झारखंड: आदिवासी संगठनों ने फादर स्टेन स्वामी के लिए न्याय और यूएपीए रद्द करने की मांग की

झारखंड के आदिवासी और मानवाधिकार संगठनों ने फादर स्टेन स्वामी की दूसरी पुण्यतिथि पर उनकी ‘हत्या’ के लिए ज़िम्मेदार लोगों को दंडित करने, राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई और यूएपीए को निरस्त करने की मांग की. एल्गार परिषद मामले में आरोपी कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का 5 जुलाई 2021 को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए एक अस्पताल में निधन हो गया था.

फादर स्टेन स्वामी. (इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

झारखंड के आदिवासी और मानवाधिकार संगठनों ने फादर स्टेन स्वामी की दूसरी पुण्यतिथि पर उनकी ‘हत्या’ के लिए ज़िम्मेदार लोगों को दंडित करने, राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई और यूएपीए को निरस्त करने की मांग की. एल्गार परिषद मामले में आरोपी कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का 5 जुलाई 2021 को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए एक अस्पताल में निधन हो गया था.

फादर स्टेन स्वामी. (इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: झारखंड के आदिवासी निकायों और मानवाधिकार संगठनों ने बीते बुधवार (5 जुलाई) को भारत के राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें फादर स्टेन स्वामी की ‘हत्या’ के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने, राजनीतिक कैदियों की रिहाई और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) को निरस्त करने की मांग की गई.

साथ ही, उन्होंने समान नागरिक संहिता को आदिवासी रीति-रिवाजों पर हमला बताया.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, शहीद फादर स्टेन स्वामी न्याय मोर्चा के तत्वावधान में सदस्यों ने उनकी दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर बुधवार को राजभवन के पास एक बैठक की और झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के माध्यम से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित ज्ञापन सौंपा.

उन्होंने भूमि, जंगल और जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए लड़ने, यूएपीए को निरस्त करने, 80 वर्षीय  स्टेन स्वामी की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा देने और उनकी दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए लड़ने और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लाने की केंद्र की योजना के खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखने का संकल्प लिया.

झारखंड जनाधिकार महासभा की सदस्य एलेना होरो ने कहा, ‘भीमा-कोरेगांव मामला मोदी सरकार द्वारा प्रायोजित एक निराधार और फर्जी मामला है, जो केवल उन सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और वकीलों को लक्षित करता है जो देश के उत्पीड़ित और वंचित वर्गों के लिए बोलते हैं और सरकार की जन-विरोधी नीतियों पर सवाल उठाते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘भीमा-कोरेगांव मामले में स्टेन स्वामी समेत 16 आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है. हालांकि, लंबी जद्दोजहद के बाद सिर्फ दो लोगों को जमानत मिल सकी. अन्य सभी पांच साल से हिरासत में हैं, जबकि फादर स्वामी की हिरासत में हत्या कर दी गई. अभी तक मामले की सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है. हम ऐसे सभी कैदियों की रिहाई चाहते हैं.’

बैठक में मौजूद सीपीएम नेता भुवनेश्वर केवट ने कहा, ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए छात्रों, किसानों, आदिवासियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं को कठोर यूएपीए के तहत दंडित किया गया है, क्योंकि इस कानून के तहत किसी को भी बिना सबूत के महीनों तक जमानत से वंचित किया जा सकता है और उसे आतंकवादी करार दिया जा सकता है. हम ऐसे कानूनों को रद्द कराना चाहते हैं.’

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा, ‘अब केंद्र यूसीसी लाने की कोशिश कर रहा है, जो आदिवासी रीति-रिवाजों और परंपरा पर सीधा हमला है. ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि झारखंड में आदिवासी समाज अपने प्रथागत कानूनों और प्रथाओं के उन्मूलन को स्वीकार करेंगे, जिन्हें हमारे लोगों द्वारा सदियों के संघर्ष के माध्यम से पहले ही मान्यता और संहिताबद्ध किया जा चुका है.’

भीमा-कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 84 साल के स्टेन स्वामी का 5 जुलाई 2021 को मेडिकल आधार पर जमानत का इंतजार करते हुए मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था.

मामले में एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले स्टेन स्वामी सबसे वरिष्ठ और मामले में गिरफ्तार 16 लोगों में से एक थे. स्टेन स्वामी अक्टूबर 2020 से जेल में बंद थे. वह पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें गिलास से पानी पीने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद स्टेन स्वामी को चिकित्सा आधार पर कई बार अनुरोध के बाद भी जमानत नहीं दी गई थी.

एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित संगोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई और इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध माओवादियों से था.