घटना मध्य प्रदेश के छतरपुर की है. दलित समुदाय के एक युवक की बीते 28 जून को शादी थी, लेकिन उसे अपनी बारात में घोड़ी पर बैठने के लिए स्थानीय पुलिस की मदद के लिए आवेदन देना पड़ा था, जिसमें बारात में बाधा डालने की धमकियों को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी.
भोपाल: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के भरतपुरा गांव में दलित समुदाय से आने वाले 25 वर्षीय लच्छी अहिरवार की शादी 28 जून, 2023 को हुई.
एक शांतिपूर्ण विवाह समारोह आयोजित करना कोई आसान उपलब्धि नहीं थी और इसके पीछे वो कारण नहीं थे, जो आमतौर पर बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजनों से जुड़े होते हैं.
शादी से एक दिन पहले जब परिवार आमतौर पर शादी की तैयारियों में व्यस्त होते हैं, लच्छी का परिवार बिजावर पुलिस थाने में एक आवेदन देने के लिए भाग-दौड़ कर रहा था. आवेदन में अगले दिन होने वाली उनकी शादी की बारात में बाधा डालने की धमकियों को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी.
लच्छी किस्मत वाले थे और पुलिस ने कार्रवाई में तत्परता दिखाई. नतीजतन, शादी बिना किसी हिंसा के संपन्न हो गई.
लच्छी के परिवार द्वारा महसूस किया गया डर कोई नई बात नहीं है. जातिगत भेदभाव पूरे राज्य में गहराई तक पैठ बनाए हुए है. जब भी दलितों की बारात जाती है और दूल्हा घोड़े पर सवार होता है तो उन्हें ‘उच्च जाति’ के पड़ोसियों द्वारा धमकी, प्रताड़ना और हमलों का सामना करना पड़ता है.
उदाहरण के लिए लच्छी की बारात भरगुआ गांव से घिनौची गांव तक निकली. इस दौरान वह घोड़ी की सवार थे, हालांकि इसके लिए उन्हें पुलिस से मदद लेनी पड़ी. बारात में पुलिस उनके साथ थी.
परिवार विशेष तौर पर इसलिए आशंकित था, क्योंकि हाल ही में पास के एक गांव में ‘उच्च’ जाति के ग्रामीणों ने एक दलित बारात पर पथराव किया था, इसलिए क्योंकि दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा था.
लच्छी के मामले में बिजावर पुलिस थाने के नगर निरीक्षक ने व्यक्तिगत रूप से विवाह स्थल का दौरा किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई अप्रिय घटना न हो.
इंस्पेक्टर स्वरूप उपाध्याय ने कहा, ‘हमने यह सुनिश्चित किया कि शादी के दौरान शांति बनी रहे. किसी भी संभावित व्यवधान का आकलन करने के लिए मैंने व्यक्तिगत रूप से विवाह स्थल का दौरा किया. हमने किसी भी व्यवधान को रोकने के लिए परिवार को सुरक्षा भी प्रदान की.’
छतरपुर में भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष मुकेश अहिरवार कहते हैं कि इलाके के कई गांवों में दलित महिलाओं को आज भी जूते-चप्पल पहनने या अपने घरों के बरामदे में बैठने की इजाजत नहीं है.
मुकेश ने कहा कि भले ही लच्छी की शादी शांति से निपट गई, लेकिन पुलिस आमतौर पर रविदास जयंती या अंबेडकर जयंती जैसे दलित कार्यक्रमों की अनुमति देने से इनकार कर देती है. हनुमान जयंती या राम नवमी की अनुमति तुलनात्मक रूप से जल्दी दी जाती है.
मुकेश का कहना है कि पुलिस दलितों पर अत्याचार के मामले दर्ज करने में भी ढिलाई बरतती है.
मुकेश ने दावा किया, ‘मेरे गांव बमीठा के पास एक दलित व्यक्ति की ‘उच्च’ जाति के लोगों के एक समूह ने हत्या कर दी था. पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की. ऐसा आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता अपने समर्थकों के खिलाफ मामले दर्ज नहीं होने देते हैं.’
इसके अतिरिक्त मुकेश ने छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री द्वारा दलितों को निशाना बनाते हुए लगातार दिए जाने वाले घृणा भाषणों (Hate Speech) के बारे में भी चिंता व्यक्त की.
गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध दर सबसे अधिक है और इसने उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को पीछे छोड़ दिया है.
2016 से 2020 तक पांच साल के औसत की तुलना में मध्य प्रदेश में 2021 में अनुसूचित जाति (एससी) के खिलाफ अपराध दर में चिंताजनक वृद्धि देखी गई थी.
इस बीच मध्य प्रदेश के सीधी जिले में कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक नेता द्वारा एक आदिवासी युवक पर पेशाब करने का एक बेहद ही अमानवीय घटनाक्रम सामने आया है. आरोप का नाम प्रवेश शुक्ला बताया जा रहा है. उन्हें फिलहाल गिरफ्तार कर लिया गया.
इस बीच, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में आगामी विधानसभा चुनावों में दलित वोटों को आकर्षित करने के भाजपा के प्रयासों के तहत ग्वालियर में एक बड़ी दलित सभा को संबोधित किया था. उन्होंने उपजातियों के लिए कल्याण बोर्डों के गठन की घोषणा की और उनके अध्यक्षों को मंत्री स्तर का दर्जा देने का वादा किया था.
उन्होंने मशीनीकृत सफाई प्रणाली शुरू करके हाथ से मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन का भी आश्वासन दिया और समुदाय के युवाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु सब्सिडी की पेशकश की.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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