुवेंदु अधिकारी, मुकुल रॉय और सोवन चटर्जी न सिर्फ भाजपा में शामिल हो चुके हैं बल्कि बड़े पदों पर भी बैठाए गए हैं.

वहीं, कोयला तस्करी घोटाले के आरोपी जितेंद्र तिवारी भी तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं. तिवारी की पार्टी में एंट्री पर मोदी सरकार के ही तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने इसका विरोध जताया था और कहा था कि तिवारी सीबीआई द्वारा जांचे जा रहे कोयला घोटाले में संलिप्त हैं.

महाराष्ट्र में एनसीपी में दोफाड़ के बाद आम आदमी पार्टी द्वारा जारी एक पोस्टर. (फोटो साभार: ट्विटर/@SanjayAzadSln)

मोदी और भाजपा इन घोटालों का इस्तेमाल अपने मनमुताबिक करते हैं. जब विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने की बात आती है तो वे इन घोटालों को जनता के बीच ले जाते हैं, और जब बात ‘सत्ता में सौदेबाजी’ की हो तो उन्हें घोटालों और भ्रष्टाचार से कोई परहेज नहीं है. द वायर  से बात करते हुए जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी इस बात की पुष्टि दो उदाहरणों के साथ की थी. साथ ही, उन्होंने कहा था;

नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार से नफ़रत नहीं है, भ्रष्ट नेताओं के बारे में बताने के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं किया.’

मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ गरजते हुए मोदी यह बात भी भूल गए कि देश में शिक्षा जगत का सबसे बड़ा घोटाला ‘व्यापमं’ मध्य प्रदेश में ही भाजपा के शासन में हुआ था, जिसकी जांच के दौरान आधा सैकड़ा से अधिक लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत का रहस्य अब तक अनसुलझा है.

मोदी यह भी भूल गए कि मध्य प्रदेश में जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत की बैशाखी के सहारे वे सरकार चला रहे हैं, उन्हीं सिंधिया पर उनकी ही पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रभात झा हर मंच से प्रदेश का सबसे बड़ा ‘भू माफिया’ होने का आरोप लगाते थे.

इसलिए, भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री का यह दोहरा चरित्र विपक्ष के निशाने पर भी रहा है. बीते फरवरी माह में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने मोदी के ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ नारे पर तंज कसते हुए कुछ ऐसे नेताओं की सूची जारी की थी, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप होने के बावजूद भाजपा ने उन्हें पार्टी में शामिल कर लिया.

उक्त सूची में पश्चिम बंगाल के ही एक अन्य नारदा घोटाले को लेकर सुवेंदु अधिकारी का भी जिक्र था और हिमंता बिस्वा शर्मा का भी जिक्र था, और बताया गया था कि भाजपा में शामिल होने के बाद इनके खिलाफ जांच रोक दी गई.

साथ में, थरूर की सूची में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे, शिवसेना (शिंदे गुट) की सांसद भावना गवली और विधायक यामिनी जाधव व उनके पति यशवंत जाधव, प्रताप सरनाईक और बीएस येदियुरप्पा का भी नाम था.

नारायण राणे 2018 में भाजपा में शामिल हुए थे और उन्हें राज्यसभा सांसद बना दिया गया था, जबकि भाजपा के ही सांसद किरीट सौमेया ने उन पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए थे. वह ईडी और सीबीआई जांच के दायरे में रहे थे. उनके खिलाफ ज़मीन डिनोटिफिकेशन को लेकर राज्य सरकार की भी जांच चल रही थी. न सिर्फ राणे, बल्कि उनके बेटे- निलेश और नितेश- और पत्नी पर भी भ्रष्टाचार एवं आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप थे. वर्तमान में राणे भ्रष्टाचार के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात करने वाली मोदी सरकार में मंत्री हैं.

शिवसेना के शिंदे गुट के साथ भाजपा का दामन थामने से पहले सांसद भावना गवली भी ईडी के निशाने पर थीं. उन पर अपने ट्रस्ट के जरिये घोटाले का आरोप था. ईडी ने उनके ठिकानों पर छापेमारी भी की थी और उनके करीबी सईद खान को गिरफ्तार कर लिया था.

शिवसेना के शिंदे गुट की विधायक यामिनी जाधव भी अपने पति के चलते ईडी के निशाने पर थीं. बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) की स्थायी समिति के अध्यक्ष रहे उनके पति यशवंत जाधव पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) का उल्लंघन करने के चलते ईडी का शिकंजा कसा था और जिसके चलते विधायक और उनके पति से जुड़ी संपत्तियां ईडी ने जब्त कर ली थीं.

शिवसेना के प्रताप सरनाईक पर भी ईडी का शिकंजा था और नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) में 5,600 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप था. ईडी ने उनकी संपत्ति भी जब्त की थीं. शिंदे गुट के साथ महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनवाते ही सरनाईक भ्रष्टाचार-मुक्त हो गए.

महाराष्ट्र के पड़ोसी राज्य कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर तो इतने गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप थे कि उन्हें मुख्यमंत्री पद तक छोड़ना पड़ा था और तुरंत जेल भी जाना पड़ा. यही आरोप उनके भाजपा छोड़ने का भी कारण बने और उन्होंने अपना स्वयं का दल बना लिया. जमीन और खनन घोटाले में बार-बार जेल गए येदियुरप्पा को भाजपा ने फिर पार्टी में एंट्री दे दी और उन्हें जोड़-तोड़ की राजनीति करके राज्य का मुख्यमंत्री भी बना दिया.

कर्नाटक में ही बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं को भी भाजपा ने हजारों करोड़ के घोटाले के बावजूद पूरे सम्मान से नवाजा और पार्टी के टिकट पर चुनाव भी लड़ाया.

भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों को पार्टी में लाकर संरक्षण प्रदान करने की भाजपा की नीति का देश के कोने-कोने में भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे नेताओं ने लाभ उठाया है.

उत्तर प्रदेश में रीता बहुगुणा जोशी भी कांग्रेस छोड़कर जब भाजपा में आई थीं तो अपने साथ एक धोखाधड़ी का मामला लेकर आई थीं, जो उनके इलाहाबाद के महापौर रहने के दौरान का था. बीते दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने यह केस वापस ले लिया.

इसी तरह, बीती सदी के सबसे चर्चित घोटालों में से एक दूरसंचार घोटाले एवं भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में जेल की सजा पाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम को भी 2017 में भाजपा में शामिल कर लिया गया था, जबकि एक समय दूरसंचार घोटाले पर भाजपा ने ही काफी हो-हल्ला मचाया था और हफ्तों तक संसद नहीं चलने दी थी.

ज्यादा पीछे न जाएं तो हालिया एक उदाहरण बिहार से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का भी है. बीते मई माह में भाजपा में शामिल हुए आरसीपी सिंह को पिछले साल भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते तब जनता दल (यू) से इस्तीफा देना पड़ा था, जब पार्टी ने उनसे आरोपों के संबंध में स्पष्टीकरण मांग लिया था.

विडंबना यह है कि भोपाल के मंच से जिस महागठबंधन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर मोदी निशाना साध रहे थे, उसी महागठबंधन के एक घटक दल ने अपने नेता से उस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर स्पष्टीकरण मांग लिया था, लेकिन खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ बताने वाले मोदी के दल ने उस भ्रष्टाचारी नेता को अपना बना लिया.

बहरहाल, बिहार के ही पड़ोसी राज्य झारखंड में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के सहयोग से बनी मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में हुए दवा घोटाले के वक्त भानु प्रताप शाही स्वास्थ्य मंत्री थे. इस घोटाले में उनका भी नाम आया था. इसके अलावा आय से अधिक संपत्ति होने का मामला भी उन पर दर्ज था. दोनों की जांच सीबीआई के हवाले थी. इस घोटाले पर हाय-तौबा मचाने वाली भाजपा ने झारखंड में 2019 के विधानसभा चुनावों से पहले शाही को पार्टी में शामिल कर लिया और आज वे भाजपा विधायक हैं.

एक और उदाहरण महाराष्ट्र के भाजपा नेता प्रवीण डारेकर का है. उन पर मुंबई कोऑपरेटिव बैंक से जुड़े 2,000 करोड़ रुपये के घोटाले में संलिप्तता का आरोप है. 2019 में वह भी भाजपा में शामिल हो चुके हैं और वर्तमान में मुंबई जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (एमडीसीसीबी) के अध्यक्ष हैं.

मोदी द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ दिए भाषण में तमिलनाडु का जिक्र करते हुए कहा गया था, ‘तमिलनाडु में देखिए… डीएमके पर अवैध तरीके से सवा लाख करोड़ रुपये की संपत्ति बनाने का आरोप है.’

लेकिन, मोदी शायद फिर भूल गए कि तमिलनाडु में भाजपा के गठबंधन सहयोगी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) की शीर्ष नेता जयललिता और उनकी सहयोगी वीके शशिकला ने भ्रष्टाचार के मामलों में जेल की सजा काटी थी. इसका मतलब यह निकलता है कि मोदी तब भ्रष्टाचार से मुंह मोड़ लेते हैं जब भ्रष्टाचारी उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में सहयोगी बन जाएं.

बहरहाल, इतने उदाहरण यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी की गर्जना केवल एक ‘जुमला’ मात्र थी और सत्यपाल मलिक का उनको लेकर यह कहना कि ‘मोदी को भ्रष्टाचार से नफरत नहीं है’, सही ही जान पड़ता है.

अंत में, मोदी ने भोपाल में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यह भी कहा था,

‘…मैं तो कहूंगा कि भाजपा के किसी कार्यकर्ता को इन पार्टियों (विपक्षी दलों) का घोटाला मीटर बनाने की कोशिश करनी चाहिए. आप में से जो इनोवेटिव हो, इनके घोटालों का मीटर बना दीजिए.’

विपक्षी दलों के घोटालों का मीटर तो पता नहीं कौन कब बनाएगा, लेकिन फिलहाल उपरोक्त उदाहरणों को ‘विपक्षी दलों के घोटालेबाजों के भाजपा में शामिल होने’ का मीटर माना जा सकता है.